धर्मकार्य करनेवालों को साधना करना आवश्यक ! — सद्गुरु (कु.) अनुराधा वाडेकर

बांदोडा (गोवा) के हिन्दू राष्ट्र संगठक प्रशिक्षण तथा अधिवेशन में ‘साधना एवं व्यक्तित्व विकास’ इस विषय पर उद्बोधक सत्र

बांदिवडे (गोवा), २१ जून — षष्ठ अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन के दूसरे चरण में १९ जून से यहां के श्री महालक्ष्मी मंदिर के सभागृह में हिन्दू राष्ट्र संगठक प्रशिक्षण तथा अधिवेशन आरंभ हुआ है । इस अधिवेशन के उद्बोधक सत्र में सनातन की सद्गुरु (कु.) अनुराधा वाडेकर ने मार्गदर्शन किया । अपने मार्गदर्शन में उन्होंने बताया कि, ‘आज काल के अनुसार हिन्दू संगठन की अत्यंत आवश्यकता है; किंतु साथ ही धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र-स्थापन करने के लिए समाज सात्त्विक होना भी आवश्यक है । धर्मकार्य करनेवालों को स्वयं में विद्यमान रज-तम गुणों का निर्दालन करने की दृष्टि से तथा सत्त्वगुण बढाने की दृष्टि से साधना एवं धर्मशिक्षण प्राप्त कर धर्माचरण करना आवश्यक है । सत्त्वगुणवृद्धि के कारण संकुचितता नष्ट होकर व्यक्ति व्यापक विचार कर सकता है । साथ ही राष्ट्र एवं धर्म कार्य अधिक अच्छे प्रकार से कर सकता है ।’

‘साधना एवं व्यक्तित्व विकास’ इस विषय पर हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळे, सनातन संस्था के प्रवक्ता श्री. चेतन राजहंस, हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. अभिजीत देशमुख तथा सनातन की साधिका श्रीमती क्षिप्रा जुवेकर ने अधिवेशन के लिए उपस्थित धर्मप्रेमियों को स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन की प्रक्रिया के बारें में अधिक जानकारी दी । साथ ही उनकी शंकाआेंका भी निरसन किया । दोष तथा अहं निर्मूलन के लिए धर्मप्रेमियों को छत्रपति शिवाजी महाराज का आदर्श सामने रखना चाहिए !

सद्गुुरु (कु.) अनुराधा वाडेकर ने प्रभावी रूप से धर्मकार्य करने हेतु साधना करने का तथा उसके लिए स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन का महत्त्व कितना है, यह बात स्पष्ट करने के पश्‍चात् सभी धर्मप्रेमियों के मन में यह उत्सुकता उत्पन्न हुई कि, स्वभावदोष एवं अहं किस प्रकार ढूंढे जाते हैं ? इस पर श्रीमती क्षिप्रा जुवेकर ने मार्गदर्शन करते समय बताया कि, ‘जिस प्रकार छिद्रवाले मटके में पानी रहना असभंव है, उसी प्रकार स्वभावदोष एवं अहं जिस व्यक्ति में हैं, उसे ईश्‍वर का चैतन्य, शक्ति प्राप्त करना असंभव है । हिन्दु राष्ट्र स्थापना हेतु हमें ईश्‍वर के बल की आवश्यकता रहेगी । छत्रपति शिवाजी महाराज अत्यंत तेजस्वी, संयमी तथा निर्भय थे । ‘हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना श्री की इच्छा’, छत्रपति शिवाजी महाराज के इन विचारों से ही उन्होंने हमें अपना कर्तेपन ईश्‍वरके चरणों में अर्पण करने की सीख दी है । उनका आदर्श सामने रखकर प्रत्येक धर्मप्रेमी को स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन करना चाहिए तथा हिन्दु राष्ट्र स्थापना के कार्य में मावळा (सिपाही) बनना चाहिए ।

क्षणिकाएं

१. अधिकांश धर्माभिमानियों ने उनके धर्मकार्य में रूकावट निर्माण करनेवाले दोष एवं अहं सहजता से बताएं ।

२. यह सत्र फेसबुक द्वारा सीधा प्रसारित किया गया था । सीधा प्रसारण देखनेवाले भी इस ‘साधना एवं व्यक्तित्व विकास’ इस विषय पर किए गए मार्गदर्शन में फेसबुक चॅट द्वारा सम्मिलित हुए थे । अनेक लोगों ने अपनी शंका चॅटिंग बॉक्स द्वारा पूछकर उनका निरसन किया ।

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