दक्षिण भारत के कुंभमेला महामहम महोत्सव का इतिहास

कावेरी नदी के तट पर स्थित कुंभेश्‍वर मंदिर में महामहम के लिए एकत्र श्रद्धालु

 

महामहम का इतिहास

लोग अपने पाप धोने के लिए गंगा, यमुना, सरस्वती, शरयु, गोदावरी, महानदी, नर्मदा, कावेरी और पायोश्‍नी, नदियों में स्नान करते हैं । इसलिए इन नदियों का पाप बढ गया है । उन पापों से मुक्त होने के लिए सभी नदियां ब्रह्मदेव के पास गईं । ब्रह्मदेव ने नदियों के पाप धोने के लिए उन्हें एकत्रित कुंभकोणम के तालाब में स्नान करने के लिए कहा । तब से इस महोत्सव का आरंभ हुआ ।

 

महामहम महोत्सव क्या है ?

महामहम महोत्सव हर १२ वर्षों में आता है । पिछला महामहम महोत्सव २०१६ में मनाया गया था ।

हिन्दुओं की मान्यता है कि महोत्सव के समय देश की सर्व महत्त्वपूर्ण नदियां कुुंभकोणम के तालाब में एकत्र आती हैं । इसलिए इस काल में तालाब में किए गए स्नान का फल सभी नदियों में किए गए स्नान का एकत्रित फल प्रदान होता है ।

महामहम महोत्सव का अंतिम दिन सबसे विशेष समझा जाता है; कारण यह है कि इस दिन कुंभकोणम में सभी मंदिरों के देवी-देवताओं की मूर्तियों को तालाब में स्नान करवाया जाता है । इस दिन लाखों हिन्दू तालाब में स्नान करते हैं । इसे तीर्थावरी कहते हैं ।

इस दिन किए गए स्नान से पापों का हरण होता है, ऐसी हिन्दुओं की श्रद्धा है । स्नान के उपरांत देवताओं को अर्पणस्वरूप में धन अथवा भेटवस्तु दी जाती हैं ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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