पेडों में भावनाएँ होती हैं और इस अवसर पर वे मनुष्यों को क्षमा भी कर देती हैं ।

वनस्पतियों में भी भावनाएं होती हैं, यह भारत के वैज्ञानिक जगदीशचंद्र बोस ने बताया था ।  भारतीय संस्कृति में वृक्षों को भी देवता कहा गया है । इसलिए उनका भी पूजन किया जाता है । नीचे दिए गए प्रयोग में आए अनुभव से यह सिद्ध हुआ है कि पेड-पौधों में भी भावनाएं होती हैं और प्रसंग आने पर मनुष्य को क्षमा भी करते हैं ।

‘नाशिक में हमारे बगीचे में अनेक प्रकार और रंगों के गुडहल के फूल खिले थे । मेरे दरवाजे के सामने ही पीले रंग के परंतु अंदर लाल-से (गहरे गुलाबी) रंग के गुडहल के बहुत-से फूल खिले थे । प्रतिदिन लगभग ६० से अधिक फूल वृक्ष पर होते थे और मुझे वे अत्यंत प्रिय थे; परंतु एक गुडहल वृक्ष की टहनियां पडोस में रहनेवाले सोनार चाचा के बगीचे में फैलने लगीं । अगले दिन मुरझाए हुए फूल वृक्ष से टूटकर नीचे गिरते थे और बहुत कचरा जमा हो जाता था । मुरझाए हुए फूलों पर असंख्य भुनके बैठते थे, जो दिनभर घर में भी उडते रहते थे । मुरझाने के पश्‍चात फूल चिपचिपे हो जाते हैं और गलती से यदि उस पर पैर पड जाए, तो व्यक्ति के फिसलकर गिरने की संभावना होती थी । इसलिए सोनार चाचा इन टहनियों को काटने के लिए मुझे सतत कहते रहते थे; परंतु मैं चाचा से कहता ‘इन टहनियों पर आईं कलियों को खिलने दें । फिर कुछ दिनों में फूल कम हो जाएंगे । तब काट देंगे ।’

 

क्रोधावेश में आकर गुडहल की टहनियों को काट देना
और इस कृत्य की विकृति ध्यान में आने पर पश्‍चाताप होना

अनेक दिनों तक जब मैंने टहनियों को नहीं काटा तो सोनार चाचा क्रोधित होकर बोले, ‘अभी तुरंत इन टहनियों को काट डालो ।’ इससे मुझे भी क्रोध आ गया ओैर मैंने कुल्हाडी से वृक्ष की टहनियों को काट दिया । मैंने १०-१२ फुट ऊंचे वृक्ष को ढाई-तीन फुट का बना दिया । फिर मुझे ध्यान में आया कि क्रोधावेश में मनुष्य का आचरण कितना विकृत हो जाता है । मुझे इसका पश्‍चाताप हुआ; पर अब इसका कोई उपयोग नहीं था ।

 

वर्षा के दिनों में वृक्ष का पुन: बढना; परंतु उस पर एक भी फूल न लगना

वर्षा के दिन थे । वृक्ष शीघ्रता से बढ गया; परंतु उसकी एक भी टहनी सोनार चाचा के बगीचे की दिशा में नहीं बढी । वृक्ष हरा-भरा था; परंतु उस पर एक भी फूल नहीं ! उस वृक्ष के आसपास के वृक्षों पर असंख्य फूल थे । उस गुडहल के वृक्ष पर खाद और औषधियों का भी प्रयोग किया गया, परंतु विशेष लाभ नहीं हुआ । ६ मास बीत गए, मन की खिन्नता बढ गई । मैंने यह घटना सोनार चाचा को बताई तो उन्हें भी बहुत बुरा लगा ।

 

वृक्ष से प्रतिदिन क्षमा मांगना आरंभ करने पर कुछ ही दिनों में गुडहल की कलियां आना

एक दिन कन्याकुमारी के विवेकानंद केंद्र की वरिष्ठ कार्यकर्ता सरस्वतीदीदी से दूरभाष पर संपर्क हुआ । उन्हें वृक्षों के विषय में बहुत जानकारी है । मैंने उन्हें गुडगल के वृक्ष की कथा सुनाई । इस पर वे बोलीं, ‘‘उस वृक्ष से प्रतिदिन निर्धारित समय पर क्षमा मांगो । वृक्ष का दुलार करो, उसे सहलाओ और बातें करो ।’’ मैंने तुरंत यह आरंभ कर दिया । पहले दिन थोडा कृत्रिम लगा; परंतु जैसे-जैसे दिन बीतते गए, वैसे-वैसे मेरे बोलने में और स्पर्श में एक व्याकुलता अपनेआप ही निर्माण होने लगी । वृक्ष को फूल कब लगेंगे इस उत्सुकता की अपेक्षा हममें एक अनोखा नाता निर्माण हो गया । वह मुझे अधिक महत्त्वपूर्ण लगा । १०-१२ दिन उपरांत मैंने सवेरे पत्तों के पीछे एक कली देखी । मुझे अत्यधिक आनंद हुआ । तदुपरांत ४ दिनों में ही गुडहल का वृक्ष कलियों से भर गया । फूल भी खिलने लगे । तब मुझे विश्‍वास हो गया कि गुडहल के वृक्ष ने वास्तव में मुझे क्षमा कर दिया है । मैंने गुडहल से कहा, ‘‘अब मैं जन्मभर कभी ऐसी गलती नहीं करूंगी ।’’

– भारती ठाकुर, नर्मदालय, लेपा पुनर्वास (बैरागढ), जिला खरगोन, मध्य प्रदेश.
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

Leave a Comment