मनुष्य को २३ पवित्र तीर्थस्थलों के दर्शन का पुण्य प्रदान करनेवाली अमरनाथ यात्रा !

श्री अमरनाथ हिन्दुआें का मुख्य तीर्थक्षेत्र है । प्राचीन काल में उसे अमरेश्वर के नाम से जाना जाता था ।

रावणवध के पश्‍चात ब्रह्महत्या का लगा पाप दूर हो, इसके लिए श्रीरामजी द्वारा पूजित श्रीलंका के नगुलेश्‍वरम् मंदिर का शिवलिंग !

श्रीलंका के हिन्दू अधिकांश उत्तरी श्रीलंका में रहते हैं । इनमें से अधिकांश हिन्दू तमिल भाषी हैं । उत्तरी श्रीलंका का हिन्दू संस्कृति से संबंधित महत्त्वपूर्ण नगर है जाफना ! इस नगर से ३० कि.मी. दूरीपर कीरीमैला नामक एक छोटा गांव है । यह गाव समुद्र क तटपर बंसा है ।

दक्षिण कैलास कहा जानेवाला श्रीलंका का तिरुकोनेश्‍वरम् मंदिर

रावणासुर के संहार के पश्‍चात श्रीराम पुष्पक विमान से अयोध्या लौट रहे थे, तब उनके विमान के पीछे एक काला बादल आ रहा है, ऐसा उनके ध्यान में आता है । तब शिवजी प्रकट होकर श्रीराम से कहते हैं, यह काला बादल आपको ब्रह्महत्या के कारण लगे पाप का प्रतीक है ।

कंबोडिया के ‘नोम देई’ गांव में भगवान शिव का ‘बंते सराई’ मंदिर !

‘महाभारत में जिस भूभाग को ‘कंभोज देश’ संबोधित किया गया है, वह भूभाग आज का कंबोडिया देश ! यहां १५ वें शतक तक हिन्दू रहते थे । ऐसा कहा जाता है की ‘ईसवी सन ८०२ से १४२१ तक वहां ‘खमेर’ नाम का हिन्दू साम्राज्य था’ ।

कंबोडिया में समराई नामक समुदाय के लिए निर्मित भगवान शिवजी का बंते समराई मंदिर !

हिन्दू साम्राज्य खमेर के समय समराई नामक एक समुदाय था । यह समुदाय परिश्रम के काम करता था । इस समुदाय के लोग मंदिर, राजमहल, नगर की विविध वास्तूएं, सेतू आदि के निर्माण के लिए आवश्यक पत्थरों को महेंद्र पर्वत की तलहटी के पास जाकर लाते थे ।

कंबोडिया के महेंद्र पर्वतपर उगम होनेवाली कुलेन नदी को तत्कालनी हिन्दू राजाआें द्वारा पवित्र गंगानदी की श्रेणी प्रदान की जाना तथा प्रजा को गंगा नदी की भांति पवित्र जल मिले तथा भूमि उपजाऊ होने के लिए पानी में १ सहस्र शिवलिंग अंकित किए जाना

वास्तव में कंभोज प्रदेश कौंडिण्य ऋषि का क्षेत्र था, साथ ही कंभोज देश एक नागलोक भी था । ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि कंभोज देश के राजा ने महाभारत के युद्ध में भाग लिया था । नागलोक होने के कारण यह एक शिवक्षेत्र भी है ।

महादेव के सामने नंदी नहीं हैं, ऐसा त्रिलोक में एकमेव श्री कपालेश्‍वर मंदिर

नासिक वास्तव में पुण्यभूमि है । इस नगरी को साक्षात भगवान शिव, प्रभु श्रीरामचंद्र और अन्य देवी-देवताआें के चरणस्पर्श हुए हैं; इसलिए वह आध्यात्मिक नगरी भी है ।

दो हिस्सों में बंटा है ये अर्द्धनारीश्वर शिवलिंग, शिवरात्रि पर हो जाता है दोनों का मिलन

यूं तो संपूर्ण भारत में ही शिव के अनेक मंदिर हैं किंतु उत्तराखंड और हिमाचल के पर्वतीय क्षेत्रो में ऐसे कई चमत्कारी मंदिर हैं, जहां श्रद्धालु भोलेनाथ को नमन करने के अलावा उस मंदिर से जुड़ी प्राचीन व अलौकिक मान्यताओं के कारण भी दर्शन करने आते हैं।

पाताल तक जाता है इस शिवलिंग पर चढाया गया जल, यहां लक्ष्मण को दिए थे महादेव ने दर्शन !

भगवान शिव के कई प्राचीन मंदिर अत्यंत रहस्यमय भी हैं। छत्तीसगढ़ के खरौद नगर में स्थित एक प्राचीन मंदिर में जिस शिवलिंग की पूजा की जाती है, उसके बारे में मान्यता है कि यहां से एक मार्ग पाताल तक जाता है।

यहां फेरे लेकर भगवान शिवजी ने किया था माता पार्वती से विवाह, आज भी जल रही वो अग्नि

भगवान शिवजी को पत‌ि रूप में पाने के ल‌िए देवी पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। देवी पार्वती की कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव ने उनके विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार कर दिया। भगवान शिवजी और देवी पार्वती का विवाह उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में हुआ था।