क्या गंगा नदी में डुबकी लगाने से हमारे पाप धुल जाऐंगे ?

लाखों की संख्या में श्रद्धालु गंगा जी में स्नान कर डुबकी लगाते हैं । डुबकी लगाने से हमारे पाप धुल जाऐंगे ऐसे विचार से डुबकी लगाते हैं । हमारी गंगा मैया में आस्था रहती है, और हमारी श्रद्धा के अनुसार हमें उसका पुण्य भी मिलता है ।

परंतु क्या केवल गंगा में डुबकी लगाने से हमारे पाप धुल जाते हैं ? इसका भावार्थ क्या है और प्रत्यक्ष में हमें क्या करना चाहिए जिससे हमारे पापों का क्षालन हो । हमें गंगा मैया में डुबकी लगाते समय हम गंगा मैया की शरण जा रहे हैं ऐसा भाव होना चाहिए । हमसे जाने अनजाने में बहुत से पाप और गलतियां हो जाती हैं । ऐसे पाप और गलतियों के लिए हमें गंगा मैया की शरण में जाकर उसके लिए क्षमा याचना करनी चाहिए । मन में पश्‍चाताप होना चाहिए कि ऐसे जाने अनजाने में पाप हमसे दोबारा न हों इसके लिए गंगा मां से शरणागत भाव से प्रार्थना करनी चाहिए । तब हमारे पापों का क्षालन होता है ।

कितने लोग गंगा मैया में नहाते समय साबुन का उपयोग करते हैं अथवा वहां अपने कपडे धोते हैं । जिससे गंगा में साबुन का पानी जाता है । या पॉलिथीन इत्यादि में पूजा की सामग्री अथवा निर्मालय प्रवाहित कर देतेे हैं ।

गंगा को स्वच्छ रखना यह हमारा धार्मिक कर्तव्य है । गंगा भारत की ही नहीं, अपितु विश्‍व की अमूल्य धरोहर है । हिन्दू धर्म मेेंं तो उसे देवी ही मानते हैं । हम कहते हैं न गंगा दर्शन से भी पाप नष्ट होते हैं, तो जब भी हम गंगा तट पर जाएं तो हमे भाव रखना होगा कि हम गंगा देवी की गोद में ही आए हैं और गंगाजी को स्वच्छ और पवित्र रखने से ही हमें इनके दर्शनों का लाभ होगा । गंगा मैया के दर्शन करते समय भावपूर्ण हाथ जोडकर गंगा मैया का सूक्ष्म रूप आंखों के सामने लाना चाहिए और उनके समक्ष नतमस्तक होकर उन्हें प्रणाम करना चाहिए । गंगा का जल स्वयं में ही इतना पवित्र है कि वहां पर किसी साबुन का उपयोग करने की आवश्यकता ही नहीं है । कपडे भी गंगा तट पर न धोएं ।

गंगा मैया की उत्पति विष्णुजी के श्रीचरणोेंं के स्पर्श से हुई और फिर उच्च लोकों से होती हुई शिवजी की जटा से पृथ्वी पर अवतरित हुईं । इसलिए ऐसी गंगाजी का ईश्‍वरीय तत्त्व और चैतन्य टिकाए रखने से ही हमें गंगा दर्शन और गंगा स्नान का फल प्राप्त हो सकता है ।

जब भी गंगा नदी पर जा रहे हैं तो जैसे मनोरंजन हेतु किसी यात्रा में जा रहे हैं ऐसा न करते हुए, पूरी यात्रा के दौरान अधिक से अधिक गंगा मैया का स्मरण करें । हमे साक्षात गंगा मैया के ही दर्शन होनेवाले हैं ऐसा कृतज्ञता भाव रखें ।

गंगा तट पर की गई साधना का फल बहुत अधिक प्रमाण में मिलता है, इसलिए वहां जाने पर हंसी मजाक में अधिक समय न गंवाकर अधिक से अधिक नामजप और प्रार्थना करनी चाहिए । गंगा के आसपास का परिसर भी बहुत सात्त्विक होता है, अत: वहां जब जाएं तो ऐसा भाव रखें कि वहां की सात्त्विकता से मेरे स्थूल और सूक्ष्म, सभी देहों की शुद्धि हो रही है । इससे हमारी साधना होगी और हमें आनंद मिलेगा ।

गंगा नदी पर बहुत से धार्मिक अनुष्ठान व धार्मिक विधियां की जाती हैं । जैसे गंगा पूजन, गंगा की आरती, पूर्वजों का श्राद्ध, अपने प्रियजनों का अस्थिविसर्जन, पितृ तर्पण आदि अनेक विधियां गंगाजी के तट पर की जाती हैं ।

इसके संदर्भ में पहले हम एक छोटा-सा शास्त्र समझ कर लेते हैं । द्वापर युग में जब कर्मकांड की साधना थी तब सभी विधियां यथोचित शास्त्र के अनुसार ही की जाती थीं । मंत्रों का उच्चारण एकदम शुद्ध होता था और उस समय कर्मकांड करनेवालों की अपनी साधना बहुत होती थी । जिससे ऐसे अनुष्ठान और विधियां करने से देवता उपस्थित होते थे और उसका हमें फल प्रदान करते थे । पर आज कलियुग में योग्य पुजारी या कर्मकांड करनेवालों को ढूंढना इतना सरल नहीं, इसलिए हमें जो भी मिलते हैं या हमारी पहचान के हों हम उनसे ही विधि करवा लेते हैं । इसलिए आज हमें देवताओं की अनुभूति नहीं आती अथवा उसका उतना फल भी हमें प्राप्त नहीं हो पाता।

पर ऐसा नहीं है कि कलियुग में देवी-देवता नहीं हैं अथवा हम उनकी अनुभूति नहीं ले सकते । देवी-देवता तो आज भी हैं, अगर हम स्वयं में उनके प्रति भाव बढाएं, उनके प्रति शरणागतभाव से प्रार्थना और कृतज्ञता व्यक्त करें, तो आज भी हमें देवी-देवताओं की अनुभूति होती है, उनका आशीर्वाद मिलता है ।

इसलिए जब भी कोई विधि गंगाजी के तट पर करें, तब साक्षात गंगा मैया वहां उपस्थित हैं और मन ही मन में भावपूर्वक उनका आवाहन करें, भाव रखें हम सब उनकी शरण में ही विधि कर रहे हैं, विधि में होनेवाली त्रुटियों के लिए उनसे क्षमा मांगे । और विधि सफल होने के लिए शरणागत भाव से प्रार्थना करें । तब उस विधि से हमें आध्यात्मिक लाभ होकर हमारी साधना भी होगी ।

गंगाजी को फूल अर्पण करते समय साक्षात गंगा मैया के चरण अपने आंखों के सामने लाएं और भावपूर्वक प्रेम से जैसे उनके श्रीचरणों में पुष्प रख रहे हैं इस प्रकार जल में पुष्प छोडें । इससे हमारी साधना होगी ।

गंगा मैया की आरती करते समय गंगा मैया का रूप आंखों के सामन लाएं और फिर भक्ति भाव से आर्तता से उनकी आरती करें ।

हम त्योहारों पर अथवा धार्मिक आयोजनों पर घर में जल का छिडकाव करते हैं । गंगा की एक छोटी सी बूंद भी इतनी चैतन्यदायी और पवित्र होती है कि केवल उन बूंदों के छिडकाव से भी घर की शुद्धि होती है । इसलिए घर में गंगा जल का छिडकाव करते समय कृतज्ञता भाव रखें और पहले प्रार्थना करें फिर घर की शुद्धि करें । गंगा जल स्वयं ही बहुत पवित्र है । पर प्रार्थना करने से उसका ईश्‍वरीय तत्व कार्यरत होता है और उसका हमें आध्यात्मिक स्तर पर लाभ होता है ।

हम गंगा जल लेकर संकल्प करते हैं । तब केवल गंगा जल हाथ में लेकर कुछ मंत्रों से संकल्प करते हैं परंतु तब ऐसा भाव रखें कि हम गंगा जी के सामने शरणागत भाव से खडे होकर संकल्प कर रहे हैं और गंगा मैया वह संकल्प सफल होने के लिए आशीर्वाद दे रही हैं तब हमें उस संकल्प का पूरा लाभ मिलेगा ।

इस प्रकार गंगा माता के प्रति भक्ति भाव बढाने से हम गंगा माता का स्थूल और सूक्ष्म दोनों स्तरों पर लाभ ले सकते हैं । इसलिए गंगा माता से ही प्रार्थना करेंगे कि वही हमसे इस प्रकार अपनी भक्ति करवा लें ।

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