अध्यात्म संबंधी शंकानिरसन

गांव-गांव के जिज्ञासु और साधकों के मन में सामान्य तौर पर निर्माण होनेवाली अध्यात्मशास्त्र के सैद्धांतिक और प्रायोगिक भाग की शंकाओं का निरसन सनातन संस्था के प्रेरणास्रोत प.पू. डॉ. जयंत आठवलेजी ने किया है ।

गुरुकृपायोगानुसार साधना के प्रकार

इस लेख में गुरुकृपायोगानुसार साधना की व्यष्टि साधना और समष्टि साधना के विषय में जान लेंगे । व्यष्टि साधना अर्थात् व्यक्तिगत आध्यात्मिक उन्नति हेतु किए जानेवाले प्रयत्न । समष्टि साधना अर्थात् समाज की आध्यात्मिक उन्नति हेतु किए जानेवाले प्रयत्न ।

नामजप के लाभ

ईश्वर का नाम, साधना की नींव है । अपने जीवन में नामजप से शारीरिक एवं मानसिकदृष्टि से क्या-क्या लाभ होते हैं, यह देखेंगे ।

स्वसूचना

स्वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया में स्वसूचना बनाना एवं स्वसूचना के अभ्याससत्र करना, ये दो महत्त्वपूर्ण चरण हैं । इनमें से यदि एक भी चरण पर चूक हो जाए, तो प्रक्रिया का अपेक्षित परिणाम नहीं दिखाई देता ।

स्वभावदोष के लिए स्वसूचना की उपचारपद्धति निश्चित करना और स्वसूचना बनाना

प्रक्रिया के अंंतर्गत प्रत्येक स्वभावदोष के लिए स्वसूचना की उपचारपद्धति निश्चित करना और स्वसूचना बनाना

स्वभावदोष-निर्मूलन सारणी का स्वरूप एवं लिखने की पद्धति

१. स्वभावदोषोंका चयन १ अ. ‘स्वभावदोष सारणी’से तीव्र स्वभावदोष पहचानें प्रत्येक में अनेक स्वभावदोष होते हैं। जो स्वभावदोष तीव्र हैं, उन्हें पहले दूर करना महत्त्वपूर्ण है। तीव्र स्वभावदोष ‘स्वभावदोष सारणी’से पहचानें। मान लो, किसीकी सारणी में ‘आलस्य’ इस दोषसे सम्बन्धित अनेक प्रसंग हों, तो समझ लो कि उसमें ‘आलस्य’ यह दोष तीव्र है । यदि … Read more

मन, संस्कार एवं स्वभाव

आधुनिक मानसशास्त्र के अनुसार मन के दो भाग होते हैं । पहला भाग, जिसे हम ‘मन’ कहते हैं, वह ‘बाह्यमन’ है । दूसरा अप्रकट भाग ‘चित्त (अंतर्मन)’ है । मन की रचना एवं कार्य में बाह्यमन का भाग केवल १० प्रतिशत जबकि अंतर्मन का ९० प्रतिशत है ।

स्वभावदोष (षड्रिपू)-निर्मूलन प्रक्रिया प्रारंभ करने से पूर्व ध्यान देनेयोग्य सूचनाएं

हम इस लेख में स्वभावदोष (षड्रिपू)-निर्मूलन प्रक्रिया में आनेवाली प्रमुख बाधा, सफल प्रक्रिया के लिए आवश्यक गुण एवं स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रियांतर्गत कृति के चरण, यह जानेंगे ।

स्वभावदोष (षड्रिपु)-निर्मूलन प्रक्रिया क्यों महत्त्वपूर्ण है ?

स्वभावदोषों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, पारिवारिक, सामाजिक व आध्यात्मिक दुष्परिणामों को दूर कर, सफल व सुखी जीवन जीने हेतु, स्वभावदोषों को दूर कर चित्त पर गुणों का संस्कार निर्माण करने की प्रक्रिया को ‘स्वभावदोष (षड्रिपु)-निर्मूलन प्रक्रिया’ कहते हैं ।