पंढरपुर की वारी (यात्रा) : भावभक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण

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‘विठुमाऊली तू माऊली जगाची । माऊलीच मूर्ती विठ्ठलाची, विठ्ठला मायबापा ॥’ वारकरियों का भगवान श्री विठ्ठल के प्रति उत्कट भाव विश्‍व में सुविख्यात है । ‘विठ्ठल विठ्ठल, जय हरि विठ्ठल’ का जप करते हुए वारकरी प्रतिवर्ष यात्रा के लिए जाते हैं तथा लौटने के पश्‍चात् केवल स्वयं तक ही सीमित नहीं, तो परिसर में भी विठ्ठल की उपासना का प्रसार करते हैं । वारकरियों की ऐसी श्रद्धा है कि, काशी की पांच बार यात्रा, द्वारका को तीन बार जाना, इन दोनों यात्राओं से जितना पुण्य प्राप्त होता है, उतना ही पुण्य एक पंढरपुर की यात्रा से प्राप्त होता है । श्री विठ्ठल तथा पंढरपुर की यात्रा के छायाचित्रों के माध्यम से भावपूर्ण दर्शन करेंगे !

 

संत तुकाराम महाराज ने सदेह वैकुंठगमन किया, वही देहु का पवित्र नांदुरकी वृक्ष का स्थान !

 

संत चोखामेळा की पंढरपुर के विठ्ठल मंदिर के सामने समाधी

 

संत कान्होपात्रा विठ्ठल मंदिर के तरटी वृक्ष में विलीन हुई । उस स्थान पर निर्माण कार्य किया गया उनका समाधी मंदिर

 

संत ज्ञानेश्वर के अस्तित्व से पुनित हुआ पवित्र तीर्थक्षेत्र आळंदी

श्रीक्षेत्र आळंदी के इंद्रायणी नदी के किनारे पर स्नान करनेवाले सहस्त्रावधी वारकरी तथा दायी ओर वलय में दिखाया गया है, श्री ज्ञानेश्‍वर की समाधी मंदिर का कळस ! यह कळस हिलता है, इसकी अनुभूति लक्षावधी भक्तों ने प्राप्त की है ।

प्रत्येक व्यक्ति का कल्याण चिंतना, कार्य में भगवंत को देखना, धर्मपूर्वक गृहस्थाश्रम का पालन करना तथा भागवत धर्म का मार्ग सुकर करना ही वारकरियों का भक्तिमय जीवन है !

आषाढी एकादशीनिमित्त पंढरपुर में संपन्न होनेवाली इस यात्रा में सम्मिलित होकर विठुराया से भेंट करें । यात्रा के साथ यही प्रार्थना है कि, प्रत्येक जीव की जीवन यात्रा भी भक्तिमय बनें !

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