श्रीलंका में जहां सीतामाता ने अग्निपरीक्षा दी, उस स्थान की गुरुकृपा से संपन्न अविस्मरणीय यात्रा !

महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी तथा छात्र-साधकों द्वारा की गई रामायण से संबंधित श्रीलंका की अध्ययन यात्रा ! रामायण में जिस भूभाग को लंका अथवा लंकापुरी कहा जाता है, वह स्थान है आज का श्रीलंका देश ! त्रेतायुग में श्रीमहाविष्णुजी ने श्रीरामावतार धारण किया तथा लंकापुरी जाकर रावणादि असुरों का नाश किया ।

सीतामाता तथा हनुमानजी के पदस्पर्श से पवित्रत तथा केवल दर्शनमात्र से भाव जागृत करनेवाली श्रीलंका की अशोक वाटिका !

रामायण में जिस भूभाग को लंका अथवा लंकापुरी कहा गया है, वह स्थान आज का श्रीलंका देश है । त्रेतायुग में श्रीमहाविष्णुजी ने श्रीरामावतार धारण किया तथा लंकापुरी जाकर रावणादि असुरों का नाश किया । इस स्थानपर युगों-युगों से हिन्दू संस्कृति ही थी ।

इंडोनेशिया के बाली द्वीप पर स्थित विविध मंदिर और उनका संक्षिप्त इतिहास

इंडोनेशिया के बाली द्वीप पर ८७ प्रतिशत लोग हिन्दू हैं । बाली के मंदिरों को ‘पूरा’ नाम से जाना जाता है । उनमें पूरा बेसाखी, पूरा तीर्थ एंपूल, पूरा तनाह लोट और पूरा उलुवातू प्रमुख हैं । आज हम उनमें से पूरा तीर्थ एंपूल, पूरा तनाह लोट और पूरा उलुवातू , इन मंदिरों की जानकारी लेंगे ।

आध्यात्मिक स्तर की तथा मनुष्य जीवन के विविध अंगों को स्पर्श करनेवाले विचारों से संबंधित अर्थपूर्ण बाटिक नक्काशीवाले विविध देशों के विशेषतापूर्ण वस्रप्रावरण !

इंडोनेशिया के लोग विविध प्रकार की विशेषतापूर्ण बाटिक नक्काशीवाले कपडों में घूमते हुए दिखाई देते हैं । इस विषय में अधिक जानकारी लेते समय यह ध्यान में आया कि प्रत्येक प्रकार की नक्काशी का एक अलग अर्थ तथा अलग महत्त्व होता है ।

हिन्दू देवताओं के चित्रवाले विदेशी पोस्ट के टिकट, पोस्टकार्ड और चलन के नोट !

विश्‍व में ऐसे अनेक देश हैं, जिनके पोस्ट के टिकटों पर, चलन के नोटों पर, हिन्दू देवताओं के चित्र हमें देखने मिलते हैं । श्रीलंका, थाइलैंड, इंडोनेशियाआदि देशोंं में आज भी हमें रामायण से संबंधित हिन्दू देवताओं पर आधारित चित्रवाले पोस्ट के टिकट, पोस्टकार्ड दिखाई देते हैं ।

थाईलैंड का प्राचीन नगर – अयुद्धया

प्राचीन काल में जिसे श्याम देश कहा जाता था, वह भूभाग है, आज का थाईलैंड देश ! इस भूभागपर अभीतक अनेक हिन्दू तथा बौद्ध राजाआें ने राज्य किया । यहां की संस्कृति हिन्दू धर्मपर आधारित थी; परंतु कालांतर से बौद्धों के सांस्कृतिक आक्रमण के कारण इस स्थानपर बौद्ध धर्म प्रचालित हुआ ।

कंबोडिया के सीम रीप नगर में स्थित एशिया पारंपरिक वस्रों का संग्रहालय !

महाभारत में जिस भूभाग का उल्लेख कंभोज देश किया गया है, वह भूभाग है आज का कंबोडिया देश ! यहां १५वीं शताब्दीतक हिन्दू रहते थे । वर्ष ८०२ से लेकर १४२१ की अवधि में वहां खमेर नामक हिन्दू साम्राज्य था, साथ ही कंभोज देश एक नागलोक भी था ।

कंबोडिया के ‘नोम देई’ गांव में भगवान शिव का ‘बंते सराई’ मंदिर !

‘महाभारत में जिस भूभाग को ‘कंभोज देश’ संबोधित किया गया है, वह भूभाग आज का कंबोडिया देश ! यहां १५ वें शतक तक हिन्दू रहते थे । ऐसा कहा जाता है की ‘ईसवी सन ८०२ से १४२१ तक वहां ‘खमेर’ नाम का हिन्दू साम्राज्य था’ ।

कंबोडिया में समराई नामक समुदाय के लिए निर्मित भगवान शिवजी का बंते समराई मंदिर !

हिन्दू साम्राज्य खमेर के समय समराई नामक एक समुदाय था । यह समुदाय परिश्रम के काम करता था । इस समुदाय के लोग मंदिर, राजमहल, नगर की विविध वास्तूएं, सेतू आदि के निर्माण के लिए आवश्यक पत्थरों को महेंद्र पर्वत की तलहटी के पास जाकर लाते थे ।

१२ वें शतक के अंत में जयवर्मन राजा (सांतवे) द्वारा मां के लिए निर्मित ता-फ्रोम् मंदिर !

बापून मंदिर में जाने के पश्चात हम थाम मंदिर के परिसर के पूर्व की ओर जगप्रसिद्ध ता-फ्रोम् मंदिर गए । ऐसा कहा जाता है कि १२ वें शतक के अंत में जयवर्मन राजा (सांतवे) ने अपनी मां के लिए इस मंदिर का निर्माण किया होगा । वैसे तो यह मंदिर बौद्ध राजविहार है ।