रुद्रावतार हनुमानजी

विष्णु अवतार श्रीराम के भक्त हनुमानजी को रुद्रावतार कहा जाता है !

हनुमानजी को रुद्र का अवतार भी मानते हैं । स्कंदपुराण (अवंतीखंड ८४), ब्रह्मवैवर्त पुराण (कृष्णजन्मखंड ६२), नारदपुराण (पूर्वखंड ७९), शिवपुराण (शातारुद्रसंहिता २०) आदि पुराणों में रुद्र व हनुमान का नाता स्पष्ट किया है । हनुमानजी को ग्यारहवां रुद्र माना जाता है । भीम, यह एकादश रुद्र का एक नाम है । इसी कारण समर्थ रामदासजीने हनुमानजीको ‘भीमरूपी महारुद्र’ संबोधित किया है । हनुमानजी की पंचमुखी मूर्ति रुद्रशिव के पंचमुखी प्रभाव से निर्माण हुई है । रुद्रावतारी पंचमुखी हनुमानजी का मंत्र – ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय पंचवदनाय पूर्वमुखे सकलशत्रुसंहारकाय रामदूताय स्वाहा ।

 

रुद्रावतार हनुमानजी का श्रीराम के जीवन में
आकर रावण वध में सहयोग करने का क्या कारण है ?

हनुमानजी को शिव के रुद्रावतार में एकादश रुद्र कहा गया है । रावण ने उपासना करते समय अपने दस सिरों को काटकर महामृत्युंजय भगवान शिव की आराधना की थी । परंतु ग्यारहवां रुद्र को संतुष्ट करने का प्रयास रावण ने नहीं किया, इस कारण वह असंतुष्ट ही रह गया और यही रुद्र त्रेतायुग में हनुमानजी के रूप में अवतरित हुआ । हनुमानजी का यह अवतार रावण के विनाश के लिए भगवान श्रीराम के सहायक के रूप में हुआ ।

 

हनुमानजीके विविध रूप सभी को ज्ञात हैं ।
इन रूपों से हम अपने जीवन में क्या सीख ले सकते हैं ?

अ. सप्तचिरंजीव के रूप में हनुमानजी रक्षा तथा मार्गदर्शन का कार्य करते हैं तथा कलियुग में भी जहां-जहां श्रीराम का गुणगान गाया जाता है, वहां सूक्ष्मरूप में उपस्थित रहकर, रामभक्तों को आशीर्वाद देकर अभय प्रदान करते हैं ।

आ. हनुमानजी की श्रीरामजी के प्रति असीम दास्यभक्ति और शौर्य के कारण उनके दास हनुमान तथा वीर हनुमान ये २ रूप विख्यात हैं । आज भी आवश्यकता के अनुरूप हनुमानजी इन २ रूपों को धारण कर उचित कार्य करते हैं ।

इ. साधना करनेवाले किसी भी जीव को यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हनुमानजी के सूक्ष्मरूप के कारण हमारे अंतःकरण में बसे अहंकाररूपी रावण की लंका का दहन करने पर हमारे हृदय में रामराज्य आरंभ होता है ।

 

ऐसा कौन-सा कारण है कि जिससे देवताओं में भी हनुमानजी को श्रेष्ठ माना जाता है ?

हनुमानजी ४ कारणों से देवताओं में श्रेष्ठ हैं । पहला कारण यह कि सभी देवताओं के पास अपनी-अपनी शक्तियां हैं, पर वे अलग हैं । जैसे विष्णु के पास लक्ष्मी, शिव के पास पार्वती; परंतु हनुमानजी की शक्ति उनमें ही है । वे अपनी ही शक्ति से संचालित होते हैं । दूसरा कारण यह कि वे स्वयं इतने शक्तिशाली होने पर भी ईश्‍वर के प्रति पूर्ण समर्पित हैं और स्वयं को प्रभु का दास कहते हैं । तीसरा यह कि वे अपने भक्तों की सहायता तुरंत ही करते हैं और चौथा कि वे आज भी देहधारी हैं । महावीर बजरंगबली की शक्ति इतनी प्रभावी है, उनके समक्ष किसी भी प्रकार की मायावी शक्ति टिक नहीं सकती ।

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