जिम, पार्लर, फैशन तथा मॉडेलिंग के मायाजाल में फंसकर खो रहे हैं बालक अपना बचपन !

सौ. रूपाली वर्तक

आजकल, निजीकरण तथा अंतरराष्ट्रीयकरण की सुनामी लहरों में इस देश की न केवल युवा पीढी तथा बढते वय के नागरिक, अपितु छोटे बच्चे भी बह रहे हैं । पश्चिमी देशों की भांति अब भारत में भी पौगंडावस्था की अवधि घट रही है । विशेषतः नगरों के बच्चे तथा दुर्भाग्यवश उनके अभिभावक भी उपभोगवाद के चंगुल में फंसते जा रहे हैं । चलचित्रपट, मॉडेलिंग आदि से प्रभावित होकर, (तथाकथित) सुंदर दिखना, यह नागरी जीवन का एक अविभाज्य अंग-सा बन गया है । इसके लिए प्रतिदिन नवीन केशरचना, वेशभूषा, रंगभूषा करते रहना पडता है ! इस फॅशन के मोहजाल में अब ६ से १४ वर्ष की अवस्था के सुकुमार बालक भी फंस रहे हैं । प्रमाण के रूप में वर्ष २००७ के अंग्रेजी भाषा के ‘इंडिया टुडे’ मासिक-पत्र में छपे लेख की कुछ प्रमुख बातें सूत्ररूप में यहां प्रस्तुत कर रही हूं । वर्तमान में तो यह स्थिति अधिक गंभीर हो गयी होगी, यह बताने की आवश्यकता नहीं है ।

 

१. छोटे बच्चों के आधुनिक केशकर्तनालय,
व्यायामशाला, सौंदर्यवर्धनालय तथा मालिश केंद्र !

अ. मुंबई जैसे औद्योगिक नगरों में अब इन छोटे बच्चों के लिए व्यायामशाला, सौंदर्यवर्धनालय, कपडों की दुकान, छोटे उद्यान, ग्रंथालय आदि से सुसज्ज विशेष प्रकार के केशकर्तनालय खोले गए हैं । यहां, बच्चों के रुचि के आकर्षक रंग-बिरंगी दीवारें, केशवाले प्राणियों के मोहक खिलौने, बडों की भांति व्यायाम करने के आधुनिक साधन, कहानियों की पुस्तकें (अब संभवतः वीडियों गेम भी) आदि रहते हैं ।

आ. यहां, पश्चिमी देशों के लडकों के विविध प्रकार की वेष-भूषा, केशरचना आदि के बडे-बडे छायाचित्र लगे होते हैं । बडों की भांति छोटे बच्चों के इस फैशन के लिए भी पेरिस नगर को आदर्श माना जाता है । (इससे बच्चों के मन पर, विदेशी वस्तुएं अच्छी होने का संस्कार बचपन से ही होता है । – संकलनकर्ता)

इ. शरीर को हानि पहुंचा सकनेवाले कार्य

१. ४ से ११ वर्ष की अवस्था के बच्चों के लिए विविध प्रकार के पश्चिमी व्यायाम के साधनों (उपकरणों) से युक्त जिम खोले जा रहे हैं । (आधुनिक विशेषज्ञ चिकित्सकों का कहना है कि इन आधुनिक उपकरणों से व्यायाम करने पर, जो दुष्परिणाम होता है, उसे छोटे बच्चों का शरीर नहीं झेल पाता । – संकलनकर्ता)

२. छोटे बच्चे सौंदर्यवर्धनालय में अपने हाथ-पैर के नख स्वच्छ कराते हैं । इससे, उनके सुकुमार हाथ-पैर के नखों का आकार बेढब हो सकता है । (इतनी छोटी बात भी जो अभिभावक नहीं समझते, वे अपने बच्चों पर कौन-सा संस्कार करते होंगे, भगवान ही जानें ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)

ई. मानसिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक दुष्परिणाम

युवकों की भांति छोटे बच्चों में भी चित्र-विचित्र ढंग के बाल कटवाने का फैशन लोकप्रिय है; उदहारण के लिए – सिर के बाल महीन रखकर उनमें रेखा अथवा अन्य चित्र की कटिंग करवाना, मध्य के बाल खडे रहें इस प्रकार से उन्हें कटवाना आदि । (इससे बच्चों के मुख पर का भोलापन छिन जाता है । बेढब केशरचना से बच्चों को आध्यात्मिक कष्ट होता है । इससे उनके बुद्धि, मन तथा शरीर का विकास रुक सकता है । – संकलक, दैनिक सनातन प्रभात)

उ. उत्तरदायी अभिभावक !

अभिभावक ही छुट्टी के दिन अपने ६ से १४ वर्ष के बच्चों को बहुपयोगी केशकर्तनालयों में ले जाते हैं । वहां वे एक बार में ४ से ५ सहस्र (हजार) रुपए व्यय (खर्च) करते हैं । इस विषय में अभिभावकों कहना है कि बच्चों को सुंदर तथा स्मार्ट दिखने के लिए इतना पैसा तो व्यय करना ही चाहिए । (अभिभावकों की यह सोच, उनके वैचारिक पतन का लक्षण है । देश संकट में है, फिर भी अभिभावकों को नहीं लगता कि हमारे बच्चे राणाप्रताप, शिवाजी, रामदासस्वामी अथवा लोकमान्य तिलक समान बनें । उन्हें लगता है कि हमारे बच्चे मॉडेल अथवा चलचित्रपट अभिनेता बनकर नाम कमाएं ।)

ऊ. मालिशकेंद्रों तथा केशकर्तनालयों में होनेवाली भीड के कारण वे अति तनाव उत्पन्न करनेवाले केंद्र बन गए हैं । मालिशकेंद्रों में आनेवाले १५ से २० प्रतिशत ग्राहक युवा तथा उससे छोटी वय के होते हैं । (यह आंकडा वर्ष २००७ का है । अब यह आंकडा बडा हो गया होगा । – संकलनकर्ता)

ए. युवा तथा उससे छोटी वय के कुछ लडके-लडकियां सौंदर्यवर्धनालयों तथा उनसे जुडे मालिशकेंद्रों में महीने में २ से ३ बार जाते हैं । देहली समान बडे नगरों के लडके-लडकियां यहां प्रत्येक बार सहस्रों रुपए व्यय करते हैं । बाल कटवाना, संवारना, रंगवाना, मुखलेपन (मेक-अप), गोदना (टैटू) गोदवाना, सौंदर्यवर्धनालयों में की जानेवाली विविध प्रकार की शारीरिक स्वच्छता एवं विविध सौंदर्यवर्धक कार्य इन सबके लिए अलग-अलग पॅकेज होते हैं । आरंभ में निःशुल्क प्रवेश देकर अभिभावकों को आकर्षित किया जाता है ।

ऐे. बच्चों के लिए आकर्षक भोज (पार्टी) का पॅकेज भी दिया जाता है । केशकर्तनालयों में आयोजित होनेवाले जन्मदिन के भोज लोकप्रिय हो रहे हैं । उसमें, केशकर्तनालय के कर्मचारी भी उन बच्चों को शुभकामना (विश) देते हैं । उस अवसर पर सौंदर्यवर्धनालय उन्हें विविध प्रकार के सौंदर्यप्रसाधनों से भरा डिब्बा उपहार में देते हैं । अर्थात्, उस समय स्वाभाविकरूप से सुंदर बच्चों को बडे लोगों की भांति सौंदर्यप्रसाधनों से सजाने का काम ये सौंदर्यवर्धनालय करते हैं, यह अलग से बताने की आवश्यकता नहीं है ।

ओ. इन कार्यों में कितना बडा व्यापार होता है, यह सहजता से पता चलता है । (यह कार्य, सौंदर्यप्रसाधनों के अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठानों के सहयोग के बिना नहीं हो सकता । – संकलनकर्ता)

 

२. शरीर सुंदर बनाने के लिए शल्यक्रिया !

अ. नगरों के पौगंडावस्था के अथवा उससे भी छोटी अवस्था के बच्चे सुंदर दिखने के लिए बाल, त्वचा, चेहरा, नाक, चरबी आदि पर लेजर से शल्यक्रिया तथा प्लास्टिक सर्जरी करवा रहे हैं । इन लडकों का मानना है कि इस शल्यक्रिया से हमारा बोलचाल अच्छा हो जाता है ।

आ. राजधानी के नगरों में रहनेवाली युवा लडकियों में, सुंदर दिखने के लिए शरीर का विशिष्ट अंग सुडौल बनानेवाली शल्यक्रिया करवाने का चलन तेजी से लोकप्रिय हो रहा है । १५ वें वर्ष से लडकियां इस प्रकार की शल्यक्रिया करवाकर दिखावटी सुंदर बन रही हैं अथवा उन्हें संतोष होता है कि मैं सुंदर हो गयी हूं ! लडकियों का मानना है कि इस शल्यक्रिया से कम कपडों में तथा तैरने के पोशाक में हम सुंदर दिखायी देती हैं । (युवा लडकियों का उपर्युक्त प्रकार की शल्यक्रिया करवाना, भोगवादी पाश्‍चात्य संस्कृति का प्रभाव ही है । अपने इन्हीं कर्मों से लडकियां अपनेआप को उपभोग की वस्तु बना रही हैं । लडकी को आगे चलकर पत्नी तथा मां बनना है, यह संस्कार अभिभावक नहीं दे रहे हैं । वे लडकी के हाथ में आवश्यकता से अधिक पैसा तथा खुली स्वतंत्रता देते हैं । इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि अनेक लडकियां विविध प्रकार के अत्याचारों की बलि चढ रही हैं । – संकलनकर्ता, दैनिक सनातन प्रभात)

इ. इसमें विशेष बात यह है कि यह सब करवाने का सुझाव लडकी का प्रेमी (बॉयफ्रेंड) देता है ।

ई. लडके-लडकियों को सुंदर दिखना होता है; इसलिए वे शल्यक्रिया से नहीं डरते । जब वे नाक की शल्यक्रिया कराने आते हैं, तब अपने प्रिय अभिनेता का चित्र भी साथ लाते हैं । कहते हैं, मेरी नाक इनके समान बना दीजिए ।

उ. आजकल के लडके आधुनिक चिकित्सक अथवा अभियंता बनने की अपेक्षा अभिनेता अथवा मॉडेल बनना अधिक पसंद करते हैं । इस दिखावटी तथा चकाचौंधभरे भविष्य को पाने के लिए इस प्रकार की शल्यक्रिया पर पैसा व्यय करने में मध्यमवर्गीय लडके-लडकियों को थोडा भी संकोच नहीं होता अथवा अनुचित नहीं लगता ।

ऊ. लडकों के मन के अनुसार करने की आज के समाज की मानसिकता

शल्यक्रिया करनेवाले आधुनिक चिकित्सक कहते हैं कि लडके अभिभावकों के साथ शल्यक्रिया करवाने आते हैं । शल्यक्रिया कराने का निर्णय बहुधा लडकों का ही होता है । आजकल के अभिभावक भी, प्रायः बेटे के कहे अनुसार कार्य करनेवाले होते हैं ।

ए. सौंदर्यवर्धक शल्यक्रिया का शरीर पर दुष्परिणाम

१. कुछ चिकित्सकों का कहना है कि उपर्युक्त प्रकार की शल्यक्रिया करवाने से बच्चों का नैसर्गिक विकास थम जाता है तथा हार्मोन्स पर बुरा प्रभाव पडता है । शरीर का भार घटाने के लिए शल्यक्रिया से चरबी निकलवाना उचित नहीं है । इससे किडनी अथवा रक्त दूषित होने की अधिक संभावना रहती है ।

२. छोटी वय के लडके बडों की भांति कार्य कर, अपनी छवि बदलने का प्रयत्न करते हैं । ये बच्चे समय से पहले ही बडा होकर, अपनी भावना का विकास तथा बालपन खो बैठते हैं । जब ये ४०-४५ वर्ष के होते हैं, तब उन्हें छोटे बच्चों की भांति आचरण करने का मन करता है । इससे, वे बच्चों जैसा व्यवहार करने लगते हैं । – डॉ. राजेंद्र बर्वे, समुपदेशक तथा अध्यक्ष, मुंबइ सायकॅट्रिक सोसाइटी

 

३. आधुनिक चिकित्सक मानते हैं कि अधिक सुंदर
दिखने के लिए की जानेवाली शल्यक्रिया से हानि हो सकती है ।

आज पाश्‍चात्य देशों में भारतीय लोग बहुत बुद्धिमान माने जाते हैं । इस बुद्धि के बल पर ही वे बडे-बडे पदों की शोभा बढा रहे हैं । वहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि उन्हें यह सफलता भारत के सात्त्विक आहार-विहार, सादा जीवन, नैसर्गिक दिनचर्या, आध्यात्मिक संस्कार आदि अपनाने से ही मिली है । एक अंतराष्ट्रीय षड्यंत्र के माध्यम से भारत की भावी पीढी को योजनाबद्ध ढंग से पतित बनाकर उसका तेज नष्ट किया जा रहा है । समय रहते ध्यान नहीं दिया गया, तो भारत के राजधानीवाले नगरों में बढनेवाली इस कुप्रवृत्ति को ग्रामीण भागों में फैलने में समय नहीं लगेगा । यह षड्यंत्र इसी प्रकार चलता रहा, तो हनुमानचालीसा पढनेवाले तथा सूर्यनमस्कार करनेवाले भारतीय बालको का उल्लेख इतिहास में ही मिलेगा, वे प्रत्यक्ष नहीं दिखायी देंगे । मिलावटी दूध में उंचाइ बढानेवाला चूर्ण मिलाकर पीनेवाली कल के भारत की पीढी मंदबुद्धि, दुर्गुणी, निस्तेज तथा ध्येयहीन उत्पन्न हो, तो आश्‍चर्य नहीं होना चाहिए । यह सब रोकने के लिए स्वधर्म तथा स्वसंस्कृति का महत्त्व जानना एवं उनका आचरण करना आवश्यक है !

– श्रीमती रूपाली वर्तक, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल ।

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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