‘सभी का विचार करने की अपेक्षा केवल अपनी जाति हेतु आरक्षण की मांग करना, यह स्वार्र्थपरता है तथा उसे स्वीकृति देना, यह जनता को अनपढ रखनेवाले राजनेताओं द्वारा स्वयं के स्वार्थ हेतु अपनाया गया निर्णय ! इसके विपरीत धर्म सर्वस्व का त्याग करना सिखाकर ईश्वरप्राप्ति करवाता है ।’
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कहां केवल स्वार्थ का विचार करनेवाले जात्यंध, तो कहां सर्वस्व का त्याग करने को सिखानेवाला धर्म !
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