हाथ-पैरों को तेल किस दिशा में लगाएं ?

वैद्य मेघराज पराडकर

 

१. आयुर्वेदानुसार

आयुर्वेद के मूल संस्कृत ग्रंथों में हाथ-पैरों को ‘तेल ऊपर से (कंधे अथवा जांघों से लेकर उंगलियों तक) लगाएं अथवा नीचे से ऊपर (उंगलियों से कंधे अथवा जांघों तक) लगाएं’, इस संदर्भ में कोई भी उल्लेख नहीं मिलता । आयुर्वेद में ‘अनुसुखं मर्दयेत्’ अर्थात ‘जिस पद्धति से रोगी को अच्छा लगेगा, उस पद्धति से मर्दन करें’, ऐसे बताया है ।

 

२. व्यवहार में उपयोग में लाई जा रही पद्धति

व्यवहार में हाथ-पैरों को ऊपर से नीचे एवं नीचे से ऊपर, इन दोनों प्रकारों से तेल लगाने की पद्धति है । दोनों प्रकारों में रक्ताभिसरण पर होनेवाले परिणाम में विशेष अंतर नहीं है । नीचे से ऊपर तेल लगाने पर तेल लगाने से नसों का रक्त हृदय की ओर ढकेला जाता है । ऊपर से नीचे तेल लगाने से धमनियों के (रोहिणी के) रक्त को गति मिलती है और वह आगे नसों द्वारा हृदय की ओर ढकेला जाता है ।

 

३. शरीरशास्त्र के अनुसार दोनों प्रकार में तेल लगाने के संदर्भ में विवेचन

३ अ. नीचे से ऊपर तेल लगाना

१. इसमें शरीर के केश की विपरीत दिशा में तेल लगाया जाता है । इससे अत्यंत कम तेल लगाते समय घर्षण के कारण किसी केश का मूल टूटने से बालतोड (बाल टूटने से होने वाला फोडा) होने की संभावना होती है; परंतु तेल अधिक लगाने से घर्षण नहीं होता और बालतोड होने की संभावना भी घटती है ।

२. नसें फूली होने से (वेरिकोस वेन्स का विकार होने पर) हलके हाथों से नीचे से ऊपर की दिशा में तेल लगाने से वेन्स में जमा रक्त आगे सरकने में सहायता होती है । इस विकार में वेन्स पर दाब न दें ।

३. हाथ-पैरों की मांसपेशियों के तंतु ऊपर से नीचे की दिशा में रचे होते हैं । इसकी विपरीत दिशा में तेल मलने पर मांसपेशियों के तंतु तन जाते हैं और उनके सुदृढ बनने में सहायता होती है ।

४. एक मतानुसार इस दिशा में तेल लगाने से वे रोमरंध्रों से (शरीर पर के केश की जडों से) शरीर में अधिक मात्रा में अवशोषित होता है ।

३ आ. ऊपर से नीचे तेल लगाना

१. इसमें शरीर पर केश की दिशा में तेल मलने से केश की जडें तानी नहीं जातीं ।

२. नसें फूली होने से इस दिशा में तेल न लगाएं । इसलिए कि नसों पर दाब पडने से हानि हो सकती है । फूली हुई नसों (वेन्स) पर बिना दबाव दिए अत्यंत ही हल्के हाथों से इस दिशा में तेल मालिश करने से हानि की संभावना दूर हो जाती है ।

३. शरीर के केश के मूल में चेतातंतु (मज्जातंतु) होते हैं । ऊपर से नीचे तेल लगाने से इन चेतातंतुओं के माध्यम से मांसपेशियों को शिथिल होने की संवेदना मिलती है । इससे इस दिशा में तेल लगाने से मांसपेशियां कुछ समय के लिए शिथिल होकर उन्हें आरामदायी लगता है ।’

– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१०.७.२०१७)

 

आयुर्वेदानुसार तेल ऊपर से नीचे लगाना एवं मर्दन नीचे से ऊपर करना, यह पद्धत योग्य होना

वैद्य पू. विनय भावे

‘वात, पित्त एवं कफ, इन प्रकृतियों के अनुसार मर्दन की दिशा नहीं बदलती । हाथ-पैरों को तेल लगाते समय वह सदैव ऊपर से नीचे लगाएं और मर्दन नीचे से ऊपर, अर्थात हृदय की दिशा में करें । हृदय की दिशा में मर्दन करने से नसों (वेन्स) का रक्त हृदय की ओर ढकेल दिया जाता है और सुलभता से रक्तप्रवाह होने में सहायता होती है ।’

– वैद्य (पू.) विनय भावे

विशेषज्ञ वैद्यों से विनती !

‘हाथ-पैरों को किस दिशा में तेल लगाने पर कौन से लाभ होते हैं और उसका शास्त्र क्या है’ इस विषय में उपरोक्त जानकारी के अतिरिक्त अन्य जानकारी हो, तो कृपया आगे दिए गए पते पर भेजें । इस जानकारी का आयुर्वेद के प्रसार के लिए उपयोग होगा ।

संपर्क : वैद्य मेघराज माधव पराडकर, २४/ब, सनातन आश्रम, रामनाथी, बांदिवडे, फोंडा, गोवा. पिन – ४०३४०१.

ई-मेल : [email protected]

Leave a Comment