श्री लक्ष्मीकुबेर पूजाविधि

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आश्विन अमावास्या पर, अर्थात लक्ष्मीपूजन के दिन सभी मंदिरों, दुकानों और घर-घर में श्री लक्ष्मीपूजन किया जाता है । इस पूजन की सरल-सुलभ भाषा में शास्त्रोक्त जानकारी यहां दी है ।

शक संवत अनुसार आश्विन अमावस्या तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक अमावस्या का दिन दीपावली का एक महत्त्वपूर्ण दिन है । सामान्यतः अमावस्या को अशुभ मानते हैं; परंतु दीपावली की अमावस्या शरद पूर्णिमा अर्थात कोजागिरी पूर्णिमा समान कल्याणकारी एवं समृद्धि दर्शक है ।

इस दिन ये धार्मिक विधियां करें…

१. श्री लक्ष्मीपूजन
२. अलक्ष्मी नि:सारण

दिवाली के इस दिन धन-संपत्ति की अधिष्ठात्रि देवी श्री महालक्ष्मी का पूजन करने का विधान है । दीपवाली की अमावस्या को अर्धरात्रिके समय श्री लक्ष्मी का आगमन सद्गृहस्थोंके घर होता है । घर को पूर्णत: स्वच्छ, शुद्ध और सुशोभित कर दीपावली मनाने से श्री लक्ष्मी देवी प्रसन्न होती हैं और वहां स्थायी रूप से निवास करती हैं । इसीलिए इस दिन श्री लक्ष्मी पूजन करते हैं और दीप जलाते हैं । यथा संभव श्री लक्ष्मीपूजन की विधि सपत्निक करते हैं ।

यह अमावस्या प्रदोष काल से आधी रात्रि तक हो, तो श्रेष्ठ होती है । आधी रात्रि तक न हो, तो प्रदोष व्यापिनी तिथि लेनी चाहिए ।

 

१. श्री लक्ष्मीपूजन एवं उसका अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व

श्री लक्ष्मी पूजन

 

२. श्री लक्ष्मीपूजन विधि

पूजक (यजमान) स्वयं को कुंकुम-तिलक लगवा ले ।

आचमन

आगे दिए ३ नामों का उच्चारण करने पर प्रत्येक नाम के अंत में बाएं हाथ से आचमनी में पानी लेकर दाईं हथेली से पिएं ।

श्री केशवाय नमः ।
श्री नारायणाय नमः ।
श्री माधवाय नमः ।

फिर नीचे दिए नाम से हाथ पर पानी लेकर नीचे ताम्रपात्र में छोडें –

श्री गोविन्दाय नमः ।

अब आगे के नामों का क्रमानुसार उच्चारण करें ।

श्री विष्णवे नमः । श्री मधुसूदनाय नमः । श्री त्रिविक्रमाय नमः । श्री वामनाय नमः । श्री श्रीधराय नमः । श्री हृषीकेशाय नमः । श्री पद्मनाभाय नमः । श्री दामोदराय नमः । श्री संकर्षणाय नमः । श्री वासुदेवाय नमः । श्री प्रद्युम्नाय नमः । श्री अनिरुद्धाय नमः । श्री पुरुषोत्तमाय नमः । श्री अधोक्षजाय नमः । श्री नारसिंहाय नमः । श्री अच्युताय नमः । श्री जनार्दनाय नमः । श्री उपेन्द्राय नमः । श्री हरये नमः । श्री श्रीकृष्णाय नमः ।

(हाथ जोडें ।)

प्रार्थना

श्रीमन्महागणाधिपतये नमः।
(गणों के नायक श्री गणपति को मैं नमस्कार करता हूं ।)

इष्टदेवताभ्यो नमः ।
(मेरे आराध्य देवता को मैं नमस्कार करता हूं।)

कुलदेवताभ्यो नमः ।
(कुलदेवता को मैं नमस्कार करता हूं ।)

ग्रामदेवताभ्यो नमः ।
(ग्रामदेवता को मैं नमस्कार करता हूं ।)

स्थानदेवताभ्यो नमः ।
(यहां के स्थान देवता को मैं नमस्कार करता हूं ।)

वास्तुदेवताभ्यो नमः ।
(यहां की वास्तुदेवता को मैं नमस्कार करता हूं ।)

आदित्यादिनवग्रहदेवताभ्यो नमः ।
(सूर्यादि नौ ग्रहदेवताओं को मैं नमस्कार करता हूं ।)

सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः ।
(सर्व देवताओं को मैं नमस्कार करता हूं ।)

सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमो नमः ।
(सर्व ब्राह्मणों को (ब्रह्म जाननेवालों को) मैं नमस्कार करता हूं ।)

अविघ्नमस्तु ।
(सर्व संकटों का नाश हो ।)

देशकाल का उच्चार करना

अपनी आंखों पर पानी लगाकर आगे दिया देशकाल बोलें ।

श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणो द्वितीये परार्धे विष्णुपदे श्रीश्वेत-वाराहकल्पे वैवस्वत मन्वंतरे अष्टाविंशतितमे युगे युगचतुष्के कलियुगे कलि प्रथम चरणे जंबुद्वीपे भरतवर्षे भरतखंडे दक्षिणापथे रामक्षेत्रे बौद्धावतारे दंडकारण्ये देशे गोदावर्याः दक्षिणतीरे शालिवाहन शके अस्मिन्वर्तमाने व्यावहारिके शोभकृत् नाम संवत्सरे, दक्षिणायने, शरदऋतौ, आश्विन मासे, कृष्ण पक्षे, अमायांतिथौ (१४.४५ नंतर), भानु वासरे, स्वाती दिवस नक्षत्रे, आयुष्मान (१६.२४ नंतर सौभाग्य) योगे, चतुष्पाद करणे, तुला स्थिते वर्तमाने श्रीचंद्रे, तुला स्थिते वर्तमाने श्रीसूर्ये, मेष स्थिते वर्तमाने श्रीदेवगुरौ, कुंभ स्थिते वर्तमाने श्रीशनैश्चरे, शेषेषु सर्वग्रहेषु यथायथं राशिस्थानानि स्थितेषु एवं ग्रहगुणविशेषण विशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ…..

महापुरुष भगवान श्रीविष्णु की आज्ञा से प्रेरित हुए ब्रह्मदेव के इस दूसरे परार्धा में विष्णुपद के श्रीश्वेत-वराह कल्प में वैवस्वत मन्वंतर के अठ्ठाइसवें युग के चतुर्युग के कलियुग के पहले चरण के आर्यावर्त देश के (जम्बुद्वीप पर भरतवर्ष में भरत खंड में दंडकारण्य देश में गोदावरी नदी के दक्षिण तट पर बौद्ध अवतार में रामक्षेत्र में) आजकल चल रहे शालिवाहन शक के व्यावहारिक शोभकृत् नामक संवत्सर की (वर्ष के) दक्षिणायन की शरद ऋतु के आश्विन महीनो की कृष्ण पक्ष में अमावास्या को (टिप्पणी २) आयुष्मान योग की शुभघडी पर, अर्थात उपरोक्त गुणविशेषों से युक्त शुभ एवं पुण्यकारक ऐसी तिथि को)

जिन्हें उपरोक्त देशकाल कहना कठिन हो रहा हो, वे आगे दिया गया श्लोक कहें और तदुपरांत संकल्प करें ।

तिथिर्विष्णुस्तथा वारं नक्षत्रं विष्णुरेव च ।
योगश्च करणं चैव सर्वं विष्णुमयं जगत् ।।

संकल्प

(दायें हाथ में अक्षत लेकर आगे दिया संकल्प बोलें ।)

मम आत्मनः परमेश्वर-आज्ञारूप-सकलशास्त्र-श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त-फलप्राप्तिद्वारा श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं श्रीमहालक्ष्मीप्रीतिद्वारा अलक्ष्मीपरिहारपूर्वकं विपुलश्रीप्राप्ति-सन्मंगल-महैश्वर्य-कुलाभ्युदय-सुखसमृद्ध्यादि-कल्पोक्त-फलसिद्ध्यर्थं लक्ष्मीपूजनं कुबेरपूजनं च करिष्ये । तत्रादौ निर्विघ्नतासिद्ध्यर्थं महागणपतिपूजनं करिष्ये । शरीरशुद्ध्यर्थं विष्णुस्मरणं करिष्ये । कलशशंखघंटादीपपूजनं करिष्ये ।

(श्री महालक्ष्मी की कृपा से मेरी / हमारी दरिद्रता का निवारण हो और विपुल लक्ष्मीप्राप्ति, मंगल ऐश्वर्य, कुल की अभिवृद्धि, सुख-समृद्धि आदि फलप्राप्ति हो; इसलिए लक्ष्मीपूजन और कुबेरपूजन करता हूं ।)

श्री गणपतिपूजन

(पूजा के ताम्रपात्र में चावल डालकर उस पर नारियल एवं पान रखें । नारियल रखते समय नारियल की शिखा पूजक की दिशा में रखें । पान रखते समय पान की डेठ भगवान की ओर हो और अग्रभाग पूजक की दिशा में रखें । आगे दिया गया मंत्र कहते हुए नारियल पर गणपति का आवाहन करें व पूजन करें ।)

वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ ।

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।।

(मुडी हुई सूंड, विशाल शरीर, कोटि सूर्याें के प्रकाशवाले हे (गणेश) भगवान, मेरे सभी काम सदैव विघ्नरहित करें ।)

ऋद्धिबुद्धिशक्तिसहितमहागणपतये नमो नमः ।

(ऋद्धि, बुद्धि और शक्ति सहित महागणपति को नमस्कार करता हूं ।)

महागणपतिं साङ्गं सपरिवारं सायुधं सशक्तिकम् आवाहयामि ।

(महागणपति को सर्वांग से अपने परिवार सहित अपने शस्त्रोंसहित और सर्वशक्तियों सहित आने का आवाहन करता हूं ।)

महागणपतये नमः । ध्यायामि ।

(महागणपति को नमस्कार कर ध्यान करता हूं ।)

महागणपतये नमः । आवाहयामि ।

(महागणपति को नमस्कार कर आवाहन करता हूं ।)
(नारियल पर अक्षत चढाएं ।)

महागणपतये नमः । आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि ।

(महागणपति को नमस्कार कर आसन के प्रति अक्षत अर्पण करता हूं ।)
(अक्षत चढाएं ।)

महागणपतये नमः । चन्दनं समर्पयामि ।

((महागणपति को नमस्कार कर चंदन अर्पण करता हूं ।)
(नारियल को चंदन लगाएं ।)

ऋद्धिसिद्धिभ्यां नमः । हरिद्राकुङ्कुमं समर्पयामि ।

(ऋद्धि और सिद्धि को नमस्कार कर हलदी-कुमकुम अर्पण करता हूं ।)
(हलदी और कुमकुम चढाएं ।)

महागणपतये नमः । पूजार्थे कालोद्भवपुष्पाणि समर्पयामि ।

(महागणपति को नमस्कार कर पूजा के लिए वर्तमान काल में खिलनेवाले फूल अर्पण करता हूं ।)
(फूल चढाएं ।)

महागणपतये नमः । दूर्वाङ्कुरान् समर्पयामि ।

(महागणपति को नमस्कार कर दूर्वा अर्पण करता हूं ।)
(दूर्वा चढाएं ।)

महागणपतये नमः । धूपम् समर्पयामि ।

(महागणपति को नमस्कार कर धूप अर्पण करता हूं ।)
(उदबत्ती से आरती करें ।)

महागणपतये नमः । दीपं समर्पयामि ।

(महागणपति को नमस्कार कर दीपक दिखाता हूं ।)
(निरांजन से आरती करें ।)

महागणपतये नमः । नैवेद्यार्थे पुरतस्थापित-मधुरनैवेद्यं निवेदयामि ।

(महागणपति को नमस्कार कर नैवेद्य के लिए मिष्ठान्न निवेदन करता हूं ।)
(मिष्ठान का नैवेद्य चढाएं ।)

(दाएं हाथ में कुछ दूर्वा लें । उस पर आचमनी से पानी डालें तथा वह पानी सामने रखे हुए नैवेद्य के आसपास परिक्रमा की दिशा में फेरकर उस पर एक बार प्रोक्षण करें ।

(अपना बांया हाथ अपनी छाती पर रखकर दाएं हाथ से नैवेद्य लेकर देवता तक ले जाएं, जैसे उन्हें निवाला खिला रहे हों । उस समय आगे दिए मंत्र बोलें ।)

प्राणाय नमः ।

(यह प्राणों के लिए अर्पण कर रहा हूं ।)

अपानाय नमः ।

(यह अपान के लिए अर्पण कर रहा हूं ।)

व्यानाय नमः ।

(यह व्यान के लिए अर्पण कर रहा हूं ।)

उदानाय नमः ।

(यह व्यान के लिए अर्पण कर रहा हूं ।)

समानाय स्वाहा ।

(यह समान के लिए अर्पण कर रहा हूं ।)

ब्रह्मणे स्वाहा ।

(यह ब्रह्म को अर्पण कर रहा हूं ।)

(वे फूल अथवा दूर्वा नारियल पर चढाएं ।)

टिप्पणी : ‘नमः’ के स्थान पर ‘स्वाहा’ भी कह सकते हैं ।

महागणपतये नमः । नैवेद्यं समर्पयामि ।

(महागणपति को नमस्कार कर नैवैद्य अर्पण करता हूं ।)

मध्ये पानीयं समर्पयामि ।

(बीच में पीने के लिए पानी अर्पण कर रहा हूं ।)

उत्तरापोशनं समर्पयामि ।

(आपोशन के लिए पानी अर्पण कर रहा हूं ।)

हस्तप्रक्षालनं समर्पयामि ।

(हाथ धोने के लिए पानी अर्पण कर रहा हूं ।)

मुखप्रक्षालनं समर्पयामि ।

(मुंह धोने के लिए पानी अर्पण कर रहा हूं ।)

करोद्वर्तनार्थे चन्दनं समर्पयामि ।

(हाथ पर लगाने के लिए चंदन अर्पण कर रहा हूं ।)

मुखवासार्थे पूगीफलताम्बूलं समर्पयामि ।

(मुखवास के लिए पान-सुपारी अर्पण कर रहा हूं ।

दक्षिणां समर्पयामि ।

(दक्षिणा अर्पण कर रहा हूं ।)

(‘समर्पयामि’ कहते समय आचमनी से दाएं हाथ पर पानी लेकर ताम्रपात्र में छोडें ।)

अचिन्त्याव्यक्तरूपाय निर्गुणाय गुणात्मने । समस्तजगदाधारमूर्तये ब्रह्मणे नमः ।।

(मन की आकलनशक्ति से परे, निराकार, निर्गुण, आत्मस्वरूपी, सर्व संसार के आधारभूत ब्रह्म को मैं नमस्कार करता हूं ।)

कार्यं मे सिद्धिमायातु प्रसन्ने त्वयि धातरि ।

विघ्नानि नाशमायान्तु सर्वाणि गणनायक ।।

(हे जगकर्ता ! हे देवों के नायक, आपकी कृपा से मेरे कार्य में सफलता मिले और मेरे सभी विघ्नों का नाश हो ! )

अनया पूजया सकलविघ्नेश्वरविघ्नहर्तामहागणपतिः प्रीयताम् ।

(इस पूजा से सर्व संकटों का नाश करनेवाले महागणपति प्रसन्न हों ।)
(दाएं हाथ पर पानी लेकर ताम्रपात्र में छोडें ।)

श्रीविष्णुस्मरण

हाथ जोडें और ‘विष्णवे नमो’ ९ बार बोलें और अंत में ‘विष्णवे नमः’ बोलें ।

कलशपूजन

कलशदेवताभ्यो नमः सर्वोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पं समर्पयामि ।

(कलश पर चंदन, फूल और अक्षत चढाएं ।)

घंटीपूजन

घंटायै नमः सर्वोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पं समर्पयामि ।

(घंटी को चंदन, फूल और अक्षत चढाएं ।)

दीपपूजन

दीपदेवताभ्यो नमः सर्वोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पं समर्पयामि ।

(समई को चंदन, फूल और अक्षत चढाएं ।)

अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थाङ्गतोऽपि वा ।

यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।

((अंर्त-बाह्य) स्वच्छ हो अथवा अस्वच्छ हो, किसी भी अवस्था में हो । जो (मनुष्य) कमलनयन (श्रीविष्णु का) स्मरण करता है, वह भीतर तथा बाहर से शुद्ध होता है ।)
(इस मंत्र से तुलसीपत्र जल में भिगोकर पूजासामग्री तथा अपनी देह पर जल प्रोक्षण करें ।)

श्री लक्ष्मीकुबेर पूजन

श्री लक्ष्मीकुबेर का ध्यान करें !

ध्यायामि तां महालक्ष्मीं कर्पूरक्षोदपाण्डुराम् ।

शुभ्रवस्त्रपरीधानां मुक्ताभरणभूषिताम् ।।

पङ्कजासनसंस्थानां स्मेराननसरोरुहाम् ।

शारदेन्दुकलाकान्तिं स्निग्धनेत्रां चतुर्भुजाम् ।।

पद्मयुग्माभयवरव्यग्रचारुकराम्बुजाम् ।

अभितो गजयुग्मेन सिच्यमानां कराम्बुना ।।

अर्थ : जिसकी कांति कपूर के समान शुभ्र है, जो शुभ्र वस्त्र परिधान की हुई हैं; विविध आभूषणों से विभूषित जो कमल में निवास करती हैं, जिनके मुख पर स्मित है, जिनका सौंदर्य शरद ऋतु की चंद्रकलासमान है, जिनके नेत्र तेजस्वी हैं और चार भुजाएं हैं, जिनके दो करों में कमल हैं और जो दो हाथों से अभय एवं वरदान दे रही हैं, साथ ही दो हाथी अपने सूंड से जल छोडकर जिन्हें अभिषिंचित कर रहे हैं, ऐसी महालक्ष्मी का मैं ध्यान करता हूं ।

टिप्पणी : १. शास्त्रोक्त मंत्रपठन करना प्रत्येक के लिए संभव नहीं होता । इसलिए कोई भी पूजक सहज पठन कर सके, ऐसी ‘नाममंत्रयुक्त पूजा’ आगे दे रहे हैं । पूजक को (पूजा करनेवाले व्यक्ति को) प्रत्येक नाममंत्र को नीचे मूल शास्त्रोक्त मंत्र न देते हुए केवल उनका अर्थ दिया है । अर्थ समझने से पूजक के लिए भावपूर्ण पूजन करना सुलभ होगा

२. ‘आवाहयामि’ एवं ‘समर्पयामि’ इन शब्दों का उच्चारण करने के साथ ही उपचार समर्पित करें ।

आवाहन

महालक्ष्मि समागच्छ पद्मनाभपदादिह ।

पूजामिमां गृहाण त्वं त्वदर्थं देवि संभृताम् ।।

(हे महालक्ष्मी, श्रीविष्णु के चरणकमलों से आप हमारे यहां पधारिए और अपनी इस पूजा को स्वीकार कीजिए ।’ )

दाएं हाथ में अक्षता लें ।

(प्रत्येक बार अक्षता चढाते समय मध्यमा, अनामिका एवं अंगूठा को एकत्र कर ही चढाएं ।)

श्री लक्ष्मीकुबेराभ्यां नमः । आवाहयामि ।।

(हाथ जोडें ।)

आसन

श्री लक्ष्मीकुबेराभ्यां नमः आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि ।।

(श्री लक्ष्मीकुबेर के चरणों में अक्षता चढाएं ।)

(हे लक्ष्मी, आप कमल में निवास करती हैं । अतः, मुझ पर कृपा करने हेतु आप इस कमल में निवास कीजिए ।)

(पूजा के लिए छायाचित्र हो तो फूलों से अथवा तुलसीपत्र से पानी प्रोक्षण करें । मूर्ति अथवा प्रतिमा हो, तो उसे अपने सामने ताम्रपात्र में रखकर आगे दिए उपचार समर्पित करें ।)

पाद्य

श्री लक्ष्मीकुबेराभ्यां नमः । पाद्यं समर्पयामि ।।

(दाएं हाथ से आचमनी में पानी लेकर श्री लक्ष्मी के चरणों में डालें ।)

अर्थ : आपकी यात्रा के सर्व कष्ट दूर हों; इसलिए गंगोदक से युक्त नाना मंत्रों से अभिमंत्रित जल से आपके चरण पखारता हूं ।

अर्घ्य

श्री लक्ष्मीकुबेराभ्यां नमः । अर्घ्यं समर्पयामि ।।

(बाएं हाथ से आचमनी भर पानी लेें । उस पानी में गंध-फूल अक्षता डालें । दाएं हाथ से आचमनी का पानी श्री लक्ष्मी के चरणों में चढाएं ।)

अर्थ : भक्त को उपकृत करनेवाली हे महालक्ष्मी, पापहारिणी और पुण्यप्रदायिनी, इस अर्घ्य को स्वीकार कीजिए ।

आचमन

श्री लक्ष्मीकुबेराभ्यां नमः । आचमनीयं समर्पयामि ।।

(दाएं हाथ से आचमनी भर पानी श्री लक्ष्मीमाता के चरणों में समर्पित करें ।)

अर्थ : हे जगदंबिके, आपको कपूर, अगर (सुगंधित वृक्ष की लकडी जिसका उपयोग इत्र आदि में उपयोग होता है) आदि से मिश्रित ठंडा और उत्तम जल आचमन के लिए अर्पित करता हूं, इसे स्वीकार कीजिए ।

स्नान

श्री लक्ष्मीकुबेराभ्यां नमः । स्नानं समर्पयामि ।।

(दाएं हाथ से आचमनीभर पानी श्री लक्ष्मी के चरणों में चढाएं ।)

अर्थ : हे महालक्ष्मी, आपको कपूर, अगर आदि से सुगंधित तथा सर्व तीर्थों से लाया हुआ जल स्नान के लिए अर्पित करता हूं, इसे स्वीकार कीजिए ।

पंचामृत

श्री लक्ष्मीकुबेराभ्यां नमः । पंचामृतस्नानं समर्पयामि। तदन्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।।

(दूध, दही, देसी घी, मधु (शहद) एवं शक्कर, एकत्र कर देवी के चरणों में चढाएं । तदुपरांत आचमनीभर शुद्ध पानी डालें ।)

अर्थ : हे देवी ! हमने दूध, दही, घी, मधु और शर्करायुक्त पंचामृत अर्पित किया है, उसे स्वीकार कीजिए ।

गंध स्नान

श्री लक्ष्मीकुबेराभ्यां नमः । गंधोदकस्नानं समर्पयामि ।।

(आचमनीभर पानी ग्रहण करें । उसमें चंदन डालकर वह पानी देवी के चरणों में चढाएं ।)

अर्थ : हे देवी, हमने आपके स्नान के लिए कपूर, इलायची और अन्य सुगंधित द्रव्यों से युक्त जल भी स्नान के लिए रखा है, कृपया स्वीकार कीजिए ।

महाभिषेक

(अपने अधिकार के / अपनी परंपरा के अनुसार श्रीसूक्त / पुराणोक्त देवी सूक्त का पठन कर अभिषेक करें ।)

तदुपरांत मूर्ति अथवा प्रतिमा सामने ताम्रपात्र में ली हो, तो उसे स्वच्छ धोकर और पोंछकर, पुन: उसके मूल स्थान पर रखें और अगली पूजा करें ।

वस्त्र

श्री लक्ष्मीकुबेराभ्यां नमः । वस्त्रोपवस्त्रार्थे कार्पासनिर्मिते वस्त्रे समर्पयामि ।।

(देवी को कपास के वस्त्र एवं उपवस्त्र चढाएं ।)

अर्थ : हे देवी, आपको ये उत्तम वस्त्र अर्पित है, इसे परिधान कीजिए ।

कंचुकीवस्त्र

श्री लक्ष्म्यै नमः । कंचुकीवस्त्रं समर्पयामि ।।

(उपलब्धतानुसार साडी, चोली अर्पण करें ।)

अर्थ : हे विष्णुप्रिया, मोतियों से युक्त सुखद और मूल्यवान चोली आपको अर्पित है, स्वीकार कीजिए ।

गंध

श्री लक्ष्मीकुबेराभ्यां नमः । विलेपनार्थे चंदनं समर्पयामि ।।

(चंदन लगाएं ।)

अर्थ : यह अत्यंत शीतल और सुगंधित चंदन स्वीकार कीजिए ।

हलदी-कुमकुम

श्री लक्ष्मीकुबेराभ्यां नमः । हरिद्रां कुंकुमं समर्पयामि ।।

(हलदी-कुमकुम चढाएं ।)

अर्थ : हे देवी ! हम आपको हलदी-कुमकुम, अंजन, सिंदूर, अलता (पैरों में लगानेवाला महावर) आदि सौभाग्यसूचक वस्तुएं अर्पित करते हैं, इसे स्वीकार कीजिए ।

अलंकार

श्री लक्ष्मीकुबेराभ्यां नमः । अंलकारार्थे नानाभरणभूषणानि समर्पयामि ।।

(उपलब्धता अनुसार सौभाग्यालंकार अर्पण करें ।)

अर्थ : हे देवी ! हम आपको रत्नजडित कंगन, बाजूबंद, मेखला (कर्धनी), कर्णभूषण, पायल, मोतियों की माला, मुकुट आदि अलंकार अर्पित करते हैं, आप इन्हें धारण कीजिए ।

पुष्प

श्री लक्ष्मीकुबेराभ्यां नमः । पूजार्थे ऋतुकालोद्भवपुष्पाणि तुलसीपत्राणि दुर्वांकुरांश्च समर्पयामि ।।

(फुल, तुलसी, बेल, दूर्वा इत्यादि उपलब्धता अनुसार अर्पण करें ।)

अर्थ : हे लक्ष्मीदेवी ! जिस नंदनवन में भौंरों के समूह, वहां के फूलों की उत्तम सुगंध से मदमस्त होकर मंडराते रहते हैं, उस नंदनवन से ये फूल लाया हूं, इन्हें स्वीकार कीजिए ।

अथांगपूजा (नख-शिख पूजा)

(देवी के चरणों से मस्तक तक के अवयवों की पूजा करना । (‘पूजयामि’ कहने पर अक्षत अर्पित करना (चढाना) ।))

१. श्रियै नमः पादौ पूजयामि ।

२. लक्ष्म्यै नमः जानुनी पूजयामि ।

३. पद्मायै नमः ऊरू पूजयामि ।

४. धात्र्यै नमः कटिं पूजयामि ।

५. रमायै नमः उदरं पूजयामि ।

६. वरदायै नमः स्तनौ पूजयामि ।

७. लोकमात्रे नमः कंठं पूजयामि ।

८. चतुर्भुजायै नमः बाहु पूजयामि ।

९. ऋद्धयै नमः मुखं पूजयामि ।

१०. सिद्द्यै नमः नासिकां पूजयामि ।

११. पुष्ट्यै नमः नेत्रे पूजयामि ।

१२. तुष्टै नमः ललाटं पूजयामि ।

१३.  इंदिरायै नमः शिरः पूजयामि ।

१४. सर्वेश्‍वर्यै नमः सर्वांगं पूजयामि ॥

पत्रपूजा : अथ पत्रपूजा

(देवी को निम्नांकित वृक्षों के पत्ते अर्पित करें (चढाएं))

१. श्रियै नमः । पद्मपत्रं समर्पयामि ।

२. लक्ष्मै नमः । दूर्वापत्रं समर्पयामि ।

३. पद्मायै नमः । तुलसीपत्रं समर्पयामि ।

४. धात्र्यै नमः । बिल्वपत्रं समर्पयामि ।

५. रमायै नमः । चंपकपत्रं समर्पयामि ।

६. वरदायै नमः । बकुलपत्रं समर्पयामि ।

७. लोकमात्रे नम: । मालतीपत्रं समर्पयामि ।

८. चतुर्भुजायै नमः । जातीपत्रं समर्पयामि ।

९. ऋद्ध्यै नमः । आम्रपत्रं समर्पयामि ।

१०. सिद्ध्यै नमः । मल्लिकापत्रं समर्पयामि ।

११. पुष्ट्यै नमः । अपामार्गपत्रं समर्पयामि ।

१२. तुष्ट्यै नमः । अशोकपत्रं समर्पयामि ।

१३. इंदिरायै नमः । करवीरपत्रं समर्पयामि ।

१४. हरिप्रियायै नमः । बदरीपत्रं समर्पयामि ।

१५. भूत्यै नमः । दाडिमीपत्रं समर्पयामि ।

१६. ईश्‍वर्यै नमः । अगस्तिपत्रं समर्पयामि ।

धूप

श्री लक्ष्मीकुबेराभ्यां नमः । धूपं समर्पयामि ।।

(उदबत्ती दिखाएं ।)

अर्थ : हे देवी ! अनेक वृक्षों के रस से उत्पन्न सुगंधित धूप, जो देवता, दैत्य और मानव को भी प्रिय है, आपको समर्पित करते हैं । इसे ग्रहण कीजिए ।

दीप

श्री लक्ष्मीकुबेराभ्यां नमः । दीपं समर्पयामि ।।

(आरती दिखाएं ।)

अर्थ : हे देवी, सूर्यमंडल, अखंड चंद्रबिंब और अग्नि के तेज का कारण यह दीप, आपको भक्तिभाव से अर्पित करता हूं, इसे ग्रहण कीजिए ।

(दाएं हाथ में तुलसीपत्र / बेल के पत्ते / दूर्वा लेकर उस पर पानी डालें । वह पानी नैवेद्य पर छिडककर तुलसी के पत्ते हाथ में ही पकडे रहें और अपने दोनों आंखों पर बायां हाथ रखकर नैवेद्य दिखाते हुए आगे दिया मंत्र कहते हुए नैवैद्य समर्पित करें ।)

लौंग-इलायची-शर्करायुक्त दूध तथा लड्डुओं का नैवेद्य दिखाएं (भोग लगाएं) ।

नैवेद्य

श्री लक्ष्मीकुबेराभ्यां नमः । नैवेद्यार्थे एला-लवंग-शर्करादि-मिश्रगोक्षीरलड्डुकादि-नैवेद्यं निवेदयामि ।।

(लौंग-इलायची-शर्करायुक्त दूध तथा लड्डुओं का नैवेद्य दिखाएं (भोग लगाएं) ।)

प्राणाय नमः । अपानाय नमः । व्यानाय नमः ।

उदानाय नमः । समानाय नमः । ब्रह्मणे नमः ।।

(हाथ में ली तुलसी को देवी के चरणों में चढाएं । तदुपरांत दाएं हाथ पर पानी लेकर आगे दिए प्रत्येक मंत्र कहते हुए वह पानी ताम्रपात्र में छोडें ।)

श्री लक्ष्मीकुबेराभ्यां नमः । नैवेद्यं समर्पयामि ।।

मध्ये पानीयं समर्पयामि । उत्तरापोशनं समर्पयामि ।

हस्तप्रक्षालनं समर्पयामि । मुखप्रक्षालनं समर्पयामि ।

करोद्वर्तनार्थे चंदनं समर्पयामि ।।

(देवी को चंदन-पुष्प चढाएं ।)

अर्थ : हे देवी, स्वर्ग, पाताल और मृत्यु लोकों के आधार अन्न और उससे बने सोलह प्रकार के नैवेद्य अर्पित हैं, स्वीकार कीजिए ।

फल एवं तांबूल  (पान-सुपारी)

श्री लक्ष्मीकुबेराभ्यां नमः । मुखवासार्थे पूगीफलतांबूलं समर्पयामि ।।

(आचमनी से दाईं हथेली पर पानी लेकर उसे पान और सुपारी पर छोडेें ।)

अर्थ : हे देवी, यह फल हम आपको अर्पित करते हैं । इससे हमें प्रत्येक जन्म में अच्छे फल मिलें तथा हमारी मनोकामनाएं पूर्ण हों ।

पान का बीडा आपको अर्पित है, ग्रहण कीजिए ।

अर्थ : हे देवी, मुख का भूषण, अनेक गुणों से युक्त, जिसकी उत्पत्ति पाताल में हुई है, ऐसे पान का बीडा आपको अर्पित है, ग्रहण कीजिए ।

 

आरती

श्री लक्ष्मीकुबेराभ्यां नमः । महानीरांजनदीपं समर्पयामि ।।

(देवी की आरती गाएं ।)

अर्थ : हे देवी, चंद्र, सूर्य, पृथ्वी, बिजली और अग्नि में विद्यमान तेज आप ही का है । (देवी की घी के दीप से आरती करें, पश्‍चात कर्पूर-आरती करें । आरती करते समय आरती गाएं ।)

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि ।।

(कपूर (कर्पूर) आरती दिखाएं ।)

अर्थ : जो कर्पूरसमान गौरकांति से युक्त हैं, करुणा के अवतार हैं, त्रैलोक्य के सार हैं, जिनके गले में नागराज की माला है, जो सदैव (हमारे) हृदयकमल में वास करते हैं, ऐसे पार्वतीसहित भगवान शंकर को मैं नमस्कार करता हूं ।

नमस्कार

श्री लक्ष्मीकुबेराभ्यां नमः । नमस्कारान् समर्पयामि ।।

(देवी को नमस्कार करें ।)

अर्थ : हे देवी, आप इन्द्रादि देवतागणों की; महादेव, महाविष्णु और ब्रह्मदेव की शक्ति हैं । आप का स्वभाव मंगलकारी और सुखकारी है । आपको हम सब अत्यंत विनम्रता से निरंतर नमस्कार करते हैं ।

प्रदक्षिणा

श्री लक्ष्मीकुबेराभ्यां नमः । प्रदक्षिणान् समर्पयामि ।।

(स्वतःभोवती तीन प्रदक्षिणा घालाव्यात.)

अर्थ : इस प्रदक्षिणा के प्रत्येक पग पर, इस जन्म में तथा पिछले सभी जन्मों में हुए पाप आपकी कृपा से नष्ट हों । आप ही हमारा आश्रय और रक्षक हैं, अन्य नहीं । इसलिए हे मां, करुणभाव से आप हमारी रक्षा कीजिए ।

मंत्रपुष्पाजंलि

श्री लक्ष्मीकुबेराभ्यां नमः । मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयामि ।।

(चंदन, फूल एवं अक्षता लेकर ‘समर्पयामि’ कहते हुए दोनों हाथों की ओंजली से देवी के चरणों में चढाएं ।)

अर्थ : हे लक्ष्मी, विष्णु की धर्मपत्नी, हे लक्ष्मी, यह पुष्पांजलि स्वीकार कीजिए और हमें इस पूजा का अभीष्ट फल प्रदान कीजिए ।

प्रार्थना

या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।

(हाथ जोडकर देवी और कुबेर से प्रार्थना करें ।)

अर्थ : हे विष्णुप्रिया, आप वर देनेवाली हैं; आपको नमस्कार करता हूं । आपकी शरण में आए जीवों को जो गति प्राप्त होती है, वहीं गति मुझे आपकी पूजा से प्राप्त हो । जो देवी लक्ष्मी (सौंदर्य) रूपसे सर्व जीवों में निवास करती हैं, उन्हें मैं तीन बार नमस्कार करता हूं । संपत्ति के अधिपति हे कुबेर, आपको भी मैं नमस्कार करता हूं । आपकी कृपा से मुझे धनधान्य और संपत्ति प्राप्त हो ।

अनेन कृतपूजनेन श्री लक्ष्मीकुबेरौ प्रीयेताम् ।

(अर्थात, इस पूजा से श्री लक्ष्मी देवी प्रसन्न हों)। (हथेली पर अक्षत लेकर उस पर जल छोडें और उपर्युक्त संस्कृत वाक्य बोलें; पश्‍चात उसे नीचे रखे पात्र में छोड दें । अब दो बार आचमन करें ।)

टिप्पणी : दुकान में लक्ष्मीपूजन करते समय तिजोरी पर, तुला पर, हिसाब के खातों पर (बहियों पर) और अन्य कुछ उपकरणों पर चंदन-पुष्प, हलदी-कुमकुम चढाते हैं । उस प्रथा अनुरूप करें । पूजा करतेे समय धोती-उपरण (कंधे पर लिया जानेवाला वस्त्र) अथवा धोती-कुर्ता पहनें । पैंट-शर्ट में पूजा न करें ।

टिप्पणी १ – यहां देशकाल लिखते समय संपूर्ण भारत देश के अनुरूप ‘आर्यावर्तदेशे’, इसप्रकार उल्लेख किया है । जिन्हें ‘जम्बुद्वीप भरतवर्षे भरतखण्डे दण्डकारण्ये देशे गोदावर्याः …’ इस प्रकार स्थानानुसार अचूक देशकाल ज्ञात हो, वे उस अनुसार योग्य वह देशकाल बोलें ।

टिप्पणी २ – उपरोक्त देशकाल २०२२ के अनुरूप यहां दिया है ।

सूक्ष्म-चित्र : दीपावली को लक्ष्मीपूजन करना

अ. भक्तिभाव बढना

श्री लक्ष्मीपूजन के दिन ब्रह्मांड में श्री लक्ष्मी देवी एवं कुबेर इन देवताओंका तत्त्व अन्य दिनोंकी तुलना में ३० प्रतिशत अधिक मात्रा में प्रक्षेपित होता है । इस दिन इन देवताओंका पूजन करने से व्यक्ति का भक्तिभाव बढता है और ३ घंटोंतक बना रहता है ।

आ. सुरक्षा-कवच निर्माण होना

श्री लक्ष्मी तत्त्व की मारक तरंगोंके स्पर्श से व्यक्ति के देह के भीतर और उसके चारों ओर विद्यमान रज-तम कणोंका नाश होता है । व्यक्ति के देह के चारों ओर सुरक्षा-कवच निर्माण होता है ।

  इ. अनिष्ट शक्तियोंका नाश होना

श्री लक्ष्मीपूजन के दिन अमावस्या का काल होने से श्री लक्ष्मी का मारक तत्त्व कार्यरत रहता है । पूजक के भाव के कारण पूजन करते समय श्री लक्ष्मी की मारक तत्त्व तरंगे कार्यरत होती हैं । इन तरंगोंके कारण वायुमंडल में विद्यमान अनिष्ट शक्तियोंका नाश होता है । इसके अतिरिक्त दीपावली के दिन श्री लक्ष्मीपूजन करने से पूजक को, शक्ति का २ प्रतिशत, चैतन्य का २ प्रतिशत, आनंद का एक दशमलव पच्चीस प्रतिशत एवं ईश्वरीय तत्त्व का १ प्रतिशत मात्रा में लाभ मिलता है । इन लाभोंसे श्री लक्ष्मीपूजन करने का महत्त्व समझ में आता है ।

लक्ष्मी पंचायतन में समाविष्ट देवताओंका कार्य

१. कुबेर संपत्ति अर्थात प्रत्यक्ष धन देते हैं, तथा उसका संग्रह भी करते हैं ।
२. गजेंद्र संपत्ति का वहन करता है ।
३. इंद्र ऐश्वर्य अर्थात संपत्ति द्वारा प्राप्त समाधान देते हैं ।
४. श्रीविष्णु सुख अर्थात समाधान में समाहित आनंद प्रदान करते हैं ।
५. श्री लक्ष्मी ऊपर्निर्दिष्ट घटकोंको प्रत्यक्ष बल प्रदान करनेवाली शक्ति है ।

दीपावली के दिन पूजक के साथ ही वहां उपस्थित अन्य व्यक्तियोंको भी इन पांचों तत्त्वोंका लाभ प्राप्त होता है । जिससे वास्तु में सुख, ऐश्वर्य, समाधान एवं संपत्ति वास करती है । इनके साथही श्री लक्ष्मीपूजन के कुछ अन्य लाभ भी हैं ।

अलक्ष्मी नि:सारण

अलक्ष्मी अर्थात दरिद्रता, दैन्य और आपदा । नि:सारण करने का अर्थ है बाहर निकालना । अलक्ष्मी नि:स्सारण हेतु दीपावली काल में लक्ष्मीपूजन के दिन नई बुहारी अर्थात झाडू घर में लाते हैं । इस झाडू से मध्यरात्रि के समय घर का कुडा निकालकर बाहर फेंका जाता है । मध्यान्ह रात को `लक्ष्मी’ मानकर उसका पूजन करते हैं । उसकी सहायता से घर का कूडा निकालते हैं । कूडा अलक्ष्मी का प्रतीक है । कूडा निकालकर घर के पीछे के द्वार से उसे बाहर निकालकर दूर फेंकते हैं । कूडा बाहर फेंकनें के उपरांत घर के कोने-कोने में जाकर सूप अर्थात छाज बजाते हैं । अन्य किसी भी दिन मध्यरात्रि के समय कुडा निकाला नहीं जाता ।

कूडा बाहर फेंकने की सूक्ष्म-स्तरीय प्रक्रिया

मध्यरात्रि में रज-तमात्मक तरंगोंकी सर्वाधिक निर्मिति होती है । ये तरंगें घर में विद्यमान रज-तमात्मक कूडे की ओर आकृष्ट होती हैं । इस रज-तमात्मक तरंगोंसे भरपूर कूडे को सूपमें (छाज) भरकर वास्तु से बाहर फेंकने से वास्तुकी रज-तमात्मक तरंगें नष्ट होती हैं और वास्तु शुद्ध होती है । इससे सात्त्विक तरंगें वास्तु में सरलता से प्रवेश कर पाती हैं । वास्तु में श्री लक्ष्मीपूजन द्वारा आकृष्ट चैतन्य का लाभ बढता है ।

 

दीपावली-संबंधी लघुचलचित्र देखें !

‘दीपावली’ त्योहार की जानकारी करानेवाले विविध लघुचलचित्र देखने के लिए, ‘दीपावली’ लिंक पर क्लिक करें !

 

4 thoughts on “श्री लक्ष्मीकुबेर पूजाविधि”

  1. ,आप का बहुत बहुत धन्यवाद जो आप इतने अच्छे से समझाया सादर नमन

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  2. You people are doing tremendous job . The proper way of Pooja required by all the people but they don’t know where to get . I really appreciate your hard work and thankful for your commendable contribution to our society. God give you strength for better reach and future .
    I feedback – please market more our work somehow it’s not reaching to the mass despite having fantastic content and good intentions.

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  3. बहुत अच्छा ज्ञान प्राप्त हुआ। धन्यवाद।

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