रिफ्लेक्सॉलॉजी

संत-महात्माओं, ज्योतिषियों आदि के कथनानुसार आगामी काल भीषण आपदाओं से भरा होगा, जिसका सामना समाज को करना पडेगा । ऐसे काल में अपने और अपने परिजनों के स्वास्थ्य की रक्षा करना बडी चुनौती होगी ।

मीठे पदार्थ भोजन के प्रारंभ में खाने चाहिए या अंत में ?

आयुर्वेद के अनुसार मिष्ठान्न अर्थात मीठे पदार्थ भोजन के प्रारंभ में खाने चाहिए । जिससे वात का शमन होता है तथा पचनक्रिया में बाधा नहीं आती ।

अग्निहोत्र के विविध लाभ

अग्निहोत्र करना आकाशमंडल में निहित सूक्ष्म देवताआें के तत्त्वों को जागृत कर उनकी तरंगों को भूमिमंडलपर खींच लेने का एक प्रभावशाली माध्यम है ।

तीसरे विश्‍वयुद्ध में होनेवाली संभावित हानि तथा उससे बचने के कुछ उपाय

अनेक संतों ने बताया है कि वर्ष २०१९ से धीरे-धीरे तीसरा विश्वयुद्ध आरंभ होगा, जिससे निम्न कठिनाइयां उत्पन्न होंगी । कुछ मात्रा ही में क्यों न हो, इन समस्याआें का सामना करना संभव हो, इसलिए निम्नांकित प्रयास करें !

आग लगने पर क्या करें ?

भावी आपातकाल का धैर्यपूर्वक सामना किया जा सके इस हेतु सनातन संस्था ने, आगामी युद्धकाल में संजीवनी सिद्ध होनेवाली ग्रंथमाला प्रकाशित की है ।

जंक फूड छोडें, आयुर्वेद अपनाएं (भारतीय पदार्थ खाएं) !

जंक फूड त्यागकर, आयुर्वेद अपनाएं, यही इसका सबसे अच्छा उपाय है । आयुर्वेद न केवल शरीर, अपितु मन एवं बुद्धि का भी उत्तम पालन-पोषण हो, इसके लिए सात्त्विक अन्न ग्रहण करने के लिए कहता है ।

विश्वविख्यात भविष्यवेत्ता नास्त्रेदमस तथा संताे के द्वारा बताया गया भविष्य

फ्रान्स के सोलहवे शतक के (वर्ष १५०३-१५६६) महान भविष्यवेत्ता नास्त्रेदमस द्वारा किए गए अनेक भविष्यं आज वैज्ञानिकों के लिए रहस्य हुए हैं ।

अग्निहोत्र

त्रिकालज्ञानी संतों ने बताया ही है कि भीषण आपातकाल आनेवाला है तथा उसमें संपूर्ण विश्‍व की प्रचंड जनसंख्या नष्ट होनेवाली है । वास्तव में आपातकाल आरंभ हो चुका है । आपातकाल में तीसरा महायुद्ध भडक उठेगा । अणुबम जैसे प्रभावी संहारक के विकिरण को रोकने के लिए सूक्ष्मदृष्टि से कुछ करना आवश्यक है । इसलिए ऋषि-मुनियों ने यज्ञ के प्रथमावतार रूपी अग्निहोत्र’ का उपाय बताया है ।

एलोपैथी की औषधियां लेकर भी ठीक न होनेवाले पेट के विकार आयुर्वेदिक उपचारों से कुछ ही दिनों में पूर्णत: ठीक होना

६ माह एलोपैथी की औषधियां लेकर भी अपचन दूर न होना पिछले १ वर्ष से मुझे अपचन की समस्या है । इस कारण पेट में वायु (गैस) होना, बहुत भूख लगना, अनावश्यक खाना, इस प्रकार के कष्ट होने लगे ।

असहनीय ग्रीष्मकाल को सहनीय बनाने के लिए आयुर्वेदानुसार ऋतुचर्या करें !

‘ग्रीष्मकाल में पसीना बहुत होता है । इससे, त्वचा पर स्थित पसीने की ग्रंथियों के साथ तेल की ग्रंथियां अधिक काम करने लगती हैं, जिससे त्वचा चिपचिपी होती है ।