डे’ ज और शुभकामनाएं !

भारत के सामाजिक प्रसारमाध्यमोंपर भी अब ‘मदर्स डे’, ‘फादर्स डे’, ‘पैरेंट्स डे’ आदि डेज उत्स्फूर्तता से मनाए जा रहे हैं । ‘हम इस उपलक्ष्य में अभिभावकों के प्रति प्रेम और सम्मान व्यक्त करते हैं’, यह इन लोगों का कहना होता है । मदर, फादर आदि शब्द अंग्रेजी शब्दकोश से हैं । १६ जून को फादर्स डे मनाया गया । ईसाईयों के प्रार्थनास्थल चर्च के मार्गदर्शक को ‘फादर’ कहा जाता है । इसे छोडकर इस शब्द का अन्य कहींपर उपयोग किया जाता हो, ऐसा सुनने में नहीं आया है । ईसाईयों द्वारा अभिभावकों को मदर, फादर आदि कहना उनकी परंपराओं का भाग है; किंतु ऐसा होते हुए भी हिन्दू धर्मियों ने भी सामाजिक प्रसारमाध्यमोंपर ‘हैपी फादर्स डे’ का स्वर लगाकर अपने पिताओं को शुभकामनाएं देकर संतोष व्यक्त किया । अंग्रेजी वाक्य ‘हैपी फादर्स डे’ का हिन्दी में भाषांतर करनेपर ‘आनंदित पिता दिवस’ वाक्य बनता है; किंतु उससे निश्‍चित अर्थबोध नहीं होता, साथ ही उसे पढते हुए भी कुछ अलग ही लगता है । इसका अर्थ जो अर्थशून्य है, उसी का उदात्तीकरण किया जा रहा है ।

अभिभावकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु क्या विदेशी पृष्ठभूमिवाले डेज की आवश्यकता है ? ऐसे एक दिवसीय प्रेम व्यक्त कर क्या हाथ लगेगा ? कितने बच्चे अपने अभिभावकों को प्रतिदिन झुककर नमस्कार करते हैं ? इस भूमि से संबंधित बातों को छोडकर अन्य सभी बातों के प्रचार की होड लग गई है और उनके आचरण की मानो प्रतियोगिता ही चलती हुई दिखाई दे रही है । हम उनके विचारों के इतने बडे गुलाम हो चुके हैं, इसपर इन लोगों को बडा गर्व हो रहा है । जो भारतीय संस्कृति का आचरण करते हैं, वे पुराने विचारोंवाले, तत्त्वनिष्ठ, कर्मठ आदि हैं, इस दृष्टि से उनकी ओर देखा जाता है ।

हिन्दू धर्म, भाषा और संस्कृति के प्रति मन से क्रियान्वयन के स्तरपर आदर होना आवश्यक है । उसके कारण ऐसे डेज मनाने हेतु भले कोई भी कितना भी दबाव बनाएं और ‘अमुक डे को सामूहिक पद्धति से मनाना है’, ऐसा बताएं; परंतु क्या धर्म के प्रति दृढ निष्ठा ऐसे प्रसंगों में भी स्थिर रहने के लिए, साथ ही क्या उचित है ? इन विचारों को हटाकर विनम्रता के साथ अयोग्य बातों का अस्वीकार करना आरंभ किया जाना चाहिए । उससे उचित क्या है ?, यह बताने का अवसर ही उपलब्ध होता है । उसके कारण न्यूनतम कुछ लोगोंतक तो ‘उचित क्या है ?’, इसे पहुंचाने में सहायता मिलती है, साथ ही उससे हमारा अध्ययन भी बढता है । अन्यथा भविष्य में भी ऐसे विविध डेज मनाने की स्थिति आएगी, यह निश्‍चित होता है !

– श्री. जयेश राणे, भांडुप, मुंबई
संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात

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