वैवाहिक जीवन आनंदमय होने के लिए क्या करना चाहिए ?
विवाह के कारण परिवारव्यवस्था से उत्पन्न बच्चों को सुसंस्कार, प्रेम एवं सुरक्षा मिलती है । किंतु, व्यभिचार से उत्पन्न संतति, इन सबसे वंचित रहती है ।
विवाह के कारण परिवारव्यवस्था से उत्पन्न बच्चों को सुसंस्कार, प्रेम एवं सुरक्षा मिलती है । किंतु, व्यभिचार से उत्पन्न संतति, इन सबसे वंचित रहती है ।
वधु-वर की जन्मकुंडलियां मिलाने का महत्त्व, इसके साथ ही वैवाहिक जीवन आनंदमय होने के लिए क्या करना चाहिए, इस विषय में प्रस्तुत लेख !
जिसप्रकार बच्चे का लिंग गर्भाशय में ही निश्चित होता है, उस प्रकार बच्चे का नाम भी पूर्वनिश्चित ही होता है । शब्द, स्पर्श, रूप, रस एवं गंध, ये घटक एकत्रित रहते हैं; इसीलिए बच्चे का जो रूप है उसके अनुसार उसका नाम भी होता है ।
धर्म सिखाता है कि मनुष्य-जन्म ईश्वरप्राप्ति के लिए है; इसलिए जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रत्येक प्रसंग में ईश्वर के निकट पहुंचने के लिए आवश्यक उपासना कैसे की जाए, इसका मार्गदर्शन धर्मशास्त्र में किया गया है ।
विवाहमें अग्निको साक्षि मानकर वर एवं वधूको कुछ बंधन बनाने होते हैं तथा दोनों अग्निको वचन देते हैं ।
सीमंतोन्नयन शब्द सीमंत (मांग की रेखा) एवं उन्नयन (केश ऊपर से पीछे की ओर करना), इन दो शब्दों से बना है । सीमंतोन्नयन अर्थात पत्नी के सिर के केश ऊपर से पीछे की ओर कर मांग निकालना ।
जातकर्म विधि के उद्देश्य हैं – उदकप्राशनादि से गर्भसंबंधी दोषों का निवारण हो एवं पुत्रमुख देखने से पुत्र का पिता ऋणत्रयी से (पितृऋण, ऋषिऋण, देवऋण से) तथा समाजऋण से मुक्त हो ।
‘विवाह’ जीवनका एक महत्त्वपूर्ण संस्कार है । धार्मिक संस्कारोंको केवल परंपरागत करनेकी अपेक्षा, उनके शास्त्रीय आधारको समझकर करना महत्त्वपूर्ण होता है । शास्त्रीय आधार समझनेसे वह संस्कार अधिक श्रद्धापूर्वक होता है ।
इस संस्कार में विशिष्ट मंत्र एवं होमहवन से देह की शुद्धि कर, अध्यात्मशास्त्रीय दृष्टिकोण एवं आरोग्य की दृष्टि से समागम करना चाहिए, यह मंत्रों द्वारा सिखाया जाता है ।
चूडा अर्थात पुरुष की शिखा (चोटी) । यह शिखा सिर पर सहस्रारचक्र के स्थान पर रखी जाती है । इस स्थान पर स्थित केश छोडकर शेष केश कटवाने की क्रिया को चौलकर्म अथवा चूडाकर्म कहते हैं ।