धर्मांतरितों के शुद्धीकरण पर स्वामी विवेकानंद के विचार !

धर्मांतरित हिन्दुओं और मूलतः अहिन्दुओं के शुद्धीकरण पर ‘प्रबुद्ध भारत’ पत्रिका के प्रतिनिधि ने वर्ष १८९९ में स्वामी विवेकानंद से वार्तालाप किया था ।

स्वामी विवेकानंद के समान ज्वलंत धर्माभिमान धारण करें !

एक बार जब स्वामीजी अपने शिष्यों के साथ कश्मीर गए थे, तब उन्हें वहां क्षीर भवानी मंदिर के भग्नावशेष दिखाई दिए । उन्होंने बहुत दुखी होकर अपनेआप से पूछा, जब यह मंदिर भ्रष्ट और भग्न किया जा रहा था, तब लोगों ने प्राणों की बाजी लगाकर प्रतिकार क्यों नहीं किया ?

अक्कलकोट के श्री स्वामी समर्थ की समाधि के छायाचित्र

‘डरो मत…! – तुम्हारी रक्षा के लिए मैं तुम्हारे साथ हूं !’ मराठी में ऐसा आशीर्वचन देनेवाले श्री स्वामी समर्थ । स्वामी समर्थ अर्थात प्रभु दत्तात्रेय के चौथे अवतार ।

भारतीय संस्कृति को संजोकर रखनेवाला नेपाल !

भारतीय रुपया जैसा उस पर महात्मा गांधी अथवा किसी नेपाली राजनेता का चित्र नहीं, अपितु इस नोट पर हिमालय का चित्र है ।

भक्त शिरोमणि सूरदास

भक्ति काल के सर्वश्रेष्ठ संत कवि सूरदास की रचनाओं को जो भी पढता है, वह श्रीकृष्ण की भक्ति में डूबे बिना नहीं रह पाता है ।

संत मीरा बाई

संत मीरा बाई ने बताया है कि श्रीकृष्ण के प्रति अटूट आस्था के कारण, उनपर दृढ श्रद्धा के कारण उन्होंने अपने जीवन के कठिन से कठिन प्रसंग भी पार किए हैं ।

सूरदासजी की गुरुभक्ति

गुरुआज्ञा मानकर ही तो संत सूरदास जी ने अपने को कृष्ण भक्ति में ऐसा डुबो दिया था कि आज भी उनके समान दूसरे भक्त कवि नहीं हुए ।

क्या गुरु द्वारा बताई साधना करना ही आवश्यक है ?

मन का कार्य ही है विचार करना । इस कारण मन में सदैव संकल्प और विकल्प आते रहते हैं । इस कारण जब तक साधना करके मनोलय की स्थिति नहीं आती, तब तक मन में संदेह उत्पन्न होना स्वाभाविक है ।

क्या गुरु बदल सकते हैं ?

कुछ लोगों की मोहमाया की इच्छाएं तृप्त ही नहीं होतीं । वे गुरु के पास सतत कुछ ना कुछ मांगते ही रहते हैं । वे लोग भूल जाते हैं कि मन की इच्छा नष्ट कर मनोलय करवाना ही गुरु का खरा कार्य है ।