अभ्यंग (मालिश)

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१. व्याख्या

संपूर्ण शरीर को अथवा शरीर के किसी भाग को तेल लगाकर मालिश करना, इसे ‘अभ्यंग’ कहते हैं ।

 

२. काल

आयुर्वेद में शरीर निरोगी रखने के लिए बताई गई दिनचर्या में अभ्यंग प्रतिदिन करने के लिए बताया है । अभ्यंग सवेरे शौचविधि हो जाने पर खाली पेट करना चाहिए । सूर्य मध्य पर होते समय अथवा भोजन के उपरांत अभ्यंग न करें ।

 

३. अभ्यंग किसे नहीं करना चाहिए ?

पचनशक्ति मंद होने पर; वमन, विरेचन इत्यादि आयुर्वेद में बताए गए पंचकर्म करने के पश्चात, पिछले दिन का अन्न पचन न हुआ हो; ऐसे ही सर्दी, बुखार जैसे रोगों में अभ्यंग न करें ।

 

४. अभ्यंग के लाभ

अ. अभ्यंग के कारण शरीर की थकान एवं वात दूर होता है ।

आ. रंग में निखार एवं कांति आने में सहायता होती है ।

इ. दृष्टि में सुधार होता है ।

ई. रक्ताभिसरण भली-भांति होता है ।

उ. त्वचा पर झुर्रियां, केश झडना जैसे विकार नहीं होते ।

ऊ. अभ्यंग के कारण वात के विकार, उदा. जोडों के दर्द, अर्धांगवात (पक्षाघात (hemiplegia)), मांसपेशियों की दुर्बलता इत्यादि विकार क्षीण होते हैं ।

ए. स्नायुओं की अकडन दूर होती है और अंग हलका होता है ।

ऐ. काम करने की क्षमता बढती है । शरीर छरहरा, फुर्तीला, लचीला एवं सुदृढ बनता है ।

ओ. मन प्रसन्न एवं उत्साही रहता है ।

औ. नियमितरूप से अभ्यंग करने से वृद्धावस्था देर से आती है ।

 

५. अभ्यंग के लिए उपयोग में लाए जानेवाले तेल

सामान्यत: अभ्यंग के नियमित उपयोग के लिए तिल के तेल का उपयोग करें । रोगों के अनुसार तेल का चयन किया जाता है । उदा. जोडों के दर्द जैसे वातविकार में निर्गुंडी तेल, सहचरादी तेल इत्यादि, त्वचारोगों के लिए नीम अथवा करंज का तेल, सिरा कौटिल्य के लिए (‘वेरिकोज वेन्स’) पिंड तेल अथवा प्रसारिणी तेल इत्यादि ।

 

६. पूर्वतैयारी

अभ्यंग के लिए एक समय पर सामान्यत: ५० मि.ली. तेल एक कटोरी में लेकर उसे गुनगुना कर लें । उसमें चिमटी भर सैंधव नमक मिलाएं । (सैंधव नमक मिलाने से तेल शरीर में भली-भांति अवशोषित होता है ।) तेल में थोडा कपूर मिलाएं । इसके साथ ही उसमें विभूति एवं २-४ बूंद गोमूत्र भी डालें ।

 

७. प्रार्थना

अभ्यंग आरंभ करने से पूर्व प्रार्थना करें । ‘हे श्रीकृष्ण, इस अभ्यंग से मेरे शरीर की पेशी-पेशी में विद्यमान काली शक्ति नष्ट होने दें । मांत्रिकों द्वारा मेरे शरीर में निर्माण किए कष्टदायक (काली) शक्ति के स्थान नष्ट होने दें । मेरे शरीर में चैतन्य का प्रवाह अखंड बहने दें । अभ्यंग करते समय ‘मैं आपका ही अभ्यंग कर रहा हूं’, ऐसा मेरा भाव होने दें ।’

 

८. अभ्यंग के प्रकार एवं कृति

८ अ. शिरोभ्यंग (सिर में तेल लगाना)

सर्वप्रथम दो चम्मच (ठंडा) तेल सिर पर (तालू पर) डालें एवं हाथों की उंगलियों से, बालें की जडों में धीरे-धीरे मर्दन करें । केश जोर से न रगडें ।

८ आ. कर्णपूरण (कान में तेल डालना)

एक के बाद दूसरे, ऐसे दोनों कानों में १० से १२ बूंदें गुनगुना तेल डालें । तेल डालने के पश्चात २ मिनट तक वह कान ऊपर की दिशा में करें ।

८ इ. पादाभ्यंग (पैरों को तेल लगाना)

एक चम्मच गुनगुना तेल पैर के तलुओं पर उंगलियों से आरंभ कर ऐडी तक लगाएं । तेल लगाते समय उंगलियां एवं तलवा जहां मिलते हैं, उस स्थान पर तथा तलवे के मध्यभाग पर अच्छा दाब दें । प्रतिदिन संपूर्ण शरीर को अभ्यंग करना संभव न हो, तो शिरोभ्यंग, कर्णपूरण एवं पादाभ्यंग तो नियमित करें । यह रात में सोते समय भी कर सकते हैं ।

८ ई. संपूर्ण शरीर को तेल लगाना

संपूर्ण शरीर को तेल लगाने के लिए पीठ के बल सोएं । चम्मच भर गुनगुना तेल नाभी पर डालें । १ से २ मिनट, यह तेल नाभी में अवशोषित होने दें । नाभी में तेल अवशोषित होने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है । तदुपरांत रही तेल लेकर नाभी के सर्व ओर सुई के कांटे की दिशा में गोल गोल मलें । नीचे दी गई सारणीनुसार अवयवों की मालिश निर्धारित दिशा में करें । आवश्यकतानुसार तेल की मात्रा बढा सकते हैं ।

शरीर के सामने के भाग में अभ्यंग हो जाने पर पेट के बल लेटकर अन्य दूसरे व्यक्ति की सहायता से पीठ एवं कटिप्रदेश में अभ्यंग करें । पीठ पर तेल लगाते समय आरंभ में कटीप्रदेश के मध्य में स्थित गहरे भाग पर नाभी समान ही १ से २ मिनट तेल रहने दें । तदुपरांत दूसरा व्यक्ति दोनों हथेलियों से रीढ के दोनों ओर, अंदर से बाहर की दिशा में गोल-गोल मर्दन करते हुए नीचे से ऊपर की दिशा में कंधों तक जाएं । गर्दन पर ऊपर से नीचे की दिशा में अभ्यंग करें ।

८ ई १. अभ्यंग की कृति (अवयवों के अनुसार अभ्यंग की दिशा)
अवयव अभ्यंग की दिशा
१. पैर का तलवा उंगलियों से ऐडी की ओर
२. पेट नाभी के आसपास घडी के कांटे की दिशा में गोल
३. दोनों हाथ उंगलियों से कंधों तक
४. दोनों पैर उंगलियों से जांघों तक
५. कोहनियां, घुटने, कलाईयां, टखने (ankle) कंधे अंदर से बाहर गोल
६. गला नीचे से ऊपर
७. गर्दन ऊपर से नीचे
८. छाती हृदय के सर्व ओर घडी के कांटे की दिशा में गोल
९. कटी एवं पीठ कटी से ऊपर कंधों तक रीढ के दोनों ओर, नीचे से ऊपर, गोल गोल
१०. रीढ (spine) नीचे से ऊपर

 

९. व्यायाम

अभ्यंग के उपरांत अपनी-अपनी क्षमतानुसार व्यायाम करें । इससे तेल शरीर में अवशोषित होने में सहायता होती है ।

 

१०. मर्दन करना (शरीर दाबना)

व्यायाम के उपरांत संपूर्ण शरीर का मर्दन करें । मर्दन करते समय हाथ-पैरों की उंगलियों से आरंभ कर हृदय की दिशा में शरीर दबाएं । दाब उतना ही दें कि उसे अच्छा लगे ।

 

११. स्नान

अभ्यंग के उपरांत ठंडी हवा में न घूमें । अभ्यंग के १५ से २० मिनटों पश्चात बेसन अथवा मुलतानी मिट्टी लगाकर उष्ण अथवा गुनगुने पानी से स्नान करें ।

 

१२. कृतज्ञता

हे श्रीकृष्णा, आपकी कृपा से साधना के लिए मिली इस देह का अभ्यंग आप ही ने करवा लिया, इसके लिए मैं आपके श्रीचरणों में कृतज्ञ हूं । ‘इस अभ्यंग से प्राप्त हुए बल का उपयोग धर्मकार्य के लिए होने दें और ‘यह देह मेरी नहीं, आपकी ही है’ ऐसा भाव अंतर में रहने दें, यही आपके श्रीचरणों में प्रार्थना है !’

– वैद्य मेघराज पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा (फाल्गुन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी, कलियुग वर्ष ५११४ (८.४.२०१३))

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