विवाहांतर्गत अन्य विधियां

सारिणी

 


 

अग्निको साक्षि मानकर विवाह एवं कुछ विधियां करनेका महत्त्व

विवाहमें अग्निको साक्षि मानकर वर एवं वधूको कुछ बंधन बनाने होते हैं तथा दोनों अग्निको ऐसा वचन देते हैं । इसमें अग्निको ही साक्षि क्यों मानते हैं ? इसलिए कि, वह पंचमहाभूतोंका प्रथम व्यक्त रूप है । वह ऊर्ध्वगामी है, सभी विकारोंका नाश कर मूलतत्त्व चैतन्यको प्रकट करती है । वही सर्वत्र विविध स्वरूपमें कार्य करती है । वही अंतमें शेषरूप रहती है । वही ज्ञानरूपमें सर्व भ्रमों एवं विकारोंको जलाकर शुद्ध चैतन्यके रूपमें प्रकाशित होती है । वही जागृत है । वही संवेदनशील तथा आनंदमय है । वही हमसे कहती है, ‘सर्वाधिक तेजःपुंज चैतन्य प्रकट करो । उसके लिए ज्ञानाग्निसे भ्रम, मोह एवं विकारोंको जला दो, जिससे जीवका आत्मस्वरूप प्रकट हो ।’ – प.पू. परशराम माधव पांडे महाराज, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल.

 

आज्ञाचक्रपर कुमकुम लगाना

कुमकुम हलदीसे बनाया जाता है, इसलिए वह सिंदूरकी तुलनामें अधिक सात्त्विक होता है । आज्ञाचक्रपर लाल कुमकुम लगानेसे श्री दुर्गादेवी की तरंगें आज्ञाचक्रसे शीघ्र ग्रहण होती हैं तथा संपूर्ण शरीरमें संक्रमित होती हैं, अतएव सिंदूरकी तुलनामें कुमकुमसे अधिक लाभ मिलता है ।

मांगमें सिंदुर भरना

मांगमें सिंदूर भरनेसे श्री दुर्गादेवीकी तरंगें कुछ मात्रामें इसके लाल रंगकी ओर आकर्षित होती हैं एवं तुरंत प्रक्षेपित होती हैं, इसलिए जीवको अल्प लाभ मिलता है ।’ – एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळके माध्यमसे, २४.११.२००४, दिन ११.२३)

(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ ‘सोलह संस्कार एवं अन्य धार्मिक कृतियां’)

 

विवाहविषयक शास्त्रीय जानकारी देनेवाले ‘धर्मशिक्षण फलकों’द्वारा धर्मप्रसारका सुअवसर !

वर्तमानमें विवाह संस्कारके समय की जानेवाली धार्मिक कृतियां, उन कृतियोंके शास्त्रीय कारण तथा उनसे होनेवाले लाभ अधिकांश लोगोंको ज्ञात नहीं हैं । परिणामस्वरूप विवाह एक समारोह बनकर रह गया है । विवाहको ‘धार्मिक विधि’की दृष्टिसे देखना चाहिए । विवाहमें उपस्थित सर्व जन विवाहविधियोंके अध्यात्मशास्त्रको समझें तथा विवाहकी विधिसे मिलनेवाला चैतन्य वधू-वर पूर्णत: ग्रहण हो सकें, इसके लिए सनातन द्वारा विवाह विषयक धर्मशिक्षा देनेवाली २.२५’x ३’ आकारके १० फलकोंकी मालिका बनाई गई है । आज-कल विवाहका मुहूर्त चल रहा है । इस कारण गांव-गांवमें ऐसे शुभमुहूर्तोंपर विवाह मंडप एवं मंगल-कार्यालयोंमें ये फलक प्रदर्शित किए जा सकते हैं । इससे अल्पावधिमें सैकडों लोगोंतक विषय पहुंचकर उद्बोधन होगा । सनातनके पाठक, हितचिंतक तथा समाजके दानवीर व्यक्तियोंसे निवेदन है कि, इस कार्यमें प्रायोजक बनें तथा धर्मप्रसारका लाभ उठाएं । अपने प्रिय व्यक्तिकी स्मृतिमें भी ये फलक प्रायोजित कर सकते हैं ।

 

सिंदूर भरना, मंगलसूत्र धारण करना एवं चुडियां पहनना

  सिंदूर भरना मंगलसूत्र धारण करना चुडियां पहनना
१. कारण लौकिक प्रथा कुलदेवताकी कृपासे शीघ्र
आध्यात्मिक उन्नति होती है ।
श्री लक्ष्मीका तत्त्व आकर्षित करनेमें सहायता होती है ।

२. हिंदु धर्ममें महत्त्व (प्रतिशत)

 

३. जीवपर संभावित परिणाम चंचल बनना निर्मल एवं शांत होना शालीन एवं संयमी बनना

४. तरंगोंका रंग

 

लाल पीलासा पीला-लाल
५. जीवकी शुद्धि स्थूलदेह प्राणमयकोष एवं मनोमयकोष स्थूलदेह एवं सूक्ष्मदेह
६. देहके लिए कवच निर्मित करनेकी क्षमता
     

 

– एक विद्वान (श्रीमती अंजली गाडगीळ के माध्यमसे, २४.११.२००४) संदर्भ – सनातनका लघुग्रंथ विवाह संस्कार’)

 

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