संस्कृत मंत्रों के उच्चारण से स्मरणशक्ति बढती है !

अमेरिका के न्यूरो शोधकर्ता डॉ. जेम्स हार्टजेल का दावा

क्या पाश्‍चात्य संस्कृति का गुणगान करनेवाले आधुनिकतावादी हिन्दू संस्कृति की महानता को समझेंगे ?

पूरे विश्‍व में महान हिन्दू संस्कृति पर शोध हो रहे हैं, किंतु अज्ञानी आधुनिकतावादी भारत में इस संस्कृति की आलोचना करते हैं, इससे बडा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है ? हिन्दू संस्कृति का महत्त्व भारतीयों के ध्यान में आए, इसके लिए उन्हें धर्मशिक्षा की कितनी आवश्यकता है; यह समझ में आता है !

अमेरिका – वैदिक संस्कृत मंत्रों के उच्चारण से स्मरणशक्ति बढती है, अमेरिका के एक समाचार-पत्र ने ऐसा दावा किया है । इस समाचार के अनुसार डॉ. जेम्स हार्टजेल नामक न्यूरो शोधकर्ता ने अमेरिका की एक मासिक पत्रिका में अपना यह शोध प्रकाशित किया है ।

१. डॉ. जेम्स हार्टजेल ने शोध के उपरांत ‘द संस्कृत इफेक्ट’ नाम प्रस्थापित किया है । क्या सदैव वैदिक मंत्रों का उच्चारण करने से सच में स्मरणशक्ति बढती है ? इस पर अनुसंधान के लिए डॉ. जेम्स और इटली के ट्रेन्टो विश्‍वविद्यालय के उनके सहयोगी, इन दोनों ने भारत के ‘नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर’ के डॉ. तन्मय नाथ और डॉ. नंदिनी चटर्जी के साथ एक गुट बनाया ।

२. विशेषज्ञों के इस गुट ने ४२ स्वयंसेवक चुने । इसमें देहली के एक वैदिक विद्यालय के २१ प्रशिक्षित वैदिक ब्राह्मण और एक महाविद्यालय के २१ विद्यार्थियों को संस्कृत उच्चारण के लिए चुना गया । तदपश्चात आधुनिक तकनीक की सहायता से इन ४२ स्वयंसेवकों के मस्तिष्क का ‘ब्रेन मैपिंग’ किया गया ।

३. इस गुट ने जब २१ ब्राह्मण और अन्य २१ विद्यार्थियों का ब्रेन मैपिंग किया, तब उन्होंने दोनों में बहुत अंतर पाया । जो विद्यार्थी संस्कृत उच्चारण में पारंगत थे, उनकी स्मरणशक्ति, भावना और निर्णयक्षमता नियंत्रित करनेवाला मस्तिष्क का भाग अधिक सक्षम पाया गया । विशेष बात यह कि उनके मस्तिष्क की संरचना में हुआ परिवर्तन तात्कालिक नहीं था । शोधकर्ताओं के मत में, जो विद्यार्थी वैदिक मंत्रों में पारंगत थे, उनमें हुआ परिवर्तन दीर्घकाल तक बना रहनेवाला था । इसका अर्थ यह है कि संस्कृत में पारंगत विद्यार्थियों की स्मरणशक्ति, निर्णयक्षमता तथा आंकलन क्षमता दीर्घकाल तक बनी रहनेवाली थी ।

संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात

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