मुंबई के कुछ मूर्तिकारों ने बनाई सूर्यफुल के बीज के साथ तथाकथित पर्यावरण के अनुकूल श्री गणेश मूर्ति!

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पर्यावरणरक्षा के नाम पर किसी वनस्पति अथवा वृक्ष का बीज मूर्ति में रखकर मूर्ति बनाना अशास्त्रीय है । श्री गणेशमूर्ति का पूजन कर उसके चैतन्य का लाभ लेना और इस चैतन्यमय मूर्ति को बहते पानी में विसर्जन कर, वह चैतन्य सर्वदूर पर्यावरण में पहुंचाना, इस धर्माचरण से ही वास्तविक अर्थ में पर्यावरण की रक्षा होती है !

(यह छायाचित्र छापने का उद्देश्य लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत करना नहीं, अपितु वास्तविक स्थिति ध्यान में आए, इस उद्देश्य से यह प्रकाशित किया गया है । – संपादक)

मुंबई – धारावी और परळ में कुछ मूर्तिकार पर्यावरणरक्षा के नाम पर विघटन होने हेतु सक्षम (‘बायोडिग्रेडेबल’) श्री गणेशमूर्ति बना रहे हैं । यह मूर्ति बनाते समय साचे में लाल मिट्टी और खाद भरी जाती है । उस में सूर्यफूल का बीज डाला जाता है । यह मूर्ति बनाकर गमले में रखी जाती है । कुछ दिनों में इस मूर्ति से पौधा अंकुरित हो सकता है ।

 

मूर्ति में बीज रखकर गमले में ही श्री गणेशमूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा
करना और मूर्ति पर पानी डालकर गमले में ही मूर्ति विसर्जित करने का अशास्त्रीय प्रकार !

‘इको-फ्रेंडली’ गणेशोत्सव के नाम पर ‘ट्री गणेश’ इस अशास्त्रीय संकल्पना का प्रचार !

त्यौहार और उत्सवों में प्रत्येक कृति आध्यात्मिक लाभ के लिए की जाती है, इस धर्मशिक्षा के अभाव के कारण हिन्दुओं को ध्यान में नहीं आता । स्वयं साधना न करनेवाले व्यक्ति आध्यात्मिक कृतियों की अनुभूति नहीं ले पाते । त्योहार-उत्सवों की कृतियों का आधारभूत शास्त्र समझकर लेने के लिए उस क्षेत्र के जानकारी अर्थात संतों का मार्गदर्शन लेने की उन्हें आवश्यकता नहीं लगती । अपना सामाजिक, भौतिक, पर्यावरण आदि विचार ही योग्य नहीं लगता है । यह सर्व परिणाम धर्मशिक्षा के अभाव का है । जो स्वयं साधना करता है, उसे ‘इको-फ्रेंडली’जैसी बातों की निरर्थकता बतानी नहीं पडती । गणेशोत्सव का आध्यात्मिक लाभ पाने के लिए भाविकों को शास्त्रीय पद्धति के अनुसार शाडू की श्री गणेशमूर्ति की स्थापना करनी चाहिए और ‘ट्री गणेश’ समान धर्मशास्त्रविसंगत कृति करनेवाले हिन्दुओं का धर्मप्रेमी हिन्दुओं को प्रबोधन करना चाहिए ! – संपादक

मुंबई – ‘इको-फ्रेंडली’ गणेशोत्सव मनाते समय पर्यावरणपूरक मूर्ति तैयार करने के नाम पर अब तक फल-सब्जियां, कागद की लुगदी, विविध वस्तुओं से श्री गणेशमूर्ति तैयारी की जाती हैं । अब उसके साथ ‘ट्री गणेश’ नामक एक और अशास्त्रीय प्रकार का प्रचार किया जा रहा है । इस संकल्पना में लाल मिट्टी की श्री गणेशमूर्ति तैयार कर उसके अंदर वनस्पति का बीज रखकर उस मूर्ति की गमले में ही प्राणप्रतिष्ठा करनी चाहिए । इतने पर ही न रुकते हुए विसर्जन के समय श्री गणेश की मूर्ति गमलों सहित पौधवाटिका (नर्सरी) में रखें और उसे पानी डालें । इसप्रकार, मूर्ति के घुल जाने तक नियमितरूप से मूर्ति पर थोडा-थोडा पानी डालें, ऐसा अशास्त्रीय प्रकार बताया गया है । इसमें मूर्ति पूर्णरूप से घुलने तक उसमें रखा बीज गमले में ही रहता है और कुछ दिनों में गमले में पौधा आ जाता है । यह पौधा श्री गणेश के अस्तित्व का प्रतीक माना गया है । इसमें कुछ लोग फल-सब्जियां, फूल के बीज अथवा अन्य वृक्षों के बीज भी श्री गणेशमूर्ति में डालते हैं ।

वर्ष २०१५ में मुंबई में दत्तारी कोथुर नामक युवक ने ‘ट्री गणेशा’ की यह शास्त्रविसंगत संकल्पना प्रस्तुत की । मिट्टी, खाद और बीज से तैयारी की हुई श्री गणेशमूर्ति की स्थापना अपने घर में की थी । तदुपरांत इस संकल्पना का प्रसार, सामाजिक प्रसारमाध्यमों द्वारा आरंभ होने पर उसकी लोकप्रियता बढती गई । वर्ष २०१७ में इस  प्रकार की ५०० मूर्तियों की मांग आई और दत्तारी कोथुर ने २०० मूर्तियां तैयार करने का दावा ‘यू ट्यूब’द्वारा किया था ।

गत वर्ष शिक्षामंत्री तथा भाजप के नेता विनोद तावडे सहित कुछ प्रतिष्ठित लोगों ने इस मूर्ति का अवलोकन किया । इस वर्ष वनविभाग द्वारा १ से ३१ जुलाई २०१८ तक राज्य में १३ करोड वृक्षों की बागवानी के कार्यक्रम में ‘ट्री गणेशा’ इस संकल्पना से वृक्षारोपण के कारण समाज में हो रहा अच्छा परिवर्तन’, ऐसा उल्लेख किया गया । (धर्मशास्त्र विरोधी ‘ट्री गणेशा’जैसी गलत पद्धति को शासन प्रोत्साहन न दे, ऐसी हिन्दुओं की भावना है ! – संपादक) वर्तमान में ‘यू ट्यूब’, ‘वॉट्सएप’ आदि सामाजिक प्रसारमाध्यमों द्वारा ‘ट्री गणेशा’ इस संकल्पना का प्रचार किया जा रहा है ।

 

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