वीर्यवान्, बुद्धिसंपन्न, महातेजस्वी और महाबलि हनुमान !

१. वाल्मीकि रामायण में हनुमान जन्म की कथा

वाल्मीकि रामायण में किष्किंधा कांड, सर्ग ६६ में हनुमान के जन्म के वर्णन की कथा आगे प्रस्तुत है ।

१ अ. पवन देवता के आशीर्वाद से अंजना को
वीर्यवान्, बुद्धिसंपन्न और महातेजस्वी पुत्र प्राप्त होना

पूर्व में पुंजिकस्थला नामक एक अप्सरा थी । किसी शाप के कारण उसे वानरी रूप प्राप्त हुआ । उसका नाम अंजना था । उसने एक बार मनुष्यरूप धारण कर, उत्तम वस्त्र और अलंकार धारण कर पर्वत पर विचरण कर रही थी । तब पवन देव के कारण उनकी चुनरी उड गई । पवनदेव उस पर मोहित हो गए और उसे आलिंगन दिया । वह घबराकर बोली, ‘एकपत्नीव्रतम् इदं को नाशयितुम् इच्छति ।’ अर्थात मेरा पतिव्रत धर्म कौन नष्ट करना चाहता है ? (संदर्भ : वाल्मीकी रामायण, कांड ४, सर्ग ६५, श्‍लोक १६)

इस पर पवन देव बोले, ‘मैं तुम्हारे पतिव्र्रता धर्म को भंग नहीं कर रहा । डरो मत ! मैंने मन से तुम्हें आलिंगन दिया है । तुम्हें वीर्यवान्, बुद्धिसंपन्न, महातेजस्वी, महाबली और महापराक्रमी पुत्र होगा । आगे अंजनी को वैसा ही पुत्र हुआ ।

१ आ. फल समझकर सूर्य को खाने के लिए उनकी ओर लपके
बालक हनुमान पर इंद्र का क्रोधित होकर वज्र फेंकना, इंद्र के वज्र को मान देने
के लिए बालक हनुमान द्वारा वज्रप्रहार अपनी ठोडी पर झेलना और तब से हनुमान नाम पडना

सूर्योदय हो रहा था । उगते सूर्य का लाल गोला देखकर उसे पका फल समझकर हनुमान ने आकाश में सूर्य की दिशा में उडान भरी । इस पर इंद्र ने क्रोधित होकर उन पर अपना वज्र फेंका । विशाल पर्वतों का चूर्ण करनेवाले सामर्थ्यवान हनुमानजी ने केवल इंद्र के वज्र को मान देने के लिए उसे अपनी ठोडी पर झेल लिया और झूठमूठ के लिए मूर्छित हो गए । तब से उन्होंने हनुमान नाम धारण किया । हनुमान शब्द की व्युत्पत्ति इसप्रकार है हनुः अस्य अस्ति इति । अर्थात जिसकी ठोडी विशेष है, ऐसे वज्रांग (वज्र समान अंग है जिसका) कहलाने लगे । उसी का अपभ्रंश होकर बजरंग नाम पडा ।

हनुमान ने जन्म से ही सूर्यबिंब की ओर भरी उडान से कुंडलिनी शक्ति जागृत हो गई थी ।

 

२. अंजनीमाता समान तेजस्वी वीरमाता की कोख से जन्मे तेजस्वी पुत्र हनुमान !

२ अ. हनुमानजी की विनती पर श्रीराम का अंजनीमाता से मिलने जाना और
माता के सामने उनके पुत्र की स्तुति न करने के लिए हनुमानजी का श्रीराम को मना करना

रावणवध और सीताशुद्धि के उपरांत प्रभु रामचंद्र अयोध्या लौटे, तो रास्ते में ऋष्यमूक पर्वत पर कुछ समय विश्राम के लिए रुके । इस पर्वत पर हनुमानजी की पूज्य माता तपश्‍चर्या कर रही थीं । अपनी माता को भगवान दर्शन दें, ऐसी विनती हनुमानजी ने प्रभु रामचंद्रजी से की । तदुपरांत प्रभु रामचंद्र लक्ष्मण और सीता को लेकर हनुमान अंजनी माता से मिलने निकले । तब हनुमान ने श्रीराम, लक्ष्मण और सीता से विनती की कि वे रत्तीभर भी उनकर प्रशंसा न करें ।

२ आ. हनुमान ने रावणवध स्वयं न कर श्रीरामप्रभु
को कष्ट दिया, इससे व्यथित अंजनी माता का क्रोधित होना

अंजनीमाता के सामने जाते ही श्रीराम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान ने उन्हें नमस्कार किया और रावणवध के युुद्धसमय का समग्र वर्णन संक्षेप में बताया । बोलने के प्रवाह में हनुमान ने प्रशंसा करने की बात मना करने पर वे भूल गए और अंजनीमाता के समक्ष हनुमानजी की बहुत स्तुति की । वैसे किसी भी माता को अपने पुत्र की स्तुति सुनकर अत्यंत आनंद हुआ होता; परंतु वे व्यथित थीं कि उनके पुत्र ने रावणवध स्वयं क्यों नहीं किया ? भगवान को क्यों कष्ट दिया । वे अत्यंत क्रोधित होकर बोलीं,

हा कां माझ्या उदरी आला । गर्भीहुनी का नाहे गळाला ।
आपण असतां कष्टवीला । स्वामी कां राम ॥
माझी ये दुग्धाची हे प्रौढी । कळिकाळाची नरडी मुरडी ।
रावणादिक बापुडी । घुंगुर्डी काय ? ॥
क्षणामधे रावण वधुनी । जरि कां आणिता राघवपत्नी ।
तरि पुत्राचा माझे मनी । उल्हास होता ॥ समर्थ रामदास (संदर्भ : अंजनी गीत, ओवी ८ ते १०)

अर्थ : यह हनुमान क्यों मेरे कोख से जन्मा है ? गर्भ में ही क्यों नहीं समाप्त हो गया ? स्वयं इतना शूर होते हुए भी भगवान को क्यों रावणवध का कष्ट दिया ? मेरे दूध में कलिकाल को भी नष्ट करने का सामर्थ्य होते हुए भी रावण की बात ही क्या ? हनुमान क्षण भर में रावण का वध कर सीतामाता को छुडा लाया होता, तो मुझे अपने पुत्र पर अभिमान होता ।

२ इ. श्रीरामप्रभु की आज्ञा न होने से हनुमान ने रावण का
वध न करना, ऐसा सीतामाता द्वारा क्रुद्ध अंजनीमाता को समझाना

अंजनीमाता ने गर्जना कर अपने स्तन से दूध की धार छोडी, उस समय सामने की पत्थर की दीवार भेदकर तीन टुकडे कर दिए । अपनी चोटी से लंका को लपेटकर लंका उठाकर दिखाई । तब प्रभु रामचंद्र सहित सभी आश्‍चर्यचकित हो गए । उन्होंने अंजनीमाता की स्तुति की । तब सीता माता ने यह कहते हुए अंजनीमाता का क्रोध शांत किया कि श्री रामप्रभु की आज्ञा न होने से हनुमान ने अकेले रावण का वध नहीं किया और मुझे मुक्त नहीं करवाया । अंजनीमाता समान तेजस्वी वीरमाता की कोख से हनुमान जैसे बलशाली और महापराक्रमी पुत्र जन्म लेता है, इसमें आश्‍चर्य कैसा !

डॉ. र.शं. तथा दादा घाटे (संदर्भ : मासिक आदिमाता, एप्रिल २००४)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

2 thoughts on “वीर्यवान्, बुद्धिसंपन्न, महातेजस्वी और महाबलि हनुमान !”

    • Namaskar,

      Where do you want to invoke the Deity Hanuman? The rituals of invoking depend in what you want to invoke the Deity.

      Yes, celibacy is necessary, but please learn what this celibacy means from a spiritual authority. Because celibacy is not just about being single or not getting married, but there are other rules also, as well as there are references in the scriptures where in it is given how one can follow celibacy even after marriage.

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