मृत्यु के उपरांत शरीर के अवयव दान न करें ।

आध्यात्मिक शोधकार्य से यह देखा गया है कि जब हम अवयव दान करते हैं, तब हम लेन-देन निर्माण करते हैं और अवयव (अंग) प्राप्त होनेवाले व्यक्ति के कर्मों द्वारा संचित पाप तथा पुण्य में सहभागी होते हैं ।

क्या पितरों के छायाचित्र घर में लगाना चाहिए ?

मृत व्यक्ति के साथ घर के लोगों का लगाव अथवा प्रेम होता है । उन्हें लगता है कि उनके कारण वे अच्छी स्थिति में हैं ।

समर्थ रामदास स्वामीजी द्वारा दासबोध में किया गया नवविधा भक्ति का वर्णन !

समर्थ जी ने साधना का मुख्य साधन श्रवण बताया है । अनेक विषयों का श्रवण करें, ऐसा उन्होंने बताया है कर्ममार्ग, ज्ञानमार्ग, सिद्धांतमार्ग, योगमार्ग, वैराग्यमार्ग, विविध व्रत, विविध तीर्थ, विविध दान, विविध महात्मा, योग, आसन, सृष्टीज्ञान, संगीत, चौदह विद्या, चौसंठ कला, यह सब श्रवण करने के लिए बताते हैं ।

श्रवण भक्ति का आदर्श उदाहरण

‘श्रवणभक्ति’ कहते ही राजा परिक्षित का स्मरण होता है । राजा परीक्षित, अर्जुनपुत्र अभिमन्यु के पुत्र ! राजा परीक्षित धर्मात्मा और सत्यनिष्ठ थे ।

नवविधा भक्ति – कीर्तन भक्ति !

नवविधा भक्ति का श्रवण, कीर्तन यह क्रम सृष्टिक्रम के अनुरूप है । मनुष्य जब जन्म लेता है, तब वह जो सीखना आरंभ करता है, वह श्रवण से सीखता है

नवविधा भक्ति : श्रवण भक्ति

सच्चे भक्तों के मन में ईश्वर के स्मरण के अतिरिक्त दूसरी कोई भी इच्छा नहीं होती । वे मोक्षप्राप्ति की इच्छा भी नहीं रखते । भक्तों के हृदय में भक्ति की ज्योत, गुरुकृपा से तथा साधकों के और संतों के सत्संग से सदैव प्रज्वलित रहती है । यही नवविधा भक्ति में पहली भक्ति है श्रवण भक्ति ।

दूसरों के गुण कैसे सीखें ?

इसलिए यदि हम अपने आसपास सभी में गुण देखने की वृत्ति बढा लें, तो हमें ध्यान में आएगा कि भगवान में अनंत गुण हैं और उन्होंने अपने सभी गुण हमारे आसपास की ही सृष्टि में बिखेर दिए हैं ।

भावस्थिति अनुभव करने में मुख्य रुकावटें कौन-सी हैं ?

भाव जागृति में कर्तापन को त्याग कर, सब ईश्वर की इच्छा से ही हो रहा है, एसा भाव रखना चाहिए । जैसे मैंने कुछ अच्छा किया, तो यह बुद्धि तो ईश्वर ने ही दी है ।

समर्थ रामदास स्वामीजी ने दासबोध में कीर्तनभक्ति का वर्णन किस प्रकार किया है !

समर्थ रामदास स्वामीजी ने दासबोध में ‘कीर्तन कैसे होना चाहिए, कीर्तन में कौनसे विषय लेने चाहिए । कीर्तन के लक्षण, महत्त्व एवं फलोत्पत्ति’ के संदर्भ में अत्यंत सुंदरता से बताया है ।

आज की स्थिति में ‘कोरोना विषाणु’ संक्रमण के कारण मृतक के शरीर पर अग्निसंस्कार करना संभव न हो, तो ऐसी स्थिति में धर्मशास्त्र के अनुसार की जानेवाली ‘पलाशविधि’ !

कोरोना विषाणु संक्रमण के कारण मृतक व्यक्ति का शरीर अथवा उसकी अस्थियां उसके परिवारजनों को नहीं सौंपी जातीं । ऐसी स्थिति में भी धर्मशास्त्र के अनुसार ‘पलाशविधि’ करना उचित होगा ।