दत्तात्रेय के नामजपद्वारा पूर्वजों के कष्टोंसे रक्षण कैसे होता है ?

अनुक्रमणिका

वर्तमान काल में पूर्व की भांति कोई श्राद्ध-पक्ष इत्यादि नहीं करता और न ही साधना करता है । इसलिए अधिकतर सभी को पितृदोष (पूर्वजों की अतृप्ति के कारण कष्ट) होता है । आगे पितृदोष की संभावना है या वर्तमान में हो रहा कष्ट पितृदोष के कारण है, यह केवल उन्नत पुरुष ही बता सकते हैं । किसी उन्नत पुरुष से भेंट संभव न हो, तो यहां पितृदोष के कुछ लक्षण दिए हैं – विवाह न होना, पति-पत्नी में अनबन, गर्भधारण न होना, गर्भधारण होने पर गर्भपात हो जाना, संतान का समय से पूर्व जन्म होना, मंदबुद्धि अथवा विकलांग संतान होना, संतान की बचपन में ही मृत्यु हो जाना आदि । व्यसन, दरिद्रता, शारीरिक रोग, ऐसे लक्षण भी हो सकते हैं ।

Shri Datta

 

१. अतृप्त पूर्वजोंद्वारा होनेवाले कष्टों के कारण तथा उसपर उपाय

कलियुग में अधिकांश लोग साधना नहीं करते, अत: वे माया में फंसे रहते हैं । इसलिए मृत्यु के उपरांत ऐसे लोगों की लिंगदेह अतृप्त रहती है । ऐसी अतृप्त लिंगदेह मर्त्यलोक (मृत्युलोक) में फंस जाती है ।

अ. अतृप्त पूर्वजों से अपने रक्षणके लिए गुरुकृपा और कठोर साधना के अतिरिक्त अन्य पर्याय न होना |

‘कुछ मृत व्यक्तियों का अपने घरके सदस्यों – पत्नी, बच्चे तथा अन्यपर इतना प्रेम होता है कि उन्हें छोडकर मृत्यु के पश्चात आगेका प्रवास करना उन्हें कठिन लगता है । इस कारण जिस व्यक्तिमें लिंगदेह अटकी हुई है वह भी उसके साथ जाए, ऐसी उस लिंगदेहकी इच्छा होती है । जिस व्यक्तिमें यह लिंगदेह अटकी होती है, उस व्यक्तिके मनमें यह लिंगदेह आत्महत्या का विचार डालकर आत्महत्या करने को बाध्य करती है अथवा अपघात करवाना, रोग उत्पन्न करना, ऐसा कर उस व्यक्ति को मारकर अपने साथ ले जाती है । ऐसे हठी अतृप्त पूर्वजों से रक्षणके लिए गुरुकृपा और कठोर साधना के अतिरिक्त अन्य पर्याय नहीं ।

आ. अतृप्त पूर्वज घर के सदस्यों को कष्ट क्यों देते हैं ?

पूर्वज स्वयं अत्यंत कष्ट कर भूमि, घर, संपत्ति आदि अर्जित करते हैं । उनकी मृत्युके पश्चात उनकी वह संपत्ति उनके परिजनोंको मिलती है । परिजन यदि उस संपत्ति का विनियोग उचित ढंगसे न कर, अपव्यय करते हों, तो पूर्वजों को क्रोध आता है । परिणामस्वरूप वे अपने परिजनों को कष्ट देते हैं । कालांतरमें उनकी विपुल आर्थिक हानि होती है ।

उपाय : घरके सदस्यों को पूर्वजों द्वारा उपार्जित संपत्ति मिली हो, तो उसका सुयोग्य उपयोग करना चाहिए । उस संपत्ति का २० प्रतिशत भाग धर्मकार्य के लिए व्यय करना अथवा संतोंको दान करना चाहिए । इस दानसे पूर्वज और परिजनों को साधना का फल प्राप्त होकर पूर्वजों को सद्गति मिलती है तथा परिजनों का कष्ट दूर होता है ।

इ. पूर्वजों की आसक्ति भूमि तथा घरमें होना |

कुछ पूर्वजों की आसक्ति उनकी भूमि तथा घर इत्यादिमें इतनी तीव्र होती है कि वे आगे के लोकमें जानेके स्थानपर भुवलोकमें ही अटककर अपनी भूमि तथा घरमें रहते हैं । कुछ पूर्वजों की आसक्ति इतनी तीव्र होती है कि उनके परिजन यदि उस घरकी रचनामें कुछ परिवर्तन करें अथवा वह बेचें अथवा वहांपर नया घर बनाने के लिए उसे तोडें, तो वे क्रुद्ध होकर कष्ट देते हैं ।

उपाय : वास्तुशुद्धि और नामजप करने तथा घर के सर्व सदस्यों के साधना करनेपर उनकी और वास्तु की सात्त्विकता बढनेसे पूर्वज घरमें प्रवेश नहीं कर पाते और उनकेद्वारा होनेवाले कष्ट से घरके सदस्यों का रक्षण होता है । इस विषय में नामजप काैनसा करना चाहिए यह आगे दिया है ।

ई. अपने सभी पितरों को मोक्ष कैसे प्राप्त करवाएं, इसके लिए कोई पूजा होती है क्या?

आज के युग में हम अपने पूर्वजों की ३ पीढियों तक के पितरों की मुक्ति के लिए प्रयास कर सकते हैं । इस कारण हमारे यहां त्रिपिंडी श्राद्ध कहा गया है । माता के वंश की 3 (माता, मातामह, प्रमातामह) तथा पिता के वंश की 3 पीढियों (पिता, पितामह, प्रपितामह) को इससे मुक्ति मिलती है । हम यदि ३ पीढियों के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध करें, तो अन्य पितरों को भी उसका लाभ होता है । पूर्वजों की मुक्ति के लिए प्रयास करते समय यदि हम अपनी साधना कर जीवन्मुक्त होते हैं, तो पितृऋण से हम मुक्त हो जाते है और हमारी अगली पीढी का भी कल्याण होगा ।

२. अतृप्त पूर्वजों से होनेवाले कष्ट पर उपाय

१. किसी भी प्रकार का कष्ट न हो रहा हो, तो भी आगे चलकर कष्ट न हो इसलिए, साथ ही यदि थोडा सा भी कष्ट हो तो ‘श्री गुरुदेव दत्त ।’ नामजप १ से २ घंटे करें । शेष समय प्रारब्ध के कारण कष्ट न हो इस हेतु एवं आध्यात्मिक उन्नति हो इसलिए सामान्य मनुष्य अथवा प्राथमिक अवस्था का साधक कुलदेवता का अधिकाधिक नामजप करे ।

२. मध्यम कष्ट हो तो कुलदेवता के नामजप के साथ ‘श्री गुरुदेव दत्त ।’ नामजप प्रतिदिन २ से ४ घंटे करें । गुरुवार को दत्तमंदिर जाकर सात परिक्रमाएं करें एवं बैठकर एक-दो माला जप वर्षभर करें । तत्पश्चात तीन माला नामजप जारी रखें ।

३. तीव्र कष्ट हो तो कुलदेवता के नामजप के साथ ही ‘श्री गुरुदेव दत्त ।’ नामजप प्रतिदिन ४ से ६ घंटे करें । किसी ज्योतिर्लिंग में जाकर नारायणबलि, नागबलि, त्रिपिंडी श्राद्ध, कालसर्पशांति आदि विधियां करें । साथ ही किसी दत्तक्षेत्र में रहकर साधना करें अथवा संतसेवा कर उनके आशीर्वाद प्राप्त करें ।

३. दत्तात्रेय के नामजपद्वारा पूर्वजों के कष्टों से रक्षण कैसे होता है ?

अ. पूर्वजों को गति मिलना

ऊपरोल्लेखित शास्त्रानुसार कलियुग में अधिकांश लोग साधना नहीं करते । अतएव वे माया में अत्यधिक लिप्त होते हैं । इसलिए मृत्यु के उपरांत ऐसे व्यक्तियों की लिंगदेह अतृप्त रहती है । ऐसे अतृप्त लिंगदेह मृत्युलोक में अटक जाते हैं । (मृत्युलोक भूलोक एवं भुवर्लोक के मध्य है ।) दत्त के नामजप के कारण मृत्युलोक में अटके पूर्वजों को गति मिलती है और वे अपने कर्म के अनुसार आगे के लोक में जाते हैं । इससे स्वाभाविक रूप से उनसे व्यक्ति को होनेवाले कष्ट की तीव्रता घट जाती है ।

आ. संरक्षक-कवच निर्मित होना

दत्तात्रेय के नामजप से निर्मित शक्तिद्वारा नामजप करनेवाले के आसपास संरक्षक-कवच निर्माण होता है ।

इ. दत्तात्रेय देवता का अनिष्ट शक्तियां बने पूर्वजों का नाश करना

मनुष्यको कष्ट देनेवाले पूर्वज अर्थात पूर्वज- अनिष्ट शक्तियोंके पापका घडा भर जानेपर दत्तात्रेय देवता उन्हें दंड देते हैं । पूर्वजदोष के (पितृदोष के) कष्टोंकी तीव्रताके अनुसार दत्तात्रेय देवता का नामजप करना वर्तमान काल में लगभग सभी को पूर्वजदोष का कष्ट है, इसलिए ‘श्री गुरुदेव दत्त ।’ नामजप प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन २ घंटे, मध्यम स्वरूप के कष्ट के लिए ४ घंटे और यदि तीव्र स्वरूप का कष्ट हो, तो ६ घंटे करें ।

ई. हिन्दू धर्म में ३३ करोड देवी-देवता हैं । फिर भगवान दत्तात्रेय का ही जाप क्यों करना चाहिए ?

प्रत्येक देवता का कार्य निश्‍चित है । माता लक्ष्मीजी का धन, मां सरस्वतीजी का विद्या, भगवान गणेशजी का बुद्धि से संबंधित प्रधान कार्य है । इसीप्रकार भगवान दत्तात्रेय का कार्य पितरों को मुक्ति देने से संबंधित है । भगवान दत्त का नामजप विशिष्ट रूप से पितरों के आध्यात्मिक कष्टों से संबंधित अर्थात पितृदोष निवारण का उपाय है ।

किसी को यदि सर्दी हुई हो, तो उसे विटामिन सी की अतिरिक्त मात्रा (खुराक) लेनी पडती है । यहां विटामिन सी, भगवान दत्तात्रेय का जप है । आज अधिकांश घरों में पितरों को गति न मिलने के कारण कुछ न कुछ बाधाएं दिखती हैं । लोग न तो श्राद्ध करने के लिए तैयार हैं और न ही धन खर्च करने की उनकी मानसिकता है, इसलिए पितरों को गति मिलने के लिए वे भगवान दत्तात्रेय का नामजप कर सकते हैं । इस जप से पितरों की भुवर्लोक के आगे की यात्रा सुगम होने में भी सहायता होती है ।

इसके अतिरिक्त आप आध्यात्मिक और व्यावहारिक प्रगति के लिए कुलदेवी का जप कर सकते हैं अथवा जिस इष्टदेवता का जाप आप बरसों से कर कुछ अनुभूति ले रहे हैं उनका जाप अथवा गुरुद्वारा दिए गए मंत्र का जाप कर सकते हैं ।

उ. हमें कैसे पता चलेगा कि पितरों का कष्ट दूर हो गया है । ‘श्री गुरुदेव दत्त’ का नामजप कितने दिन करना है ?

हमारे पूर्वज जो भुवर्लोक में अटके हुए हैं और अपनी-अपनी मुक्ति की प्रतिक्षा कर रहे हैं, वे हमें प्रत्यक्ष में नहीं बता सकते कि उनकी मुक्ति के लिए हमें साधना के प्रयास तथा श्राद्ध आदि विधि करने चाहिए । अत: वे हमें कष्ट देकर सूचित करते हैं । अर्थात यदि हमारी साधना से अथवा श्राद्ध आदि विधि से वे पितरलोक से मुक्त हो जाते हैं, तो हमारा आध्यात्मिक कष्ट दूर हो जाता है । हमें मानसिक शांति अनुभव होती है, घर की सामान्य रूप में कष्ट देनेवाली समस्याएं दूर हो जाती हैं, तब हमें प्रतीत होगा कि पितरों का कष्ट दूर हुआ है ।

‘श्री गुरुदेव दत्त’ का नामजप हमें पितरों का कष्ट दूर होने तक करना चाहिए । इसमें हमें ध्यान में लेना है कि स्वयं गंगाजी को पृथ्वी पर लानेवाले राजा भगीरथ की तीन पीढियों के प्रयासों के उपरांत उनके पूर्वजों को मुक्ति मिली थी । इसलिए हमें भी इसका महत्त्व ध्यान में रखकर नियमित प्रयास करने होंगे ।

 

४. पितृपक्ष में दत्तात्रेय देवताका नाम जपने का महत्त्व

पितृपक्ष में श्राद्ध विधि के साथ-साथ दत्तात्रेय देवता का नामजप करने से पूर्वजदोष का कष्टसे रक्षण होनेमें सहायता मिलती है । इसलिए पितृपक्ष में दत्तात्रेय देवता का नामजप न्यूनतम ६ घंटे करें ।

अ. पूर्वजों का कष्ट सभी को हो सकता है । फिर जिन्होंने गुरुमंत्र लिया है, उन्हें भी कुलदेवी
अथवा पूर्वजों के कष्टों से मुक्ति के लिए ‘श्री गुरुदेव दत्त ’, यह नामजप करना आवश्यक है क्या ?

यदि आपने गुरुमंत्र लिया है, तब भी कलियुग में आपको पूर्वजों के कष्टों से मुक्ति हेतु ‘श्री गुरुदेव दत्त’ यह जाप कर सकते हैं । गुरुमंत्र से हमारी आध्यात्मिक उन्नति होती है और ‘श्री गुरुदेव दत्त’ के जाप से पूर्वजों के कष्टों से निवारण होता है । दत्त भगवान के नामजप में पूर्वजों के कष्ट दूर करने की अधिक क्षमता है । यदि हम दत्त भगवान का जाप न करते हुए केवल गुरुमंत्र करेंगे, तो गुरुमंत्र की साधना से प्राप्त ऊर्जा पूर्वजों के कष्ट निवारण में व्यर्थ जा सकती है । इसी कारण दत्त भगवान का नामजप कुछ समय के लिए ही करना है और गुरुमंत्र दिनभर करना है ।

आ. गुरुमंत्र के साथ कुलदेवी का जाप करना चाहिए क्या ?

वास्तव में कुलदेवी की उपासना पूर्ण होने पर गुरु हमारे जीवन में आते हैं । यदि आपको गुरुमंत्र के साथ कुलदेवी का जाप करना आवश्यक और आनंददायी लगता हो, तो आप अवश्य करें । इससे कुलदेवी की कुछ उपासना शेष हो, तो वह पूर्ण होगी । यदि आपको गुरुमंत्र के जाप से ही प्रगति की अनुभूति हो रही है, तो कुलदेवी का जाप करने की आवश्यकता नहीं है । हम गुरुमंत्र के संदर्भ में कभी विस्तार से समझकर लेंगे ।

५. दत्तात्रेय देवता के नामजप से हुई कुछ अनुभूतियां

अ. दत्तात्रेय देवता का नामजप करते समय पूर्वज संतुष्ट दिखाई देना तथा सिरपर हाथ रखकर आशीर्वाद देना |

‘१८.९.२००५ को प्रातः ४.३० बजे दत्तात्रेय का नामजप करते समय मुझे अपनी दादी, नाना-नानी, भाई, बुआ, सगे एवं चचेरे ससुर, सबकी लिंगदेह दिखाई दीं । मुझसे हो रहे नामजपसे वे संतुष्ट दिखाई दिए । प्रत्येकने अपने दोनों हाथ मेरे सिरपर रखकर आशीर्वाद दिए व ‘तुम्हारा भला हो !’ कहकर वे सब चले गए । संपूर्ण दिन मुझे आनंदका अनुभव होता रहा ।’ – श्रीमती सुजाता कुलकर्णी, सांगली, महाराष्ट्र.

आ. पितृपक्ष में किए दत्तात्रेय के नामजप के कारण, बंद होने की स्थितिमें आए दुग्धालय (डेरी) की कायापलट होना |

‘मेरे पति कई वर्षोंसे दुग्धालय में नौकरी करते हैं । गत कुछ महिनों से दुग्धालय बंद होनेकी स्थितिमें था । इससे घरमें तनाव हो रहा था । पितृपक्षमें मैं ‘श्री गुरुदेव दत्त ।’ नामजप करने लगी । तत्पश्चात दुग्धालयमें अचानक दूध की भरपूर आपूर्ति होने लगी । नामजप प्रारंभ करनेसे घरमें वातावरण भी तनावरहित हो गया । इस घटनासे पूर्व सब लोग कह रहे थे कि दुग्धालय बंद ही हो जाएगा; परंतु दत्तात्रेय देवता की कृपा से यह संकट टल गया ।’

श्री गुरुदेव दत्त का नामजप

 

संदर्भ : सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘श्राद्ध (महत्त्व एवं शास्त्रीय विवेचन)’

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