युवकों, समय का सुनियोजन कैसे करेंगे ?

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

जीवन की अवधि सीमित है; इसलिए ईश्‍वरप्राप्ति हेतु प्रत्येक कृति को समय रहते करना आवश्यक है । – परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

 

समय का महत्त्व

मनुष्य जीवन में समय के जितनी अन्य कोई भी बात महत्त्वपूर्ण है । अंग्रेजी में ‘टाईम इज मनी’ एक कहावत है अर्थात ‘समय ही संपत्ति है ।’ पैसें का घाटा प्रयासों से भरना संभव होता है; परंतु गंवाया हुआ आज का अमूल्य समय पुनः वापस नहीं मिलता । हमारा गंवाया गया जीवन लाखों रुपए का व्यय कर भी वापस नहीं लाया जा सकता !

 

समय का सदुपयोग करनेवाले वीर सावरकरजी !

वीर सावरकर जून १९०६ में बैरिस्टर बनने हेतु इंग्लैंड गए । इस अवधि में वे शिक्षा पूर्ण कर बैरिस्टर बने । उन्होंने शिक्षा लेते समय ही मैजनी का चरित्र और ‘१८५७ का स्वतंत्रतासंग्राम’ इन ग्रंथों को लिखकर पूर्ण किया । उसी समय वे पुणे के दैनिक ‘काळ’के लिए संवाददाता के रूप में समाचार भेजते थे । उसी समय उन्होंने ‘इंडिया हाऊस’ में सेनापती बापट के साथ बमविद्या के सफल प्रयोग किए और अभिनव भारत इस क्रांतिकारी संगठन के लिए युवकों का संगठन किया । उन युवकों में से एक मदनलाल धिंगरा ने आगे जाकर कर्जन वाईली को मार डाला । आयु के २३ से २६ के कालखंड में सावरकरजी ने एक ही समयपर अनेक कार्य संपन्न किए । आप भी यदि निश्‍चय करेंगे और ध्येयनिष्ठ होंगे, तो आप के द्वारा भी समय का सदुपयोग होकर उससे भव्यदिव्य कार्य संपन्न होंगे, इसके प्रति आश्‍वस्त रहें !

 

समय व्यर्थ गंवाने के लिए कारणभूत दोष और उसका उपाय

१. समय के प्रति गंभीरता न होना

हमें प्रकृति से हवा, पानी आदि कई बातें निःशुल्क मिलती हैं; इसलिए हमें उनका महत्त्व नहीं लगता । समय की गंभीरता न होने से अपना समय व्यर्थ गंवाए जाने के विषय में अथवा अन्यों का समय व्यर्थ गंवाने के विषय में कुछ नहीं लगता । जो समय का सम्मान और सदुपयोग करता है, उसका समय और लोग भी सम्मान करते हैं ।

२. व्यर्थ कृतियां करना सुखदायक लगना

कई लोग मनोरंजन अथवा सुखप्राप्ति हेतु इंटरनेट में मगन हो जाते हैं अथवा वीडियो गेम खेलने में मगन रहते हैं । इसमें उनका बहुत समय व्यर्थ जाता है । कई लोग व्यर्थ गप्पे मारने में अथवा पडोसियों से झगडा करने में अपना समय व्यर्थ गंवाते हैं ।

समय का महत्त्व मनपर अंकित करने हेतु हम मन के निम्नांकित स्वसूचना दे सकते हैं –

‘समय का महत्त्व न होना, इस दोष के कारण जब मैं (इसमें समय व्यर्थ गंवानेवाला कृत्य लिखें ।) इस कृत्य में व्यर्थ समय गंवाता रहूंगा, तब मुझे उसका तीव्रता से भान होगा और तब मैं तुरंत ही (नियोजित कृत्य लिखें ।) करूंगा ।

३. आलस

समय का पालन और उसका सदुपयोग न होने के पीछे आलस कारणभूत होता है । आलस के कारण समय का पालन अथवा उसका सदुपयोग करने के संदर्भ का उत्साह न्यून होता है और उससे व्यक्ति अकार्यक्षम रहने में अथवा पलंगपर निरंतर लेटे रहने में सुख मानता है । कई बार नित्य कार्य करने में आलस दिखाने से वो काम अन्य महत्त्वपूर्ण कामों में और समय में बाधा उत्पन्न करते हैं अथवा अधिक समय लेते हैं, उदा. गाडी में पेट्रोल भरने में आलस दिखाने से यदि किसी परिजन को चिकित्सालय ले जाने की स्थिति आती है, तो गाडी का पेट्रोल समाप्त होने के कारण पेट्रोल भरने में महत्त्वपूर्ण समय देना पडता है, साथ ही गाडी में समय रहते पेट्रोल न भरने के कारण गाडी बीच में ही बंद पड जाती है । ऐसे समय में उसे सडक के किनारे लगाकर पेट्रलपंपपर ऑटो से जाना और वहां से बोतल में पेट्रोल लेकर पुनः गाडी के पास आने में समय और ऑटो का किराया इन दोनों का अपव्यय होता है ।

‘आलस’ दोष के निर्मूलन हेतु हम मन को निम्नांकित स्वसूचना दे सकते हैं ।

‘जब आलस के कारण मैं गाडी में पेट्रोल डालना टालूंगा, तब मुझे उसक तीव्रता से भान होगा और तब मैं तुरंत ही गाडी में पेट्रोल डालने के लिए जाऊंगा ।’

उक्त सूचनाएं दिन में १५ बार देनी आवश्यक हैं ।

 

समय का सदुपयोग हो; इसके लिए करने आवश्यक प्रयास

१. खाली समय का उपयोग करना

नित्य जीवन में हमें कुछ मात्रा में खाली समय उपलब्ध होता है । इस खाली समय का उपयोग कैसे करना चाहिए, यह उस व्यक्तिपर, साथ ही तत्कालीन स्थितिपर निर्भर होता है । उस समय की स्थिति में निरंतर बदलाव हो सकते हैं; किंतु उस व्यक्तिपर निर्भर खाली समय का हम उपयोग कर सकते हैं । जो व्यक्ति उत्साही, ध्येयनिष्ठ और सकारात्मक होता है, वह खाली समय का सर्वोत्तम उपयोग कर सकता है । इसके विपरीत चिंताग्रस्त, आलसी और नकारात्मक विचारवाला व्यक्ति खाली समय का दुरूपयोग ही करता है । खाली समय एक बडी संपत्ति है; इसलिए उसका एक क्षण भी व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए;क्योंकि उस समय को गंवाने का अर्थ हमारा सामर्थ्य गंवाने जैसा है ।

२. नियोजित कार्यों को समय रहते ही संपन्न कराना

प्रतिदिन के काम समयपर ही करने चाहिएं । उन्हें विलंब से किया, तो वह महंगा पड सकता है । आज का महत्त्वपूर्ण काम को यदि कलपर ले जाया गया, तो वह अधिक ही कठिन लगने लगता है । इस प्रकार से काम को आगे ले जाने से कई बार वह काम कभी भी समयपर पूर्ण नहीं होता और ऐसे व्यक्ति से सफलता भी दूर भागती है ।

३. घडी की ओर ध्यान देना

सडी की ओर दृष्टि घुमाकर अपने कार्य से संबंधित समय की प्रगति की समीक्षा करनी चाहिए । घडी को अपना सहायक मानकर कार्य किया, तो समय का नियोजन करना सहजता से संभव है ।

४. समयसारणी बनाकर उसके अनुसार कृत्य करना

पूर्वनियोजित स्थानपर, पूर्वनियोजित समयपर, पूर्वनियोजित पद्धति से तथा पूर्वनियोजित लोगों के सहयोग से काम करने से संबंधित विवरण को समयसारणी कहा जाता है । सुनिश्‍चित काम जितना महत्त्वपूर्ण होता है, उतना ही महत्त्वपूर्ण उसे कौन से स्थानपर और किस पद्धति से करना है, यह भी महत्त्वपूर्ण होता है, उदा. सरकारी कार्यालय में कोई काम करने में कितना समय लगेगा, इसका विवरण जितना महत्त्वपूर्ण होता है, उतना ही महत्त्वपूर्ण वह कार्यालय घर से कितनी दूरीपर है, इसका भी विवरण उतना ही महत्त्वपूर्ण हेता है । प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सुविधा के अनुसार स्वयं की स्वतंत्र समयसारणी बनानी चाहिए । उसमें प्रत्येक दिन समय के अनुसार क्या कृत्य करना है, इसका उल्लेख करें ।

पारिवारिक तथा कार्यालयीन समय का सदुपयोग करना, संदेश लिखकर लेना, कामों की व्यापकता निकालना, कृत्य करते समय उनकी सूची बनाना, प्रधानता सुनिश्‍चित करना, अन्यों की सहायता लेना, एक ही समयपर विविध कृत्य करना, अन्य विकल्पोंपर विचार करना इनके कारण कृत्य परिणारमकारी होते हैं । व्यक्तिगत समेटते समय प्रार्थना, नामजप अथवा स्वसूचना सत्र करना, भ्रमणभाषपर बोलते समय कचरा निकालना अथवा अन्य काम करने जैसे कृत्यों के कारण समय का सदुपयोग होता है ।

मनुष्यजन्म बार-बार नहीं मिलता; इसलिए मनुष्य जीवन में उपलब्ध समय जीवन का बहुमूल्य काल होता है । प्रत्येक व्यक्ति का जीवन सीमित और अनिश्‍चित है । इस सीमित और अनिश्‍चित काल में ही हमें मनुष्य जीवन का सार्थक करना है । इस समय का योग्य प्रकार से उपयोग कर अधिकाधिक समय का सदुपयोग अथवा देवता, देश और धर्म के लिए देना चाहिए । इसके लिए समय का अपव्यय टालकर परिश्रमपूर्वक कर्म करना आवश्यक है । ईश्‍वर से प्रार्थना कर नियोजन एवं कृत्य करने से कार्य को समय में पूर्ण करने हेतु सहायता होगी !

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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