वास्तु शुद्धि की पद्धतियां

वास्तु (घर) अथवा वाहन के अनुचित और कष्टदायक स्पंदन (वाइब्रेशन्स) दूर कर, उसमें अच्छे स्पंदन उत्पन्न करने की क्रिया को शुद्धि करना कहते हैं । वास्तु में कोई दोष न रह जाए, इसके लिए आजकल के वास्तुनिर्माण व्यवसायी (बिल्डर) एवं ग्राहक वास्तुशास्त्र का गंभीरता से विचार कर रहे हैं । परंतु, इस क्षेत्र में भी भ्रष्ट लोग प्रवेश कर चुके हैं । इसलिए, वास्तुशुद्धि के लिए अनावश्यक महंगी पूजा, वास्तु रचना में परिवर्तन आदि करना पडता है । ऐसा न करना पडे, इसके लिए, वास्तुदोष के दुष्परिणामों के कुछ उदाहरण और उन्हें दूर करने के लिए प्रचलित महंगी पद्धतियों की अपेक्षा सस्ती एवं सरल पद्धतियां आगे बताई जा रही हैं ।

 

वास्तुशुद्धि करनेवाले को वास्तुशुद्धि करने से पहले
१५ मिनट तक श्री गणेश अथवा उपास्यदेवता का नाम जपना चाहिए !

वास्तुशुद्धि करते समय उपास्यदेवता का नामजप मन में अथवा जोर से बोलकर करें । इसके अतिरिक्त, वास्तुशुद्धि आरंभ करने से पहले भी नामजप करना लाभदायक है । इसका कारण इस प्रकार है – संपूर्ण वास्तु से अनिष्ट शक्तियों को सदा के लिए निकालना, यह एक प्रकार से उन्हें दी हुई बडी चुनौती ही होती है । इसलिए, वास्तुशुद्धि करते समय अनिष्ट शक्तियों की ओर से विरोध होने की संभावना अधिक रहती है । इससे हमें आध्यात्मिक कष्ट हो सकता है । ऐसा न हो अथवा हमारी प्राणशक्ति घटकर थकान न आए, इसके लिए वास्तुशुद्धि आरंभ करने के १५ मिनिट पहले श्री गणेश का अथवा उपास्यदेवता का नामजप करना विशेष लाभदायक होता है । श्री गणेश के नामजप से प्राणशक्ति (जीवनी शक्ति) बढती है ।

 

वास्तुशुद्धि आरंभ करने से पहले प्रार्थना करें !

वास्तुशुद्धि आरंभ करने से पहले उपास्यदेवता से प्रार्थना करें, ‘हे देवता, आपकी कृपा से मैं (अपना नाम लें) के सर्व ओर रक्षाकवच बने, इस वास्तु से अनिष्ट शक्तियां निकाल जाएं और यहां के अनिष्ट स्पंदन नष्ट हों, यह प्रार्थना करता हूं ।’ वास्तुशुद्धि करते समय भी बीच-बीच में भी प्रार्थना करते रहें ।

 

वास्तुदोष से उत्पन्न होनेवाले दुष्परिणामों के कुछ उदाहरण

अ. शारीरिक

पेट के रोग, संधिवात, अपंगता इत्यादि ।

आ. मानसिक

चिंता, निराशा इत्यादि ।

इ. आर्थिक तथा पारिवारिक

लगातार आर्थिक हानि होना, घर में झगडे होना ।

ई. आध्यात्मिक

नामजप में बाधा आना; घर में अनिष्ट शक्तियां हैं, ऐसा आभास होना ।

 

वास्तुशुद्धि की कुछ सरल पद्धतियां

१. भंगार (निरुपयोगी वस्तुएं) निकालना

वास्तुशास्त्र के अनुसार प्रत्येक घर में, प्रत्येक कक्ष में लगभग ४७ प्रतिशत वस्तुएं अनावश्यक होती हैं; इन्हें वहां से बाहर कर शेष वस्तुओं को उचित ढंग से रखना चाहिए ।

२. भभूत की फूंक मारना

तीर्थक्षेत्र की अथवा यज्ञ की भभूत घर में बाहर की दिशा में फूंकना चाहिए । भभूत की सात्त्विकता से अनिष्ट शक्तियों को कष्ट होता है; इसलिए भभूत की फूंक मारने पर वे घर से निकल जाती हैं । घर में भभूत मिला जल छिडकने पर, उसका प्रभाव अधिक समय तक रहता है ।

३. गोमूत्र छिडकना

गोमूत्र छिडकते समय

घर में गोमूत्र छिडकने पर वहां से अनिष्ट शक्तियां निकल जाती हैं । गोमूत्र का धार्मिक कृत्य और शारीरिक आरोग्य की दृष्टि से विशेष महत्त्व है । अर्थात, गोमूत्र आरोग्यदायी होनेके साथ-साथ आध्यात्मिक दृष्टि से भी लाभदायक होता है । गोमूत्र न मिले, तब पानी में अगरबत्ती की राख मिलाकर वह घर में छिडकें । छिडकने की क्रिया प्रदक्षिणा के विरुद्ध होनी चाहिए ।

सर्वसाधारणतः वास्तुशुद्धि की क्रिया (उदा. गोमूत्र छिडकना) वास्तु में दाएं से बाएं भीत (दीवार) के किनारे चलते हुए करें ।

वास्तु के कष्टदायक स्पंदन समाप्त करना, यह वास्तुशुद्धि का उद्देश्य होता । अर्थात, वास्तुशुद्धि एक प्रकार की मारक क्रिया है । यह कार्य अधिक प्रभावकारी ढंग से होने के लिए घर में गोमूत्र छिडकना, नीम के पत्तों का धुआं करना, धूप अथवा अगरबत्ती जलाकर पूरे घर में घुमाना, भभूत फूंकना जैसी क्रिया घर में दाएं से बाएं (प्रदक्षिणा के विरुद्ध) भीत के किनारे चलते हुए करें ।

वास्तुशुद्धि की क्रिया घर में दाएं से बाएं करने पर वातावरण की शुद्धि अधिक होना

वास्तुशुद्धि की क्रिया दाएं से बाएं करने पर वातावरण में स्थित ईश्‍वर की मारक शक्ति सक्रिय होती है । यह जागृत शक्ति वायुमंडल में स्थित रज-तम के स्पंदनों को तुरंत नष्ट कर सकती है; क्योंकि मारक स्पंदनों के घूमने की गति दाएं से बाएं होती है । इस गति और पद्धति के अनुसार वास्तुशुद्धि की क्रिया करने से वातावरण अधिक मात्रा में शुद्ध होता है ।

४. धूप जलाना

धूप दिखाना
घर में धूप अथवा सात्त्विक अगरबत्ती जलाना अथवा नीम के पत्तों का धुआं करना ।

स्वभाव से ही कुछ अच्छी शक्तियां सुगंध की ओर आकर्षित होती हैं । इसीलिए, घर में धूप जलाने पर वे घर में आती हैं । इससे घर सात्त्विक बनता है । इसी प्रकार, धूप जलाने से कष्ट होने के कारण कुछ बुरी शक्तियां घर से निकल जाती हैं । धूप से प्रक्षेपित होनेवाले रजोगुणी पृथ्वी और जल तत्त्व से संबंधित तरंगों के कारण घर में कनिष्ठ देवताओं की तरंगें सक्रिय होती हैं । प्रथम, कनिष्ठ देवताओं को प्रसन्न करने पर, घर में अनिष्ट शक्तियों का आना घट जाता है ।

 

५. नामजप करना

वास्तुशुद्धि के लिए नामजप, अपने उपास्यदेवता और वास्तुदेवता से प्रार्थना करने के पश्‍चात, आरंभ करना चाहिए । ४ स्थूल उपायों से अधिक लाभदायक सूक्ष्म नामजप है । अर्थात, नामजप से सबसे अधिक लाभ होता है ।

अ. सनातन संस्था के प्रेरणास्रोत प.पू. भक्तराज महाराज के गाए हुए भजन उपलब्ध न हों, तब अन्य संतों के गाए भजन लगाएं ।

६. देवताओं के नामजप की पट्टियां लगाना

नामजप का निरंतर स्मरण रहे, इसके लिए अपनी आंखों के सामने देवता के नामजप की पट्टियां लगाना अधिक उपयोगी होता है । सनातन निर्मित इन पट्टियों पर नामजप के अक्षर और उसका चौखटा इस प्रकार बनाए गए हैं कि उनसे संबंधित देवता के स्पंदन घर में अधिकतम आते हैं । अनेक बार घर अथवा उसमें बने कक्ष की छत पृथ्वी के समांतर न होकर, थोडी ढालू होती है । पक्के भवनों की तुलना में खपडेवाले घरों में यह समस्या अधिक रहती है । इससे घर में अनुचित स्पंदन उत्पन्न होते हैं । यह समस्या ठीक करने के लिए देवताओं के नामजप की पट्टियां कक्ष की दीवारों पर एक सीधी रेखा में, समान ऊंचाई और समान अंतर पर लगाएं । इन नामपट्टियों से निकलनेवाली चैतन्यतरंगें अधिक मात्रा में भूमि के समांतर और सामने की ओर जाती हैं; इससे घर में सूक्ष्म-छत बनती है । इसी प्रकार, घर में अच्छे स्पंदन उत्पन्न होने के कारण उसकी अनिष्ट शक्तियों से रक्षा होती है । आगे दिए हुए चित्र से शुद्धीकरण की यह क्रिया ठीक से समझ में आएगी ।

नामपट्टियों का वास्तु-छत

 

घर की दीवारें उपदिशाओं में हों, तब वास्तु-छत लगाने की पद्धति

घर की दीवारें (पूर्व, पश्‍चिम आदि मुख्य दिशाओं के समांतर न होकर) आग्नेय, नैऋत्य आदि उपदिशाओं के समांतर हों, तब दो दीवारों के बीच डोरी लगाकर नामपट्टियों का वास्तु-छत बनाएं ।

खपडैल घर की भांति अनेक बार वास्तु की अथवा उसके कक्ष की छत भूमि के समांतर नहीं होती । इसलिए, उसमें अनुचित स्पंदन उत्पन्न होते हैं । इन्हें ठीक करने का सबसे सरल उपाय एक ही है, देवताओं की नामपट्टियां प्रत्येक कक्ष की दीवारों पर उपर दिए चित्र में दर्शाए अनुसार एक सीधी रेखा में लगाना । नामपट्टियों से निकलनेवाली चैतन्यतरंगें भूमि के समांतर और सामने की ओर जाती हैं । इससे, उस कक्ष में मुख्य छत के नीचे देवता के नाम का सूक्ष्म-छत बनता हैै और उस कक्ष में रहनेवाले की अनिष्ट स्पंदनों से रक्षा होती है । दो नामपट्टियों के बीच का अंतर १ मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए ।

 

वास्तुशुद्धि संच की सात्त्विकता लोलक उपकरण से प्रमाणित हुई !

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यताप्राप्त लोलक चिकित्सा-पद्धति’ से विविध वस्तुओं, वातावरण, व्यक्ति आदि में स्थित सकारात्मक अथवा नकारात्मक शक्ति को पहचाना जा सकता है । सकारात्मक शक्ति होने पर लोलक घडी की सूइयों की दिशा में घूमता है तथा नकारात्मक शक्ति होने पर वह घडी की सूइयों के विपरीत दिशा में घूमता है ।

वास्तुशुद्धि के विषय में एक साधक ने लोलक की सहायता से एक प्रयोग किया था । उसने एक वास्तु के दो चित्र बनाए । एक चित्र में वास्तुशुद्धि की नामपट्टियां लगाईं । दूसरे चित्र में कुछ नहीं लगाया । इसके पश्‍चात, दोनों चित्रों के ऊपर बारी-बारी से लोलक लटकाया । जिस चित्र में नामपट्टियां लगी थीं, उसके ऊपर लोलक लटकाने पर उसने सकारात्मक स्पंदन होने का संकेत किया तथा जिस चित्र पर नामपट्टियां नहीं लगी थीं, उसके ऊपर लोलक लटकाने पर उसने नकारात्मक स्पंदन का संकेत किया । इससे पता चलता है कि देवताओं की नामपट्टियां सात्त्विक होती हैं ।’ – श्री. प्रकाश करंदीकर, सनातन संस्था

 

धर्मशास्त्रानुसार वास्तुशुद्धि अवश्य करनी चाहिए !

पू. राजेंद्र शिंदे

कुछ साधक नए घर में प्रवेश करते समय पूछते हैं कि हमारे यहां प्रतिदिन साधकों का आना-जाना लगता रहता है, सत्संग भी होता रहता है । अतः, हम वास्तुशुद्धि नहीं करेंगे, तो चलेगा न ?’ ऐसे समय उन्हें निम्नांकित बातें ध्यान में रखनी चाहिए ।

१. घर आनेवाले साधकों में अनेक शौकिया और कार्यकर्ता भी होते हैं । उनका आध्यात्मिक स्तर हमें पता नहीं होता । इसलिए, उनके आने से अपेक्षित अध्यात्मिक लाभ नहीं होगा ।

२. किसी वास्तु में संत अथवा ६० प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर के साधक स्थायीरूप से रहते होंगे, तब वहां वास्तुशुद्धि करना आवश्यक नहीं रहता ।

३. किसी संत ने वास्तुशुद्धि करना मना किया हो, तब वास्तुशुद्धि न करें; क्योंकि वहां उस संत का संकल्प कार्य करता है ।

४. धर्मशास्त्रानुसार वास्तुशुद्धि करने से साधना अच्छी होने में सहायता होती है ।

– श्री. राजेंद्र शिंदे (सनातनके ६ वे संत पू. राजेंद्र शिंदे), सनातन आश्रम, देवद

 

वास्तुदोष दूर करने की सबसे सरल आध्यात्मिक पद्धतियां कौन-सी हैं ?

अधिकांशत: वास्तु में रहनेवालों के स्वभावदोष, धर्माचरण न करना अथवा वास्तु के अनुसार घर न बनने के कारण, वास्तु में कष्टदायक स्पंदन निर्माण होते हैं और इससे वास्तुदोष बढता है । वास्तु के कष्टदायक स्पंदन नष्ट कर, सात्त्विक स्पंदन निर्माण करने के लिए और इसकी पवित्रता बनाए रखने के लिए वास्तुशुद्धि करना, यह उत्तम आध्यात्मिक उपाय ईश्‍वर ने हमें दिया है । वास्तु में अयोग्य और कष्टदायक सपंदन दूर कर, उनमें अच्छे स्पंदन निर्माण करना, अर्थात शुद्धि करना है । वर्तमान में हम देखते हैं कि वास्तु में कोई भी दोष न रहे इसके लिए लोग बहुत प्रयास करते हैं । इसके लिए भवन निर्माण करनेवाले व्यावसायिक भी वास्तु विशेषज्ञ अर्थात आर्किटेक्ट  इन सबसे इस विषय में सलाह लेते हैं; पर इस क्षेत्र में हम क्या देखते हैं कि भ्रष्ट लोगों की संख्या बढ गई है । जिससे वास्तुशुद्धि के लिए अनावश्यक विधियां बताकर उनसे धन लूटने, वास्तु में फेर-बदल करना, इसप्रकार के गलत तरीके बढ रहे हैं । यदि हम आज किसी से वास्तुदोष दूर करने की बात करते हैं, तो वह हमें हजारों में उसका खर्चा बताएंगे । यह सब हम टाल सकते हैं ।

अब हम समझ लेंगे कि वास्तुदोष दूर करने के लिए सबसे सरल आध्यात्मिक पद्धतियां कौन-सी हैं ।

 

वास्तु को कुदृष्टि (बुरी नजर) न लगे, इसके लिए हम क्या-क्या उपाय करते हैं ?

वास्तु के कष्ट दूर करने के लिए काली गुडिया उल्टा टांगना, नजर बट्टू लगाना, चप्पल बांधना, द्वार के चौखट पर नाल टांगना, यंत्र लगाना जैसी कई उपाय योजनाएं हम लोग करते हैं । परंतु यह सब उपाय कनिष्ठ (छोटे) स्तर के हैं । इसलिए उनको मर्यादा आती है । हम कुछ समय तक ही उनके परिणाम देख सकते हैं । वास्तु के कष्ट सदा के लिए नष्ट करने के लिए आज हमें आध्यात्मिक स्तर के, अधिक परिणामकारक सरल उपाय पद्धतियों के बारे में समझकर लेंगे ।

ये सभी उपाय, वास्तुशुद्धि होने के लिए आध्यात्मिक स्तर के उपाय हैं । वास्तुशुद्धि कई प्रकार से की जाती है; परंतु शुद्धि करने से पहले हमें क्या ध्यान रखना चाहिए, यह हम सर्वप्रथम समझ लेंगे ।

वास्तुशुद्धि आरंभ करने से पहले हम अपने उपास्य देवता और वास्तुदेवता की शरण जाकर उनके श्रीचरणों में शरणागत होकर भावपूर्ण प्रार्थना करेंगे । ‘हे देवता, आपकी कृपा से मेरे चारों ओर (यहां अपना नाम लेना) सरंक्षक कवच बनने दें तथा इस वास्तु में बुरी शक्तियों का अस्तित्व और नकारात्मक स्पंदन नष्ट होने दें ।’

ऐसी प्रार्थना करके वास्तुशुद्धि की दृष्टि से हम आगे की कृति करेंगे । यह प्रार्थना बीच-बीच में करेंगे । प्रार्थना होने के उपरांत जो व्यक्ति वास्तुशुद्धि करेगा, वह वास्तुशुद्धि से पहले १५ मिनट श्रीगणेश अथवा अपने उपास्य देवता का नामजप करें ।

यहां हमें ध्यान रखना है कि वास्तुशुद्धि की प्रत्येक कृति जितनी अधिक भावपूर्ण होगी, उतना हमें उसका लाभ होगा ।

 

वास्तुशुद्धि किसप्रकार कर सकते हैं ?

तो आइए जानते हैं, प्रत्यक्ष वास्तुशुद्धि हम किसप्रकार कर सकते हैं ? हम उनकी कुछ पद्धतियों के बारे में जानकर लेंगे ।

१. सुबह-शाम उपास्य देवता के स्तोत्र लगाकर रखना

हम अपने उपास्य देवता का प्रतिदिन सवेरे और संध्या समय स्तोत्र लगाकर रख सकते हैं । रामरक्षास्तोत्र, गणेशस्तोत्र, हनुमानचालिसा अथवा भजन भी लगा सकते हैं ।

स्तोत्र लगाने से उन देवताओं का तत्त्व वास्तु में आकृष्ट होता है । स्तोत्र सुनने से हमें देवताओं का स्मरण भी होता है और घर की सात्त्विकता बढने से हमारी वास्तु का चैतन्य टिका रहता है । अधिकतर स्तोत्र संतों द्वारा रचित होते हैं और उनमें संतों का संकल्प और आशीर्वाद रहता है । स्तोत्रों में देवताआें की स्तुति रहती है और यह मुख्यत: संस्कृत भाषा में होते हैं ।

२. शंखनाद करना

प्रत्येक हिन्दू के घर में शंख अवश्य होता है । हिन्दू धर्म में धार्मिक दृष्टि से शंख का अनन्य महत्त्व है । पुराणों के अनुसार समुद्रमंथन के समय प्राप्त हुए १४ रत्नों में से एक है शंख । शंख को बहुत पवित्र और शुभ माना जाता है । इसलिए प्रत्येक पूजा और धार्मिक आयोजनों में शंखनाद अत्यंत श्रद्धा से किया जाता है । यहां तक की पहले तो युद्ध भी शंखनाद करके ही आरंभ होते थे । शंखनाद से नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह तुरंत नष्ट हो जाता है । वैज्ञानिकों ने शंखध्वनि के अनेक लाभ बताए हैं ।

विज्ञान के अनुसार शंखध्वनि महत्त्वपूर्ण होती है । इसकी ध्वनि से प्रचारक्षेत्र तक सभी कीटाणुआें का नाश होता है ।

शंख बजाने से पहले हम शंखदेवता से भावपूर्ण प्रार्थना करेंगे – ‘हे शंखदेवता ! आपके चैतन्यमय नाद से आसपास की सभी नकारात्मक शक्तियों का नाश होने दीजिए । हे शंखदेवता, आप श्रीविष्णु के हाथ में सुशोभित हो । आपके माध्यम से वातावरण की अनिष्ट शक्ति का नाश होता है, आप हम पर कृपा करें । आपके नाद से हमारी वास्तु में जो भी नकारात्मकता है, उसे नष्ट करें और हमारी अनिष्ट शक्तियों से रक्षा करें ।’

३. धूप दिखाना

जहां पर दैवी सुगंध होती है वहां पर देवी-देवता आकर्षित होते हैं और हमें आर्शीवाद देने के लिए आते हैं । इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होकर, घर की सात्त्विकता बढने लगती है । इसलिए धूप दिखाने का भी आध्यात्मिक महत्त्व है ।

धूप दिखाने से पूर्व हम इसप्रकार भावपूर्ण प्रार्थना करेंगे – ‘हे धूप देवता आप ईश्‍वरीय चैतन्य आकृष्ट करने हेतु स्वयं जलकर अपना त्याग करते हो । आपके माध्यम से अधिक से अधिक ईश्‍वरीय चैतन्य इस वास्तु में आकृष्ट होने दीजिए और सभी नकारात्मक शक्तियों का नाश होने दीजिए‘, ऐसी आपसे प्रार्थना है ।

४. कर्पूर जलाना

कर्पूर जलाने से घर की सकारात्मक बढती है और नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह नष्ट होकर साधना करने में सहायता होती है । कर्पूर जलाने से वास्तुदोष कम होने लगते हैं ।

प्रार्थना – ‘हे कपूर देवता आपमें शिवतत्त्व आकृष्ट करने की क्षमता है । आप ही के कारण हमारे वास्तुदोष का निवारण होकर घर की शुद्धि होती है । आप ही हम पर कृपा करें । अपने अस्तित्व से आप ही अनिष्ट शक्तियों का निराकरण कर, शिवतत्त्व (ईश्‍वरीय तत्त्व) ग्रहण होने दीजिए ।

५. नीम की पत्तियों की धूनी दिखाना

नीम को अमृत के समान माना गया है । यह बहुत ही गुणकारी है । इसकी जड, तना, निंबोली, छाल और पत्तिया सभी बहुत उपयोगी होते हैं । हर घर में नीम का किसी न किसी प्रकार से उपयोग होता ही है । नीम की पत्तियों की धूनी दिखाने से घर की नकारात्मक ऊर्जा के साथ-साथ कीडे-मकोडों और कीटाणुओं का भी नाश होता है । जिससे वास्तु की सात्त्विकता बढती है और वास्तु शुद्धि होती है ।

इसलिए नीम की पत्तियों की शरण जाकर उनसे प्रार्थना करेंगे – ‘आप धन्वंतरी देवता के प्रसाद स्वरूप हैं । आयुर्वेद में आपको अमृत कहा गया है । आपका प्रत्येक अंश मानव जाति को आरोग्य प्रदान करनेवाला है । आपके पत्ते की धूनी से इस वास्तु की स्थूल व सूक्ष्म, सभी प्रकार के कीटाणु व जीवाणुओं का नाश हो’, ऐसी आपके चरणों में प्रार्थना है  ।

६. गोमूत्र छिडकना और गोमूत्र का पोछा लगाना

हम सभी अपने घर में गोमूत्र अवश्य रखते हैं । गोमूत्र के छिडकने से भी नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकल जाती है । साथ ही यह वास्तु के चैतन्य को भी टिकाए रखता है ।

गोमूत्र का पोछा लगाना

प्रतिदिन जब हम घर में पोछा लगाते हैं, तब उसमें गोमूत्र डाल सकते हैं । इससे घर के नकारात्मक स्पंदन नष्ट होते हैं । गोमूत्र के पोछे से कीटाणुओं का भी नाश होता है ।

वास्तु की सात्त्विकता बढाने की दृष्टि से हम और भी कुछ बातों का ध्यान रख सकते हैं । जैसे घर में हमने जो पर्दे लगाएं, वे हल्के रंग के हों । काले, जामुनी अथवा गहरे रंग के पर्दे नहीं लगाने चाहिए । दीवारों का रंग भी हल्का होना चाहिए । हल्के रंग मन को शांति और शीतलता प्रदान करते हैं ।

वास्तुदेवता का प्रसन्न करने के लिए हम बीच-बीच में उनकी मानस पूजा भी कर सकते हैं ।

हम पर अखंड कृपा का वर्षाव करनेवाली वास्तु का हम सब पर कितना बडा ऋण है, इसका हम विचार ही नहीं कर सकते । हम अपनी बुद्धि से कितना भी विचार करें अथवा कुछ भी करें, तब भी हम यह ऋण चुकता नहीं कर सकते । इतना प्रचंड ऋण ईश्‍वर का विविध माध्यमों से हम पर है, यदि इसका हम विचार करने लगे तो हमें अनेक बातें ध्यान में आएंगी । जन्म देने से लेकर, परिवार, रहने के लिए निवास, खाने के लिए अन्न, यह सब कुछ ईश्‍वर ने हमें कितनी सहजता से उपलब्ध करवाए हैं । इन सबका विचार करने पर ध्यान में आएगा कि इस चैतन्य का लाभ लेने के लिए ईश्‍वर हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं । अखंड साधनारत इस वास्तु के प्रति हमारे मन में कृतज्ञता रहे । ईश्‍वर चैतन्य का हम पर जो वर्षाव कर रहे हैं वह चैतन्य हमें ग्रहण करने आने दें, यही ईश्‍वर के श्रीचरणों में प्रार्थना है ।

 

अंत में कृतज्ञता व्यक्त करें !

वास्तुशुद्धि का कार्य पूरा होने पर उपास्यदेवता और वास्तुशुद्धि में सहायक हुए उपकरणों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें ।

नामजप कैसे और कौन-सा करें,  इस विषय में विस्तृत जानकारी यहां देखिए !

2 thoughts on “वास्तु शुद्धि की पद्धतियां”

  1. बहुत ही सुंदर और तार्किक जानकारी । अगर आपके सनातन सँस्कृति के बारे में और भी कुछ जानना हो तो आपसे सम्पर्क कैसे करे

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    • नमस्ते मदन जी

      आपको लेख पसंद आया, यह जानकार हमें अच्छा लगा। जालस्थल पर उपलब्ध अन्य भी लेख अवश्य पढ़ें। आप साधना सम्बन्धी प्रश्न कमेंट द्वारा या ईमेल द्वारा हमें पूछ सकते हैं। हमारा पता [email protected] है।

      – सनातन संस्था

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