स्वभावदोष (षड्रिपू)-निर्मूलन प्रक्रिया प्रारंभ करने से पूर्व ध्यान देनेयोग्य सूचनाएं

स्वभावदोष (षड्रिपू)-निर्मूलन प्रक्रिया में आनेवाली प्रमुख बाधा

अ. स्वयं में परिवर्तन करने की लगन कम पडने के कारण, नियमितता से एवं निरंतरता से प्रक्रियांतर्गत सर्व चरणों को आचरण में नहीं ला पाते ।

आ. आत्मपरीक्षण का अभाव

इ. स्वभाव में परिवर्तन तथा उनका भान होने में कुछ महीने लगते हैं, इसलिए मानसिक दृष्टि से इस प्रक्रिया के प्रति नीरसता रहती है ।

ई. प्रक्रिया सैैद्धांतिकरूप से स्वीकार्य होती है; परंतु अपने स्वभाव में परिवर्तन करने में चित्तद्वारा विरोध होता है । इस कारण प्रयास करने की मानसिक तत्परता नहीं होती, अर्थात ‘समझ में आता है; परंतु आचरण में नहीं ला पाते’, ऐसी अवस्था होती है ।

सफल प्रक्रिया के लिए आवश्यक गुण

अ. इच्छाशक्ति  अथवा लगन

आ. विश्वास

इ. प्रामाणिकता

ई. उतावलापन नहीं, लगन हो

उ. निरंतरता एवं अभ्यास

ऊ. एकाग्रता

ए. बुद्धिमत्ता

ऐ. आज्ञापालन

प्रक्रिया प्रारंभ करने से पूर्व ध्यान देनेयोग्य सूचनाएं

अ. व्यक्तिगत जीवन को सुखी बनाने में ‘स्वभावदोष’ एक बडी बाधा है’ । इसलिए अपनी बुद्धि को स्वभावदोष-निर्मूलन का महत्त्व समझाना आवश्यक है । तत्पश्चात बुद्धि द्वारा ही इस महत्त्व को दृढ निश्चय कर पुनः-पुनः मन पर अंकित करना चाहिए । फलस्वरूप प्रक्रिया को गंभीरता, प्रामाणिकता एवं नियमितरूप से आचरण में ला सकते हैं ।

आ. प्रक्रिया के सर्व चरण भली-भांति समझकर प्रक्रिया आचरण में लाएं । इस प्रक्रिया में अपने मनानुसार परिवर्तन न करें ।

इ. प्रक्रिया आरंभ करने पर ऐसी अपेक्षा न करें कि ‘आज मन को सूचना दी और अगले दिन तुरंत ही कृति में सुधार हो जाए एवं मन में अच्छे विचार आने लगें’ । इसलिए इस प्रक्रिया में स्वभावदोष दूर कर स्वयं में परिवर्तन लाने हेतु अपने-आपको ही प्रायोगिक स्तर पर दृढता से प्रयत्न करना आवश्यक है ।

ई. दिनभर में होनेवाली अपनी सर्व चूक नियमितरूप से एवं प्रामाणिकता से स्वभावदोष-निर्मूलन सारणी में लिखें; परंतु स्वयंसूचना प्रक्रिया के लिए प्राथमिकता के आधार पर चुने गए स्वभावदोषों की अभिव्यक्तियों पर ही स्वयंसूचना दें ।

उ. स्वयंसूचना के अभ्याससत्र प्रतिदिन नियमितरूप से एवं निर्धारित समय पर करें । उसमें अनियमितता हो, तो स्वभाव में अपेक्षित परिवर्तन नहीं होता ।

ऊ. अनेक लोग स्वभावदोषों पर स्वयंसूचना देते हैं; परंतु जब प्रसंग प्रत्यक्ष घटित होता है, तब सूचना अनुसार संबंधित कृति में परिवर्तन करने का प्रयास नहीं करते । स्वयंसूचना देने के साथ ही उस विशिष्ट प्रसंग में स्वयंसूचना अनुसार स्वभावदोष की अयोग्य अभिव्यक्ति में परिवर्तन लाने का प्रयास करना, यह भी स्वभावदोष-निर्मूलन प्रक्रिया का एक भाग है । ऐसा करने से प्रक्रिया अल्पावधि में यशस्वी होती है ।

ए. ‘प्रक्रिया जारी है, तो स्वभाव में कभी न कभी परिवर्तन होगा’, ऐसी तटस्थ भूमिका से कुछ लोग प्रक्रिया को आचरण में लाते हैं । इससे स्वभाव में परिवर्तन होने के लिए दीर्घकाल लगता है । उपायस्वरूप समयमर्यादा निश्चित कर अपेक्षित परिणाम पर ध्यान दें ।

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