आयुर्वेद के प्राथमिक उपचार

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१. गले में वेदना अथवा खुजलाना (खराश), या फिर किसी भी प्रकार की खांसी

‘दिन में २ – ३ बार ‘चंद्रामृत रस’ औषधि की १ – २ गोलियां चुभलाएं ।’

– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२५.७.२०२२)

वैद्य मेघराज पराडकर

१ अ. अनुभव

‘अनेक बार किसी भी कारण से मेरे गले में वेदना होकर हल्का ज्वर-सा लगने से मैं तुरंत ही ‘चंद्रामृत रस’की १ गोली चुभलाता हूं । अनेक बार केवल एक गोली से ही मेरे गले की वेदना बंद होकर, हल्का-सा ज्वर (हरारत) भी चला जाता है और साथ ही आगे खांसी भी टल जाती है ।’

– (पू.) संदीप आळशी, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२५.७.२०२२)

 

२. सूखी खांसी (वातज कास)

‘कई बार केवल सूखी खांसी आती है; कफ नहीं गिरता अथवा गिरता भी है, तो अत्यंत ही अल्प । इस प्रकार की खांसी में ऐसा लगने लगता है कि श्वासनलिका अंदर से कहीं छिल गई है कि क्या ?’, खांसते-खांसते पसलियों एवं पेट में वेदना होने लगती है । कई बार खांसी की औषधि लेने के पश्चात भी कफ सूख जाने से ऐसी खांसी आती है । कई बार नींद में ठंडी हवा नाक एवं मुंह में जाने से ऐसी खांसी आती है । यह वात के कारण आनेवाली खांसी के लक्षण हैं । आयुर्वेद में इसे ‘वातज कास’ कहते हैं । ‘कास’ अर्थात ‘खांसी’ । ऐसे समय पर आगे दिए उपचार करें ।

आधी कटोरी गरम पानी पीएं । उसमें २ चम्मम (१० मि.ली) देशी घी एवं चिमटी पर नमक डालें और भली-भांति मिलाकर पीएं । (घी के स्थान पर तले हुए तेल का भी उपयोग कर सकते हैं । ‘तला हुआ तेल’ अर्थात ‘जिसमें बडे, पापड, पकौडी जैसे खाद्यपदार्थ तले गए हैं, ऐसा तेल !’) पीने के पश्चात गिलास में अंदर से लगा घी छुडाने हेतु थोडा-सा गरम पानी लें । ऐसा अनुभव है कि १ – २ बार ऐसा करने पर खांसी रुक जाती है । खांसी के साथ हल्का ज्वर (हरारत) होने पर घी के साथ चम्मचभर तुलसी का रस भी लें ।’

– वैद्य मेघराज माधव पराडकर (२५.७.२०२२)

२ अ. अनुभव

‘मेरी बेटी चि. मुक्ता साढे चार वर्ष की है । जुलाई २०२२ के तीसरे सप्ताह में उसे सर्दी होकर सूखी खांसी शुरू हो गई । खांसते-खांसते वह परेशान हो जाती थी । फिर मैंने उसे एक चम्मच तुलसी के रस में १ चम्मच (५ मि.ली.) घी और थोडा नमक मिलाकर उसे पिलाया । इससे उसकी खांसी काफी कम हो गई । तदुपरांत लगभग ४ घंटों में उसे थोडी खांसी आने पर उसे इसीप्रकार घी दिया । तत्पश्चात उसे खांसी नहीं आई और ज्वर भी उतर गया ।’

– श्रीमती राघवी मयुरेश कोनेकर, ढवळी, फोंडा, गोवा. (२५.७.२०२२)

 

३. हल्का-सा ज्वर (बुखार) लगना अथवा ज्वर आना

‘२ दिन तुलसी के २ – २ पत्ते सवेरे-शाम चबाकर खाना । दिन में एक बार के भोजन के समय बिना कुछ खाए-पिए, उपवास रखें । फिर जब भूख लगे, तब थोडी सादी गरम दाल (बिना तडके के) १ चम्मच घी डाल कर पीएं । २ दिन अन्य कुछ भी न खाएं, केवल गरम-गरम दाल-चावल लें । दाल-चावल पर थोडा घी डालें । स्वाद के लिए थोडा आचार ले सकते हैं । पूर्णरूप से स्वस्थ होने तक यही आहार लें । अल्पाहार न करें । उसके स्थान पर चम्मचभर मनुके (किशमिश) चर्वण कर खाएं अथवा कटोरीभर गरम पानी में थोडा गुड डालकर पीएं । प्यास लगी हो, तब गरम पानी ही पीएं । विश्राम करें । ऐसा करने पर ज्वर ठीक होने में सहायता होती है । ज्वर यदि आ भी जाए, तो बहुत कष्ट नहीं होता और शीघ्र ही ठीक होने लगता है ।’

– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२५.७.२०२२)

 

४. सिर में वेदना

‘सूतशेखर रस’ की एक गोली का महीन (बारीक) चूर्ण करें । (एक थाली में गोली रखकर उसे गिलास अथवा कटोरी से दबाने पर, गोली का चूर्ण बन जाता है ।) यह चूर्ण नसवार खींचने (सुंघनी सूंघने) समान नाक में खींचें । ऐसा कर पाना संभव न हो, तो चम्मचभर पिघले हुए घी में इस गोली का चूर्ण मिलाएं । पीठ के बल लेटकर इस घी में मिली औषधि की २ – २ बूंदें दोनों नथुनों में डालकर २ मिनट लेटे रहें । तदुपरांत उठकर घी में मिलाई हुई शेष औषधि चाट लें ।’

 

५. बद्धकोष्ठता

‘बद्धकोष्ठता के लिए ‘गंधर्व हरीतकी वटी’ की २ से ४ गोलियां रात में सोने से पहले गुनगुने पानी के साथ लें । इसके साथ ही भूख न लगना, भोजन न कर पाना, अपचन होना, पेट में वायु (गैस) होना, ऐसे लक्षण होने पर ‘लशुनादी वटी’ की १ – २ गोलियां दोनों बार के भोजन के १५ मिनट पहले चुभलाकर खाएं । इससे पाचक स्राव अच्छी प्रकार से निर्माण होते हैं । बद्धकोष्ठता पर ये उपचार १५ दिन करें ।’

– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२७.७.२०२२)

यहां ‘प्राथमिक उपचार’ दिए हैं । औषधि लेकर ठीक न लगे तो तुरंत स्थानीय वैद्य से मिलें ।

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