आयुर्वेद : कौन से रोगों पर कौनसे आसन उपयुक्त ?

Article also available in :

आयुर्वेद क्या कहता है ?

१. कौन से रोगों पर कौनसे आसन उपयुक्त ?

भुजंगासन

१.अ. थायरॉइड

शीर्षासन, सर्वांगासन, सिंहमुद्रा, हलासन

१.आ. अपचन

अग्निसार, सर्वांगासन, मयूरासन, हलासन, धनुरासन एवं उड्डियान बंध

१.इ. जननेंद्रिय के विकार

शीर्षासन, उड्डियान बंध, योगमुद्रा, पश्चिमोत्तानासन, स्वस्तिकासन

१.ई. मलावरोध

वक्रासन, योगमुद्रा, हलासन, शंखप्रक्षालन

१.उ. अग्नाशय के विकार

मयुरासन, पवनमुक्तासन एवं उड्डियान बंध

१.ऊ. स्पाँडिलाइटिस

मत्स्यासन

१.ओ. दमा

कपालभाती, मत्स्यासन

१.औ. पीठदर्द

धनुरासन, भुजंगासन, चक्रासन

१.अं. मासिक धर्म के विकार

पश्चिमोत्तानासन

२. बीमार होने पर व्यायाम करने की अपेक्षा बीमार हों ही नहीं, इसलिए व्यायाम करें !

‘बुढापे में जोडों में वेदना, कमर में वेदना, पीठ में वेदना इत्यादि बीमारियां होने पर आधुनिक वैद्य (डॉक्टर) व्यायाम, योगासन इत्यादि करने के लिए कहते हैं । यहां ध्यान देनेवाली महत्त्वपूर्ण बात यह है कि बीमारी होने पर व्यायाम करने की अपेक्षा बीमारी हो ही नहीं; इसलिए व्यायाम करना अधिक लाभदायक होता है ।’

– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

 

३. ‘पेट निकल आना’ इस समस्या से मुक्ति के लिए उपयुक्त योगासन !

सेतुबंधासन, चक्की चलनासन, भुजंगासन, धनुरासन, पश्चिमोत्तासन, पेट से संबंधित विविध आसन, इसके साथ ही कपालभाती, अग्निसार, उड्डीयान शुद्धिक्रिया, इसके साथ ही सर्वांगासन, सूर्यनमस्कार आदि नियमित करने से पेट की चरबी नियंत्रण में रहने में सहायक होती है ।

 

४. आगे दी गई बीमारियों में इन प्राणायामों का अच्छा लाभ होता है !

४.अ. बारंबार सर्दी होना

भस्रिका, उज्जायी (पूरक सहज कुंभक, सरेचक) एवं सूर्यभेदन (रेचक-पूरक)

४.आ. दमा

अनुलोम विलोम (कुंभकरहित)

४.इ. पचन की शिकायत

सूर्यभेदन

४.ई. शरीर उष्ण होना

शीतली, चंद्राभ्यास (सहज कुंभक सहित)

 

५. मधुमेह न होने के लिए अथवा ठीक होने के लिए व्यायाम कैसे उपयुक्त है, यह जान लें !

मधुमेह न होने के लिए अथवा ठीक होने के लिए व्यायाम कैसे उपयुक्त है, यह कुएं के उदाहरण से समझ लेंगे । कुएं के प्राकृतिक झरनों से कुएं में पानी आता रहता है; परंतु एक दिन पानी आना बंद हो जाता है । गंदगी जमा होने से झरनों के मुख बंद हो जाते हैं । गंदगी निकालकर कुआं स्वच्छ करने पर, झरने खुल जाएंगे और कुएं में पुन: पानी अपनेआप भरता है, इसके साथ ही अपने शरीर में भी विविध स्राव अपनेआप आता रहता है । वह कुछ कारणों से बंद हो जाए, तो उसकी कमतरता प्रतीत होती है । रक्त में शक्कर बढती है; कारण ‘इन्सुलिन’ नामक स्राव की निर्मिति घट जाती है । ग्रंथियों के द्वार बंद होने से अथवा उसमें कुछ फंस जाने से स्रावों की निर्मिति रुक जाती है । ग्रंथी दबती नहीं अथवा हिलती भी नहीं; इसलिए यह होता है । व्यायाम नहीं होता; इसलिए ग्रंथी दाबी नहीं जाती । व्यायाम क्यों नहीं होता ? इसलिए कि हममें आलस है ।

मान लीजिए सूखे हुए नीबू से रस निकालना हो, तो उसे चारों ओर से हाथों में रगडकर निकालना होगा । उसीप्रकार हमें यदि शरीर के अग्नाशय (पैंक्रियाज) नामक अवयव से ‘इन्सुलिन’ नामक रस बाहर निकालना है । मधुमेह में यह ‘इन्सुलिन’ जब निर्माण ही नहीं होता, तब इस ग्रंथी की सतत हलचल हो, इस अवयव पर दाब निर्माण हो, ऐसा कुछ तो करना अपेक्षित होता है । मंडुकासन, पवनमुक्तासन, हलासन, सर्वांगासन, भुजंगासन, मयूरासन, नमनमुद्रा, कपालभाती इत्यादि योगक्रियाओं के कारण पेट पर, विशेषतः अग्नाशय (पैंक्रियाज) एवं यकृत (लिवर) इन दो अवयवों पर बाहर से तनाव अथवा दाब दिया जाता है । इससे प्राकृतिकरूप से अच्छे पाचक रसों की उत्पत्ति होने की संभावना बढ जाती है । मधुमेह न हो; इसके लिए यह अत्यंत सरल उपाय है ।

– वैद्य सुविनय दामले, कुडाळ

६. व्यायाम के आचार !

सवेरे खाली पेट तेल से मसाज कर व्यायाम करें । रात में सोने के पश्चात रक्त में अवशोषित अन्नघटक खर्च नहीं होते । सोकर उठने के पश्चात शरीर में भारीपन लगता है । वे घटक ठीक से पचाकर आत्मसात होने के लिए सवेरे ही व्यायाम करने की आवश्यकता होती है । हेमंत एवं शिशिर ऋतु में, अर्थात ठंड के दिनों में व्यायाम करने से उष्णता निर्माण होती है और दिनभर टिकती है । वसंत ऋतु में भी शरीर के कफ का प्रकोप होने से इस काल में भी व्यायाम करें । ग्रीष्म, वर्षा एवं शरद ऋतुओं में भी अल्प व्यायाम करें । व्यायाम के उपरांत शरीर को कष्ट न हो, इसप्रकार अंग रगड लें ।

 

Leave a Comment