आत्महत्या रोकने के लिए शिक्षाप्रणाली में धर्मशिक्षा, धर्माचरण एवं साधना का समावेश अत्यावश्यक !

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अध्यात्मशास्त्र कहता है, ‘प्रतिदिन होनेवाली आत्महत्याएं, ये जीवन की निराशा, संकट, कसौटी के क्षण, तनाव के प्रसंगों का सामना करने के लिए आवश्यक आत्मबल देने के लिए वर्तमान की शिक्षाप्रणाली, समाजरचना एवं संस्कार असफल होने के द्योतक हैं । ‘जीवन के ८० प्रतिशत दुःखों का मूल कारण भी आध्यात्मिक होने से उन पर केवल आध्यात्मिक उपायों से अर्थात साधना द्वारा मात कर सकते हैं ।’

साधना करने पर प्राप्त होनेवाले आत्मबल से मन सुदृढ, संतुष्ट और आनंदमय होता है । साधना के कारण मन की एकाग्रता साध्य होने के साथ-साथ मनःशांति भी मिलती है । प्रत्येक घटना प्रारब्धानुसार होनेवाली है, इस शाश्वत सत्य का भान रहता है । इतना ही नहीं अपितु जिद, लगन जैसे गुण निर्माण होकर ध्येय की आपूर्ति के लिए ईश्वरीय अधिष्ठान प्राप्त होने से यशप्राप्ति भी होती है । साधना ही सभी प्रश्नों का अंतिम उत्तर है । इसलिए शिक्षाप्रणाली में धर्मशिक्षा, धर्माचरण, साधना इत्यादि बातों का समावेश होना अत्यावश्यक है ।’

मानसिक तनाव दूर करने के लिए समाज को साधना एवं धर्माचरण सिखाना आवश्यक है । साधना करने से मानसिक तनाव दूर होकर जीवन आनंदी होने की अनुभूति सनातन के मार्गदर्शन में साधना करनेवाले सहस्रों साधकों ने अब तक ली है !

साधना करने से सकारात्मक विचार आते हैं और व्यक्ति निरंतर आनंदमय जीवनयापन कर सकता है । विज्ञान द्वारा प्राप्त भौतिक साधनों से क्षणिक सुख मिलता है; परंतु कायमस्वरूपी आनंद न मिलने से मनुष्य को अध्यात्म के बिना दूसरा विकल्प नहीं, यही पुन: सिद्ध होता है । इसी आनंद के लिए बहुतांश पश्चिमी देशों से भारत में साधना सीखने के लिए आ रहे हैं ! इसलिए शासन द्वारा नागरिकों को धर्मशिक्षा देकर साधना सिखाना अत्यावश्यक है !

छुटपुट कारणों से आत्महत्या जैसी घटनाएं होना, इससे आपातकाल की तीव्रता ध्यान में आती है । साधना करने से ही भगवान मनुष्य की रक्षा करेंगे, यह ध्यान में रखें !

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