वास्तुदेवता की कृपादृष्टि सदैव हमपर बनी रहे इसलिए कैसी प्रार्थनाएं करें

आज हम सीखेंगे कि वास्तुदेवता की कृपादृष्टि सदैव हमपर बनी रहे इसलिए कैसी प्रार्थनाएं करें । प्रार्थना एसे करें कि हम आर्त भाव से ईश्‍वर को पुकार रहे हैं ।

वह प्रत्यक्ष सामने हैं और हम उनसे प्रार्थना कर रहे हैं । ऐसे प्रार्थना करनी चाहिए । ऐसे मन में भाव रखकर जब हम प्रार्थना करते हैं तब मन एकाग्र होता है और ईश्‍वर की अनुभूति होती है । और हमें आनंद की प्राप्ति हो सकती है । हमारा अपने वास्तु व वहां के वास्तुदेवता के प्रति जितना भाव होगा, उतना हमें प्रत्येक कृति से आनंद मिलेगा ।

हे ईश्‍वर… वास्तु देवता की शरण मिलने के कारण हम अपने जीवन को योग्य रीति से जी पा रहे हैं इसके लिए वास्तु के प्रति कतृज्ञता सदैव हमारे मन में रहनी चाहिए ।

 

१. घर से बाहर जाते समय रखने योग्य भाव

दिन भर में जितने भी समय हम अपने घर में रहते हैं उस समय वास्तु के प्रति मन में भाव कैसे जागृत रहे इस दृष्टि से हम प्रयत्न करेंगे बहुत बार बाहर जाते हैं तब बाहर जाते समय वास्तु देवता को बोलेंगे कि अब मैं घर से बाहर जा रही हूं तो आप ही इस वास्तु को संभालिए और इसका रक्षण कीजिए । बाहर होते हुए भी आप का संरक्षण कवच मेरे चारों ओर निरंतर रहने दीजिए वातावरण में जो अनिष्ट शक्ति का प्रभाव है वह मुझ पर ना पड़े एसे प्रार्थना करके हम घर से बाहर जाएगें ।

 

२. बाहर से घर में वापस आते समय मन में रखने योग्य भाव-

बाहर से घर आते समय वास्तु देवता को हम प्रणाम करेंगे अब तक मैं घर में नहीं थी तब तक आपने ही घर को संभाला है । घर में मैं नहीं थी अथवा होते हुए भी अब तक आप ही इस घर को संभाल रहे हैं । जब से इस वास्तु में हम रहने के लिए आए हैं तब से वास्तु देवता ने ही हमें संभाला है इस कारण हम इस पृथ्वी पर सुरक्षित रह पा रहे हैं इसके लिए वास्तु को हाथ जोड़ कर नमस्कार करेंगे और तब घर में प्रवेश करेंगे ।

वास्तु देवता के प्रति भावजागृत करने हेतु हम और भी ऐसी प्रार्थनाएं करत सकते हैं ।

१. हे वास्तु देवता ! हम जिसे अपना वास्तु समझते हैं जिस वास्तु को अपना नाम देते हैं इसके स्वामी तो वास्तव में आप हो । हम मात्र इस वास्तु के सेवक हैं इसका भान हमारे मन में निरंतर रहने दें और आपकी ही छत्रछाया के कारण हम सुरक्षित जीवन जी पा रहे हैं इसके लिए आपके प्रति कृतज्ञता का भाव हमारे मन में रहने दीजिए ।

२. प्रतिदिन सुबह उठकर वास्तु देवता को प्रार्थना कर सकते हैं कि पूरी रात आपकी छत्रछाया में मैं सुरक्षित निश्‍चिंत होकर सो पाई आपने हमारा रक्षण किया आज का जो यह दिन मुझे देखने को मिला है वह भी आपकी छत्रछाया में योगक्षेम के साथ बीतने दें ऐसी आपके चरणों में प्रार्थना है ।

३. वास्तु देवता इस वास्तु के अधिपति आप ही हैं आप प्रसन्न रहगें, तो इस वास्तु में अपने आप ही सुख समृद्धि, सौभाग्य, लक्ष्मी का आगमन संभव है । अब अपनी छत्रछाया में हमें निरंतर सुख और समृद्धि प्रदान करते रहे ऐसी आपके चरणों में प्रार्थना है ।

४. वास्तु देवता हमें पता चला है कि वास्तु को जितना स्वच्छ व्यवस्थित रखते हैं उतनी ही आपकी कृपा उस वास्तु में रहने वाले जीवो पर पड़ती है आप उतना ही प्रसन्न होते हैं वास्तु की नकारात्मकता दूर होकर सकारात्मकता बढ़ती है । हे वास्तु देवता ! आप हमें वह उत्साह दें जिससे आपके इस वास्तु कि हम योग्य रीति से सेवा कर सके ।

५. हे वास्तु देवता ! आप ही स्वास्थ्य के अधिपति हैं । आप इस वास्तव में रहने वाले जीवो के पिता समान है । जिस प्रकार एक पिता अपने परिवार का योगक्षेम रखता है, उन्हें संभालता है ऐसे ही हे वास्तु देवता आपके पितृवत प्रेम की वर्षा निरंतर हम जीवो पर होते रहने दीजिए और हम आपके छोटे बच्चे हैं आप ही आप के इस वास्तु में हमें स्थान देकर हमारा संरक्षण कीजिए । हमें हर स्थिति में अपनी शरण में रखिए ऐसी आपके चरणों में प्रार्थना है ।

वास्तु देवता की जो हम पर कृपा है उसके लिए मन में जितनी कृतज्ञता रखें उतना ही कम है…..उनके चरणों में भावपूर्ण कृतज्ञता व्यक्त करेंगे …….

‘हे वास्तुदेवता, हम आपकी छत्रछाया में सुखपूर्वक रह पा रहे हैं । आप हमेशा हर आपदा से हमारी रक्षा करते हैं । वर्षा हो, आंधी हो अथवा तूफान, सूर्य की तपती गर्मी हो अथवा कडाके की ठंड हो या फिर जीव-जंतु-प्राणियों का भय, आप हमें अपनी गोद में सुरक्षित रखते हैं । हम आपकी छत्रछाया में सुखपूर्वक रह रहे हैं इसके लिए हम आपके श्रीचरणों में कृतज्ञता व्यक्त करते हैं ।’ इसप्रकार ईश्‍वर हमें जो कुछ भी सुझाए, उसीप्रकार यदि हम वास्तु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए छोटे-छोटे प्रयत्न करेंगे, तो निश्‍चित ही हम वास्तु के ईश्‍वरीय तत्त्व को अधिक प्रमाण में अनुभव कर सकते हैं ।

यदि हम भाव रखकर कोई कृति करते हैं, तो ईश्‍वर का तत्त्व आकर्षित होता है । इसलिए हम प्रयत्न करेंगे कि हमारी प्रत्येक कृति अत्यंत भावपूर्ण कैसे हो ? इसके लिए प्रयत्नरत रहने के लिए निश्‍चय करेंगे । इसके आगे हम जो भी कृति करेंगे वह ईश्‍वर को स्मरण कर, उनके सान्निध्य में, उनके आशीर्वाद से कर रहे हैं, इसकी अनुभूति हम लेंगे । भिन्न-भिन्न रूप में ईश्‍वर कैसे कार्यरत रहते हैं, इसकी अनुभूति लेनी है । चराचर में वास करनेवाले ईश्‍वर के अनेक रूपों में आज हमने वास्तुदेवता का रूप भी अनुभव किया । अत: वास्तुदेवता के प्रति हम कृतज्ञता व्यक्त करेंगे । इसके साथ ही ईश्‍वर के अन्य रूपों के प्रति भी कृतज्ञ रहेंगे । हम पर अखंड कृपा का वर्षाव करनेवाले वास्तु का हम सब पर कितना ऋण है इसका हम विचार तक नहीं कर सकते । हमने अपनी बुद्धि से भले ही कितना भी विचार करें अथवा चाहे जो भी करें, तब भी हम यह ऋण चुकता नहीं कर सकते । इतना प्रचंड ऋण ईश्‍वर का विविध माध्यमों से हम पर है, इसका हम विचार करने लगे तो हमें अनेक बातें ध्यान में आएंगी । जन्म देने से लेकर, परिवार, रहने के लिए निवास, खाने के लिए अन्न, यह सब कुछ ईश्‍वर ने हमें कितनी सहजता से उपलब्ध करा कर दिए हैं । यदि हम इन सबका विचार करने लगें तो ध्यान में आएगा कि इस चैतन्य का लाभ लेने के लिए ईश्‍वर हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं । अखंड साधनारत इस वास्तु के प्रति हमारे मन में कृतज्ञताभाव जागृत कर रहे हैं । ईश्‍वर चैतन्य का हम पर वर्षाव कर रहे हैं । यह चैतन्य हमें ग्रहण करने आने दें ।

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