ब्रह्मा, विष्णु एवं शिवजी का रूप है प्रयागराज का लाखों वर्ष प्राचीन परमपवित्र अक्षयवट !

कुंभदर्शन


वाल्मीकि रामायण में अक्षयवट का पहला उल्लेख मिलता है । पुराण में अक्षयवट को तीर्थराज प्रयाग का छत्र कहा गया है । अक्षयवट को ब्रह्मा, विष्णु एवं शिवजी का रूप माना गया है । जिसे दर्शन से साधकों को मोक्षप्राप्ति तथा भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती हैं, उस अक्षयवट की जानकारी यहां दे रहे हैं ।

प्रयाग का वटवृक्ष ‘अक्षयवट !’

 

१. श्रीराम, सीता एवं लक्ष्मण ने किए हैं अक्षयवट के दर्शन !

पुराण में ऐसा कहा गया है कि वनवास की कालावधि में भगवान श्रीरामजी प्रयाग में भरद्वाज ऋषी के पास आए । उस समय भरद्वाज ऋषीने उन्हें यमुना तटपर स्थित अक्षयवट की महिमा विशद की । उसके पश्‍चात श्रीराम, सीता एवं लक्ष्मण ने अक्षयवट के दर्शन किए। सीतामाता ने अक्षयवट का पूजन कर उससे आशीर्वाद मांगें ।

 

२. पृथ्वीपर प्रलय के पश्‍चात भी
केवल अक्षयवट का ही अस्तित्व शेष रहना !

पुराणों की कथाओं में यह उल्लेख मिलता है कि संत मार्कंडेय ने भगवान नारायणजी से उनकी ईश्‍वरीय शक्ति दिखाने का आग्रह किया । उस समय एक क्षण के लिए भगवान नारायणजी ने पृथ्वी को जलमय बनाया । तब पृथ्वीपर विद्यमान सभी वस्तुएं उस प्रलय में बह गईं; परंतु प्रयाग के अक्षयवट का उपरी भाग दिखाई दे रहा था ।

 

३. परमपिता ब्रह्माजी ने प्रयाग में
जब यज्ञ किया, तब भी अक्षयवट था !

अक्षयवट स्वयं ही पुष्पित-पल्लवित होता है । उसके लिए अलग कुछ नहीं करना पडता, यह उसकी विशेषता है ! यज्ञ की दृष्टि से प्रयाग पवित्र स्थान है । ऐसा भी कहा जाता है कि सृष्टिनिर्माण के समय परमपिता ब्रह्माजी ने पहले प्रयाग में यज्ञ किया । अक्षयवट तब भी था । प्रयाग में अक्षयवट, मथुरा-वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट, जिसे बौद्धवट भी कहा जाता है और उज्जैन में पवित्र सिद्धवट है । ये सभी वट विगत अनेक वर्षों से श्रद्धा, समर्पण तथा आस्था के केंद्र बने हुए हैं ।

 

४. अक्षयवट की श्रद्धा के साथ ४ बार
परिक्रमा करने से साधक को मोक्षप्राप्ति होती है !

अक्षयवट अनादिकाल से त्याग, तपस्या, आस्था एवं विश्‍वास का प्रतीक बना हुआ है । अक्षयवट के नीचे की गई तपस्या पूर्ण होती है, साथ ही उसके श्रद्धा एवं भाव से दर्शन करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, ऐसा कहा जाता है । भागवत पुराण में ऐसा कहा गया है कि अक्षयवट में भगवान विष्णुजी बालरूप में शयन करते हैं । अक्षयवट को केवल प्रयाग ही नहीं, अपितु संपूर्ण पृथ्वी का प्रहरी माना जाता है । अक्षयवट की न्यूनतम ४ प्रदक्षिणाएठ कर उसे पुष्प एवं अक्षता समर्पित करने से साधक को मोक्षप्राप्ति होती है ।

 

५. मुघलों द्वारा २३ बार जलाया
जाकर भी अक्षयवट नष्ट नहीं हुआ !

मुघलों ने इस अक्षयवट का अस्तित्व मिटाने के अनेक प्रयास किए । उन्होनें अक्षयवट को २३ बार काटकर उसके टुकडों को जला दिया; किंतु उसको पूर्णतः मिटाने में उन्हें सफलता नहीं मिली । अक्षयवट पुनः अंकुरित होता था । प्रयागराज में यमुनातटपर अकबर ने वर्ष १५७४ में भुवन का निर्माणकार्य प्रारंभ किया । इसके निर्माण में ४२ वर्ष लगे । श्रद्धालु अक्षयवट के दर्शन न कर सकें, केवल इसी उद्देश्य से यह भुवन बनाया गया । भुवन बनने के पश्‍चात अक्षयवट के दर्शन और पूजन बंद हो गया । मुघलों के पश्‍चात ब्रिटीशकाल में भी अक्षयवट के दर्शनपर प्रतिबंध था । अंग्रेजों ने भुवन को अपने नियंत्रण में लेकर उसमें अपनी छावनी बनाई थी ।

 

६. सरस्वती कूप के साथ ४३ देवताओं की मूर्तियां !

अक्षयवट की भांति भुवन में सरस्वती कूप भी एक प्रेक्षणीय स्थल है । सरस्वती कूप को पृथ्वी का सबसे पवित्र कूप (कुआं) माना जाता है । संगम में अदृश्य सरस्वतीदेवी है । ऐसा कहा जाता है कि इस कूप में उनका निवास है । मत्स्यपुराण में सरस्वती कूप की कथा बताई गई है । जिस प्रकार से गंगा गंगोत्री से तथा यमुना यमनोत्री से उद्गमित हुई, उसी प्रकार से यमुनातटपर बनाए गए कूप में सरस्वतीदेवी है । सर्वत्र यह मान्यता है कि सरस्वतीकूप के दर्शन से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं । अक्षयवट के अतिरिक्त भुवन में ४३ देवताओं के मूर्तियों की स्थापना की गई है । पातालपुरी मंदिर के अंदर अक्षयवट के अतिरिक्त धर्मराज, अन्नपूर्णा, विष्णु, लक्ष्मी, श्री गणेश-गौरी, शंकर महादेव, दुर्वास ऋषी, महर्षि वाल्मीकि, प्रयागराज, वैद्यनाथ, कार्तिकस्वामी, सती अनुसूया, वरुणदेव, दंड, महादेव, कालभैरव, ललिता देवी, गंगा, यमुना, सरस्वती देवी, भगवान नरसिंह, सूर्यनारायण, जामवंत, गुरु दत्तात्रेय, बाणगंगा, सत्यनारायण, शनिदेव, मार्कंडेय ऋषी, गुप्तदान, शूल टंकेश्‍वर महादेव, देवी पार्वती, वेणी माधव, कुबेर भंडारी, आरसनाथ-पारसनाथ, संकटमोचक हनुमान, सूर्यदेव आदि देवताओं की मूर्तियां हैं ।

 

७. सर्वदलीय सरकारों की
इच्छाशक्ति के अभाव से अक्षयवट का दर्शन बंद !

श्रद्धालुओं ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मुगल और अंग्रेजों के काल से लेकर अभीतक ४५० वर्षों से अक्षयवट का दर्शन बंद था । देश से अंग्रेज चले जाने के पश्‍चात श्रद्धालुओं की यह स्वाभाविक अपेक्षा थी कि देश में सत्ता में आया हुआ कांग्रेस शासन अक्षयवट का दर्शन पुनः आरंभ कर देगा; परंतु वास्तव में केंद्र की कांग्रेस और उत्तर प्रदेश में अबतक सत्ता में रहे समाजवादी दल के अध्यक्ष तथा पूर्व मुख्यमंत्री मुलायमसिंह यादव और उनके पश्‍चात अखिलेश यादव ने अक्षयवट का दर्शन आरंभ करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए। इसलिए देश से अंग्रेजों के चले जाने के पश्‍चात भी केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में अक्षयवट नहीं खोला गया । केवल मुसलमानों को प्रसन्न रखने के लिए कांग्रेस और समाजवादी दल ने अक्षयवट को दर्शन के लिए नहीं खोला ।

 

८. जिसपर संपूर्ण विश्‍व को गर्व हो, वह भारत का अक्षयवट !

अमेरिका अथवा अन्य किसी देश में कोई प्राचीन वस्तु मिलनेपर उसका विश्‍व में ढिंढोरा पीटा जाता है; किंतु अतिप्राचीन अक्षयवट की महिमा संपूर्ण विश्‍व को गर्व प्रतीत होनेयोग्य होते हुए भी भारत के तत्कालीन कांगेस सरकार ने उसे दर्शन हेतु नहीं खोला । उत्तर प्रदेश के विद्यमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भाजपा शासनने श्रद्धालुओं के लिए अक्षयवट का दर्शन पुनः आरंभ किया; इसलिए उनका अभिनंदन ! वास्तव में देश के तत्कालीन सर्वदलीय सरकारों ने यदि इस अक्षयवट की महिमा संपूर्ण विश्‍व में फैलाई होती, तो विश्‍व को इसकी जानकारी मिलकर देश का गौरव विश्‍व में बढ जाता; परंतु तत्कालीन निधर्मी और धर्मद्रोही सरकारों को इसका महत्त्व नहीं है, यही यहां अधोरिखित करनेयोग्य सूत्र है !

स्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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