व्रण पर (घाव पर) आयुर्वेदीय प्राथमिक उपचार

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वैद्य मेघराज माधव पराडकर

‘किसी भी कारणवश (उदा. छिल जाना, कट जाना इत्यादि के कारण) व्रण (घाव) होने पर उस पर तुलसी का रस लगाएं । तुलसी का रस लगाने से घाव में जंतूसंसर्ग होने की संभावना न्यून हो जाती है एवं व्रण शीघ्र भरता है । तुलसी का रस निकालने से पहले हाथ साबुन से धो लें । तुलसी के ७ – ८ ताजे पत्ते स्वच्छ धोकर लगाएं । उनमें से पानी झटक दें । ये पत्ते दोनों हथेलियों में मसलें । इससे हथेली पर तुलसी का रस लगने लगता है । तब पत्ते उंगलियों से निचाडते हुए उससे आनेवाला रस व्रण पर लगाएं ।’

– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (३०.८.२०२२)

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