अन्य फसल के साथ लगाई जानेवाली औषधीय वनस्पतियां तथा परती भूमि में, अत्यल्प श्रम तथा पानी अल्प होने पर रोपी जा सकनेवाली औषधीय वनस्पतियां

प्रकृति में खरपतवार के रूप में बडी मात्रा में उगनेवाली वनस्पतियों को अलग से लगाने की आवश्यकता नहीं रहती; परंतु हमें ऐसी वनस्पतियों की पहचान होनी चाहिए

रिफ्लेक्सॉलॉजी

संत-महात्माओं, ज्योतिषियों आदि के कथनानुसार आगामी काल भीषण आपदाओं से भरा होगा, जिसका सामना समाज को करना पडेगा । ऐसे काल में अपने और अपने परिजनों के स्वास्थ्य की रक्षा करना बडी चुनौती होगी ।

मीठे पदार्थ भोजन के प्रारंभ में खाने चाहिए या अंत में ?

आयुर्वेद के अनुसार मिष्ठान्न अर्थात मीठे पदार्थ भोजन के प्रारंभ में खाने चाहिए । जिससे वात का शमन होता है तथा पचनक्रिया में बाधा नहीं आती ।

अग्निहोत्र के विविध लाभ

अग्निहोत्र करना आकाशमंडल में निहित सूक्ष्म देवताआें के तत्त्वों को जागृत कर उनकी तरंगों को भूमिमंडलपर खींच लेने का एक प्रभावशाली माध्यम है ।

आग लगने पर क्या करें ?

भावी आपातकाल का धैर्यपूर्वक सामना किया जा सके इस हेतु सनातन संस्था ने, आगामी युद्धकाल में संजीवनी सिद्ध होनेवाली ग्रंथमाला प्रकाशित की है ।

जंक फूड छोडें, आयुर्वेद अपनाएं (भारतीय पदार्थ खाएं) !

जंक फूड त्यागकर, आयुर्वेद अपनाएं, यही इसका सबसे अच्छा उपाय है । आयुर्वेद न केवल शरीर, अपितु मन एवं बुद्धि का भी उत्तम पालन-पोषण हो, इसके लिए सात्त्विक अन्न ग्रहण करने के लिए कहता है ।

अग्निहोत्र

त्रिकालज्ञानी संतों ने बताया ही है कि भीषण आपातकाल आनेवाला है तथा उसमें संपूर्ण विश्‍व की प्रचंड जनसंख्या नष्ट होनेवाली है । वास्तव में आपातकाल आरंभ हो चुका है । आपातकाल में तीसरा महायुद्ध भडक उठेगा । अणुबम जैसे प्रभावी संहारक के विकिरण को रोकने के लिए सूक्ष्मदृष्टि से कुछ करना आवश्यक है । इसलिए ऋषि-मुनियों ने यज्ञ के प्रथमावतार रूपी अग्निहोत्र’ का उपाय बताया है ।

एलोपैथी की औषधियां लेकर भी ठीक न होनेवाले पेट के विकार आयुर्वेदिक उपचारों से कुछ ही दिनों में पूर्णत: ठीक होना

६ माह एलोपैथी की औषधियां लेकर भी अपचन दूर न होना पिछले १ वर्ष से मुझे अपचन की समस्या है । इस कारण पेट में वायु (गैस) होना, बहुत भूख लगना, अनावश्यक खाना, इस प्रकार के कष्ट होने लगे ।

असहनीय ग्रीष्मकाल को सहनीय बनाने के लिए आयुर्वेदानुसार ऋतुचर्या करें !

‘ग्रीष्मकाल में पसीना बहुत होता है । इससे, त्वचा पर स्थित पसीने की ग्रंथियों के साथ तेल की ग्रंथियां अधिक काम करने लगती हैं, जिससे त्वचा चिपचिपी होती है ।