बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिन्दुओं के अधिकारों के लिए लडनेवाले माइनॉरिटी वॉच के अध्यक्ष अधिवक्ता रवींद्र घोष संतपद पर विराजमान !

१. बांग्लादेश में तलवार एवं बम के बल पर नहीं, अपितु साधना के बल पर कार्य कर रहा हूं ! – पू. (अधिवक्ता) रवींद्र घोष

२. बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिन्दुओं के अधिकारों के लिए अंतिम सांस तक लडते रहने का पुनरुच्चार

पू. (अधिवक्ता) रवींद्र घोषजी का सम्मान करते हुए पू. नीलेश सिंगबाळजी

विद्याधिराज सभागृह, रामनाथ देवस्थान (रामनाथी) : ‘बांग्लादेश के हिन्दुओं की रक्षा करना और उनके मानवाधिकारों के लिए लडते रहना ही मेरी साधना है । बांग्लादेश में मैं तलवार और बम के बल पर नहीं, अपितु साधना के बल पर कार्य कर रहा हूं । इस कार्य में मुझे अपनी धर्मपत्नी का भी सहयोग मिला है ।’ एेसे उद्गार बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं के अधिकारों के लिए लडनेवाले ‘बांग्लादेश माइनॉरिटी वॉच’ के अध्यक्ष पू. (अधिवक्ता) रवींद्र घोष ने व्यक्त किए ।

हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा आयोजित अष्टम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में संतपद पर विराजमान होने के उपरांत उन्होंने अपना मनोगत व्यक्त किया । पू. (अधिवक्ता) रवींद्र घोष ने कहा,

१. वर्ष १९७१ में बांग्लादेश की निर्मिति हुई । तब से मैं बांग्लादेशी हिन्दुओं के लिए लड रहा हूं । प्रतिकूल परिस्थिति में भी साधना के बल पर कार्य करने की सीख हम बच्चों को भी देते हैं । केवल साधना से ही अच्छे परिणाम संभव हैं ।

२. १ मई २०१९ को बांग्लादेश की पुलिस ने मुझे अवैध रूप से लगभग १२ घंटे बंदी बना कर रखा । उस समय मुझे अन्न और पानी तक नहीं दिया गया ।

३. एक अल्पवयीन हिन्दू लडके की हत्या के बाद पुलिस उसके अपराधियों को बंदी नहीं बना रही थी । इसलिए मैं पुलिस थाने गया था, तो पुलिस ने हमारा कैमरा और मोबाइल छीन लिया ।

४. आए दिन इसप्रकार की घटनाएं होती हैं; पर मैं डरता नहीं हूं ।

५. बांग्लादेश में धर्मांधों द्वारा हो रहे अत्याचार के कारण अनेक हिन्दुओं ने बांग्लादेश छोड दिया; परंतु हमने नहीं छोडा । बांग्लादेश हमारी मातृभूमि है । मैं बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए लडा हूं, परंतु स्वतंत्रता सैनिक होने पर भी बांग्लादेश सरकार ने मुझे कुछ नहीं दिया ।

६. बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिन्दुओं की रक्षा का कार्य करते समय मैं कदापि हार नहीं मानूंगा । हम कुछ भी गलत नहीं कर रहे हैं । हिन्दुओं का सहयोग करने के लिए हम कानूनी मार्ग से लड रहे हैं । एक न एक दिन बांग्लादेश सरकार को हमारी और ध्यान देना ही होगा, यह निश्चित है ।

 

बांग्लादेश में मुझ पर हुए अनेक प्राणघातक आक्रमणों से केवल गुरुदेवजी
(परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की) कृपा से ही हम बच रहे हैं ! – पू. (अधिवक्ता) रवींद्र घोष

पू. (अधिवक्ता) रवींद्र घोष बोले, ‘‘गुरुदेवजी की (परात्पर गुरु डॉ. आठवले की) कृपा से मुझे सम्मान मिला है, इसके लिए मैं उनके श्रीचरणों में प्रणाम करता हूं । यह सब अविश्वसनीय है । गुरुदेव के आशीर्वाद के कारण ही बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं की रक्षा का कार्य करना मुझे संभव हो रहा है । इस कार्य के लिए मैं बांग्लादेश के ६४ जिलों में घूमता हूं । इस दौरे के समय अब तक मुझ पर अनेक प्राणघातक आक्रमण हुए; परंतु इन सभी आक्रमणों में मैं गुरुदेव की कृपा से बच गया । गुरुदेवजी की कृपा से मुझे संत घोषित किए गए इन सुवर्णक्षणों के अवसर पर मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि बांग्लादेशी हिन्दुओं की रक्षा के लिए मैं अंतिम श्वास तक कार्य करूंगा ।’’

 

पू. रवींद्र घोष के संतपद प्राप्त करने के उपरांत उनकी पत्नी श्रीमती कृष्णा घोष का मनोगत

पति द्वारा किया कार्य आज सार्थक हुआ ! – श्रीमती कृष्णा घोष (पत्नी)

पू. रवींद्र घोष को संत घोषित किए जाने के पश्चात उनकी पत्नी ने कहा, ‘‘हमें गुरुदेवजी का यह विशेष आशीर्वाद मिला है, इसलिए मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है । बांग्लादेश में धर्मांधों ने श्री. घोष पर अनेक आक्रमण किए । उन्हें विष दिया और घर-द्वार भी लूटने आए । इस प्रतिकूल परिस्थिति में भी श्रीमान (पति पू. रवींद्र घोष) कार्य कर रहे हैं । ऐसा लग रहा है मेरे पति ने हिन्दुओं के लिए जो कष्ट सहन किया, वह आज सार्थक हुआ । ईश्वर मनुष्य के माध्यम से ही कार्य करता है । भगवान ने इस कार्य के लिए मेरे पति को चुना है । इसके लिए मैं बहुत कृतज्ञ हूं ।’’

 

श्रीमती कृष्णा घोष का ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर घोषित होने पर उनका मनोगत

हम अधिवेशन से प्रेरणा लेकर बांग्लादेश में अधिक उत्साह से कार्य करेंगे ! – श्रीमती कृष्णा रविंद्र घोष

हिन्दुओं को बचपन से ही धर्मशिक्षा देनी चाहिए । मुसलमान लडकों को आयु के ५ वें वर्ष से ही उनके पंथ की शिक्षा दी जाती है । हिन्दू माताओ ने अपने बच्चों को बचपन से ही धर्मशिक्षा देनी चाहिए । इसके अतिरिक्त बच्चों को हिन्दुओं की प्रथा-परम्पराओ का भी ज्ञान देना चाहिए, तभी आनेवाले काल में ‘हिन्दू राष्ट्र’ निर्माण होगा । इस अधिवेशन में आकर मुझे बहुत प्रेरणा मिली । यह प्रेरणा लेकर हम बांग्लादेश में अधिक उत्साह से कार्य करेंगे ।

 

धर्मपत्नी श्रीमती कृष्ण घोष के ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर
प्राप्त होने पर पू. (अधिवक्ता) रवींद्र घोष का मनोगत

धर्मपत्नी की आध्यात्मिक प्रगति, गुरुदेवजी (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी) की कृपा है ! – पू. (अधिवक्ता) रवींद्र घोष

पू. (अधिवक्ता) रवींद्र घोष की पत्नी के भी ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त होने की घोषणा इस अधिवेशन में हुई । इस विषय में बोलते हुए पू. (अधिवक्ता) रवींद्र घोषजी ने कहा, ‘‘यह सब अद्भुत है । पत्नी की आध्यात्मिक प्रगति, गुरुदेवजी की (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की) कृपा है । एक समय ऐसा था जब मुझे लगता था कि मैं अकेला ही लड रहा हूं । मेरे साथ कोई नहीं है; परंतु पत्नी ने मुझे पूरा सहयोग दिया । गुरुदेवजी की कृपा से बांग्लादेश में हिन्दुओं को धर्मशिक्षा देने के प्रयत्न जारी हैं । जीवन में हमें पैसा अथवा मान-सम्मान कुछ भी नहीं चाहिए; केवल गुरुदेवजी के चरणों में स्थान मिले, ऐसी उनके चरणों में प्रार्थना है ।’’

 

हिन्दू जनजागृति समिति की श्रीमती क्षिप्रा जुवेकर ने
बताईं श्रीमती कृष्णा घोष की गुणविशेषताएं

१. लगन : श्रीमती कृष्णा घोष की प्रतिकूल परिस्थिति में कार्य करने की लगन वर्णन करने योग्य है ।

२. निर्भय : उनमें लेशमात्र भी भय नहीं है । उनकी दो पुत्रियां कैनडा में और पुत्र सिक्किम में रहता है । पू. रवींद्र घोष कार्य के लिए सदैव घर के बाहर रहते हैं । धर्मांधों के कारण उनके प्राण संकट में होते हुए भी वे घर में अकेली रहती हैं ।

३. उच्च प्रति का धर्मप्रेम : उनमें उच्च प्रति का धर्मप्रेम है । जब वे विद्यालय में शिक्षिका थीं, तब धर्मांध उन्हें धमकाते थे कि वे माथे पर कुमकुम न लगाएं; परंतु वे उसकी बलि न चढीं । अपितु और अधिक बडा कुमकुम लगाकर विद्यालय जाती थीं ।

श्रीमती घोष को देखकर आनंद और उत्साह लगता है । उनसे सभी को प्रेरणा मिलती है । ‘साधना का बल होगा, तो किसी भी परिस्थिति में स्थिर रहकर कार्य कर सकते हैं’, यह उनसे सीखने मिलता है ।

क्षणिकाएं

१. मनोगत के प्रारंभ में श्रीमती कृष्णा घोष ने ‘कृष्णाय वासुदेवाय..’ श्लोक कहा ।

२. सम्मान समारोह के उपरांत सनातन की सद्गुरु (कु.) अनुराधा वाडेकर और सनातन की संत पू. (श्रीमती) संगीता जाधव ने श्रीमती कृष्णा घोष को आलिंगन दिया । वास्तव में सद्गुरु (कु.) अनुराधा वाडेकर और पू. (श्रीमती) संगीता जाधव का श्रीमती कृष्णा घोष से कोई परिचय नहीं है; परंतु दोनों ने श्रीमती कृष्णा घोष को ऐसे आलिंगन दिया जैसे जन्म-जन्मांतर का नाता हो । इससे उपस्थितों को सीखने मिला कि साधना में भाषा अथवा प्रांत का बंधन नहीं होता, अपितु ‘ईश्वर के प्रति भाव’, यही सभी को जोडनेवाला धागा होता है ।

 

पू. (अधिवक्ता) रवींद्र घोष का परात्पर गुरु डॉ. आठवले के प्रति अपार भाव

‘सम्मान समारोह के उपरांत उपस्थित साधक एवं हिन्दुनिष्ठ पू. (अधिवक्ता) रवींद्र घोष के संत बनने के प्रीत्यर्थ उनसे मिल रहे थे, तब पू. (अधिवक्ता) रवींद्र घोष ने नम्रतापूर्वक कहा ‘केवल गुरुदेवजी की ही कृपा’, ‘गुरुदेवजी का आशीर्वाद’, इतना ही वे कह रह थे । संतपद पर विराजमान होने के उपरांत मनोगत व्यक्त करते हुए भी प्रत्येक २ – ३ वाक्यों के उपरांत वे कह रहे थे ‘यह गुरुदेवजी का आशीर्वाद है ।’ उनकी इस कृति से यह दिखाई देता है कि ‘उनमें लेशमात्र भी कर्तापन नहीं है ।’ – सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळे

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