साधकों को प्रत्यक्ष कृति से सिखानेवाले परात्पर गुरु डॉ जयंत आठवलेजी !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की जीवन यात्रा देखें तो उनकी प्रत्येक कृति आदर्श है, यह पग-पग पर दिखाई देता है । साधक भी वैसे ही तैयार होें, वह सेवा की बारीकियों का अध्ययन कर प्रत्येक कृति ईश्‍वर को अपेक्षित ऐसी परिपूर्ण करें, ऐसी उनकी लगन है । उसके कारण केवल शाब्दिक मार्गदर्शन न करके साधकों को प्रत्यक्ष कृति से सिखाना, यह उनकी अलौकिक विशेषता का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है ! वनस्पतियों का रोपण, धर्मजागृति सभा के मैदान में की जानेवाली तैयारी, कला की सेवा हो या संगीत-नृत्य, सभी क्षेत्र में उनका ‘प्रभुत्व’ उनका अवतारत्व सिद्ध करता है !

कई बार गुरु अर्थात आसन पर बैठकर मार्गदर्शन करनेवाले, ऐसा चित्र हमारे सामने आता है । (परात्पर गुरु) डॉ. आठवलेजी साधकों के साथ प्रत्येक सेवा में सहभागी होकर उसके माध्यम से ईश्‍वर प्राप्ति हेतु मार्गदर्शन करते हैं, इसलिए सनातन के साधक अत्यंत भाग्यवान हैं । ‘पेड-पौधों से फूल कैसे तोडें, ‘झाडू लगाते समय द्वार के पायदान मोड कर एक ओर रखें’, इस प्रकार श्रीगुरु ने प्रत्यक्ष कृति से सिखाए हुए अनेक प्रसंग साधकों के मनमंदिर में संग्रहित हैं । उनमें से कुछ चयनित प्रसंग हमारे पाठकों हेतु प्रस्तुत हैं । श्रीगुरु की इस अनमोल सीख हेतु कोटि कोटि कृतज्ञता !

धर्मजागृति सभा हेतु मैदान पर पूर्वतैयारी के विषय में मार्गदर्शन

परात्पर गुरुदेव ने सर्वसंप्रदाय सत्संग, सार्वजनिक सभा, हिन्दू धर्मजागृति सभा के माध्यम से व्यापक संगठन किया । सभा की तैयारी भी साधक ही उनके मार्गदर्शन में करते थे । ऐसी एक सभा में साधक को निर्देश देते हुए (परात्पर गुरु) डॉ. आठवलेजी (२६.११.२००८)

आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित ‘स्टूडियो’ में साधकों को चित्रीकरण संबंधी मार्गदर्शन

सनातन कलामंदिर में आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित ‘स्टूडियो’ में चित्रीकरण की (रिकॉर्डिर्ंग की) गुणवत्ता बढाने हेतु उपयुक्त सुधार बताते (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (वर्ष २०१५)

‘ईश्‍वरप्राप्ति हेतु संगीतकला’ संबंधी साधकों का मार्गदर्शन !

अध्यात्म की दृष्टि से संगीत-अभ्यास में प.पू. डॉक्टरजी के मार्गदर्शन में गायनसाधना करतीं कु. तेजल पात्रीकर एवं श्री. गिरिजय प्रभुदेसाई (वर्ष २०१७)

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