मानव-निर्मित कीटनाशक मानव का मित्र अथवा शत्रु ?

विज्ञान की मर्यादा सिद्ध !

 

१. कीटनाशकों से कृषि को लाभ होता है; परंतु
कुछ उपयोगी प्राणियों पर इनका प्रतिकूल प्रभाव !

‘विषैले रासायनिक कीटनाशकों ने कृषि को नष्ट करनेवाले कीटों के साथ-साथ मच्छरों की संख्या कम करने में सहायता की, परंतु इन विषैले रसायनों के कारण अनेक उपयुक्त और हानिरहित प्राणियों और कीटों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाला है ।

 

२. ‘डीडीटी’ के अंधाधुंध उपयोग से हजारों मील दूर भी इसके अंश पाए जाना

जैसे ही कीटनाशक ‘डीडीटी’ का अंधाधुंध उपयोग आरंभ हुआ, डीडीटी के अंश न केवल भोजन, अनाज, पानी अथवा भूमि में पाए जाने लगे, अपितु हजारों मील दूर ‘अंटार्कटिका’ महाद्वीप की बर्फ में भी पाए गए हैं !

 

३. ‘डीडीटी’ और ‘डीडीई’ जैसे विषैले घटकों के
दुष्प्रभावों का अध्ययन करने की आवश्यकता होना

‘डीडीटी’ और उसका विघटन होकर निर्माण होनेवाली ‘डीडीई’, दोनों अब अत्यधिक विषैले रसायन की श्रेणी में आते हैं । उन कीटनाशकों के संभावित दुष्प्रभाव क्या हैं ? इसे एक संपूर्ण अध्ययन द्वारा समझाया जा सकता है ।

 

४. बहरी पक्षियों पर प्रतिकूल प्रभाव !

४ अ. प्रकृति-प्रेमी विदेशियों को ‘डीडीटी’ का उपयोग
करने से पहले कृषि के लिए बहरी पक्षी का अध्ययन करना चाहिए ।

इंग्लैंड और यूरोप देशों में ‘प्राकृतिक इतिहास’ विषय में रुचि रखनेवालों ने विविध कीटक, पक्षी, मेंढक और मछलियों के विषय में सैकडों वर्षों के अध्ययन का इतिहास उपलब्ध है, जो अब भी जारी है ।

‘डीडीटी’ के उपयोग से पहले, इन देशों में मनुष्य के लिए उपयोगी बहरी पक्षी की कई प्रजातियों पर अध्ययन किया जा रहा था । छोटे पक्षी जो खेत के अनाज और बीज खाते हैं, उन्हें ये बहरी पक्षी मारते हैं । (ये कृषि के लिए लाभदायक हैं ।)

४ आ. कीटनाशकों के उपयोग के उपरांत बहरी पक्षियों की संख्या घटना

जैसे-जैसे कीटनाशकों का उपयोग बढता गया, वैसे-वैसे उनकी संख्या घटती गई । १९६० और १९७० के दशक में बहरी पक्षियों की संख्या ७० से ८० प्रतिशत तक घट गई ।

 

५. मानव-निर्मित कीटनाशक ही प्रदूषण का कारण

मानव-निर्मित रासायनिक कीटनाशकों का गुणधर्म है कि वे दीर्घकाल तक टिकते हैं । अत: प्रमुख रूप से प्रदूषण में इन्हीं का योगदान है !’ (प्रकृति का संतुलन बनाए रखने के लिए न केवल विज्ञान; अपितु आध्यात्मिक समर्थन भी आवश्यक है । आध्यात्मिक समर्थन प्राप्त करना केवल हिन्दू राष्ट्र में ही संभव है । – संकलनकर्ता)

(संदर्भ : अज्ञात)

Leave a Comment