वैवाहिक जीवन आनंदमय होने के लिए क्या करना चाहिए ?

‘आज का समाज कामतृप्ति के लिए विवाहबाह्य संबंधों को मान्यता प्रदान करता हो, तब भी उसके दुष्परिणामों का अभ्यास करना आवश्यक है । विवाह के कारण परिवारव्यवस्था से उत्पन्न बच्चों को सुसंस्कार, प्रेम एवं सुरक्षा मिलती है । किंतु, व्यभिचार से उत्पन्न संतति, इन सबसे वंचित रहती है । इस कारण वह व्यसनाधीन होकर कुमार्गी बन जाती है । इससे समाज का भी पतन होता है । विदेश में इसी कारण अनाचार का बोलबाला है । वासना नित्य प्रेम नहीं दे सकती । व्यभिचारिता तथा स्वच्छंदता के कारण एड्स जैसे गंभीर रोग उत्पन्न होते हैं तथा आगे उसके भयंकर परिणाम भोगने पडते हैं । अर्थात कुछ क्षण की कामतृप्ति के लिए मानव अपना जीवन नष्ट कर लेता है । ऐसे क्षणिक सुख का क्या अर्थ है ?’

विवाहबाह्य संबंधों को रोकने के लिए इन्हें प्रशासन, प्रसारमाध्यम एवं प्रतिष्ठित लोगों से मिलनेवाला प्रोत्साहन रोकना होगा । विवाहबाह्य संबंधों को प्रोत्साहन देनेवाले निर्णय का विरोध करने के लिए प्रशासन को पत्र अथवा सामूहिक निवेदन भेजना चाहिए । विवाहबाह्य संबंधों के विरुद्ध विधान बनाने के लिए प्रशासन एवं लोकप्रतिनिधियों पर दबाव डालना आवश्यक है ।

मुख्यतः विवाहबाह्य संबंधों को प्रोत्साहन देनेवाले दूरदर्शन प्रणाली पर (टीवी चैनल पर) प्रसारित धारावाहिक, तथाकथित प्रतिष्ठित लोगों का निषेध दर्शाने हेतु उनका सामाजिक बहिष्कार करें ! ऐसे कुछ प्रयासों से हम यह विकृति रोकने में कुछ सफलता प्राप्त कर पाऐंगे ।

 

वैवाहिक जीवन आनंदमय होने के लिए लिए क्या करना चाहिए ?

वर्तमान में कलियुग होने से मनुष्य के जीवन में सुख की तुलना में दुःख अधिक प्रमाण में आता है । मनुष्य की जीवनशैली निसर्ग के प्रतिकूल होने से सर्व साधन से संपन्न होते हुए भी वह ‘आनंदी’ नहीं । वैवाहिक जीवन के संदर्भ में विचार करने पर आज आनंदमय जीवनयापन करनेवाले कुटुंब अत्यधिक न्यून हैं । वैवाहिक जीवन आनंदमय बीतने हेतु ‘साधना करना’ ही उत्तम मार्ग है । ‘साधना’ अर्थात ईश्‍वरप्राप्ति के लिए प्रतिदिन किए जानेवाले प्रयत्न । ईश्‍वरप्राप्ति अर्थात ईश्‍वर के गुण स्वयं में लाना और अपने दोष दूर करना । वैवाहिक जीवन में सबसे बडी अडचन है पति-पत्नी की एक-दूसरे से अपेक्षा ! प्रत्येक मनुष्य में अहंकार होने से प्रत्येक प्रसंग में वह ऐसा विचार करता है कि ‘सामनेवाला कैसे गलत है और मैं कैसे सही ।’, हम स्वयं को बदल सकते हैं; परंतु दूसरों को नहीं, यह ध्यान में रखना चाहिए । यदि पति-पत्नी सदैव यह विचार करें कि ‘हम कहां कम पडे ?, हम सामनेवाले की क्या सहायता कर सकते हैं’, तो इससे कौटुंबिक वातावरण बहुत सुधर जाएगा । हममें विद्यमान स्वभावदोष और अहं दूर करने के लिए प्रयत्न करना ही साधना है । ‘जीवन में आनंदप्राप्ति कैसे करनी चाहिए ?’, यह विज्ञान नहीं, अपितु अध्यात्मशास्त्र सिखाता है । जीवन की प्रत्येक घटना को आध्यात्मिक मोड देने से जीवन वास्तव में आनंदमय हो जाएगा ।’

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