बाह्य आडंबर की अनदेखी कर साधकों के उद्धार हेतु प्रयासरत रहनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

 

बाह्य आडंबर में स्वयं को धन्य माननेवाले
अन्य संत तथा बाह्य आडंबर की अनदेखी कर साधकों के
उद्धार हेतु प्रयासरत रहनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की विशेषताएं

‘हर चमकती चीज सोना नहीं होती ।’ उज्जैन के सिंहस्थ पर्व में प्रसिद्ध साधु-संतों की ओर लोग आकर्षित हो रहे हैं । वह देखते हुए इस कहावत का स्मरण हो आया ।

इस सिंहस्थ पर्व में कुछ साधु-संतों का जो स्थूल रूप में निरीक्षण किया, उसी से परात्पर गुरु श्रीश्रीजयंत आठवलेजी के संदर्भ में ध्यान में आई विशेषताओं के कुछ सूत्र यहां प्रस्तुत कर रहा हूं । इन स्थूल रूप में प्रस्तुत किए गए सूत्रों द्वारा भी प.पू. गुरुदेवजी का असामान्यत्व स्पष्ट होता है ।

अन्य संत/ कथाकार/ कीर्तनकार परात्पर गुरु श्रीश्रीजयंत बाळाजी आठवले
 १. व्यष्टि जीवन  
 अ. वस्त्र आकर्षित करनेवाले कपडों का अधिक मात्रा में उपयोग करना  साधी बंडी तथा पजामे का उपयोग
 आ. आहार पंचपक्वान्नों से पूर्ण शरीर की आवश्यकता अनुसार साधारण रूप में
 इ. आसन विशेष तथा सुशोभित किया गया  सामान्य कुर्सी
 ई. वाहन अत्यंत महंगा तथा सामाजिक प्रतिष्ठा संभालनेवाला यात्रा में सामान ले जाने के लिए सुविधाजनक (गत 10 वर्षों से भ्रमण किया ही नहीं ।)
 उ. सेवक निरंतर आसपास में सेवा की आवश्यकता अनुसार
 ऊ. सुख- सुविधाएं अधिक मात्रा में सेवा की आवश्यकता अनुसार
 ए. मितव्यय करने की वृत्ति ध्यान नहीं देना लेखन के कागज, वस्त्र इन सभी बातों में मितव्यय करना
 ऐ. समय का उपयोग समय की ओर ध्यान नहीं समय का 100 प्रतिशत उपयोग समष्टि हित के लिए करना
 २. सामाजिक जीवन 
 अ. पद जगद्गुरु, महामंडलेश्‍वर, महंत के समान पद पाने के प्रयास सर्व पदों से दूर
 आ. कार्य अत्यंत स्थूल स्तर पर तथा परंपरा से कुछ कालावधि में अल्प फलोत्पत्ति देनेवाला कालानुसार आवश्यक, तथा राष्ट्र-धर्म के लिए उपयुक्त, विविधांगी तथा सूक्ष्म स्तर पर भी
 इ. समय प्रतिष्ठित, राजनीतिक तथा जिन लोगों से कुछ साध्य हो रहा है
ऐसे लोगों के लिए
जिज्ञासु, साधक तथा संतों के लिए
 ई. मार्गदर्शन सांप्रदायिक साधना स्थल, काल तथा परिस्थिति अनुसार
 उ. सामाजिक प्रतिष्ठा हितसंबंधों की रक्षा करनेवाले विविध सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यक्रमों में उपस्थित रहना केवल आध्यात्मिक कार्यक्रमों के लिए समय देना !

प्रधानता से यह विचार ‘अन्य लोगों के साथ होनेवाले हितसंबंधों की अपेक्षा ईश्‍वर को प्रधानता देना !’ (वर्तमान में प्रकृति अस्वास्थ होने के कारण कहीं भी भ्रमण करना असंभव हो गया है ।)

  ऊ. प्रसिद्धि सभी प्रसारसामग्री पर स्वयं का छायाचित्र छापना तथा समय आने पर पत्रकारों को धन देकर अपना समाचार प्रकाशित करने के लिए भक्तों को अनुमति देना समाज को धर्महानि की घटना के संदर्भ में शास्त्र बताना
 ३. आध्यात्मिक कार्य
३ अ. मठ अथवा आश्रमों की निर्मिति
१. मठ अथवा आश्रमों की स्थापना जहां कहीं भी स्थान प्राप्त हो, वहां अपना स्थान निर्माण करना साधकों की आवश्यकतानुसार आश्रमों की निर्मिति करना, अधिकांश स्थानों पर साधकों के घरों को ही आश्रम का रूप देना
 २. जिज्ञासुओं को दिया जानेवाला शुल्क विविध योगमार्ग अथवा साधना सिखाने हेतु साधकों द्वारा निधि लेना । इससे ‘साधकों की आर्थिक क्षमता’ यही निकष बनना साधना अथवा कार्य के संदर्भ में साधकों द्वारा किसी भी प्रकारकी निधि न लेना तथा इससे ‘आर्थिक क्षमता’ का निकष न रहकर, ‘जिज्ञासा’ यही निकष रहना
 ३. कार्य का व्यवस्थापन अधिकांश संतों को ध्यान देकर भक्तों से कार्य करवाना पडना तथा वह आदर्श होने के लिए ध्यान देने की आवश्यकता रहना साधकों को ही आदर्श ढंग से कार्य करने के लिए सक्षम बनाना
 ४. व्यय प्रत्येक उपक्रम के लिए अनावश्यक व्यय करना तथा वह भी दिखावे के लिए करना साधकों को मितव्यय करने के लिए तथा आवश्यकतानुसार वस्तु का पुनः उपयोग करने के लिए सिखाना, तथा प्रत्यक्ष कार्य के लिए व्यय
करने का मार्ग भी बताना
३.आ. साधक तैयार करना
 १. ध्येय व्यक्तिगत उन्नति का ध्येय साधकों के सामने न रखना, तथा समष्टि ध्येय का भी अभाव रहना साधकों के सामने निरंतर मोक्ष तक जाने का ध्येय रखना तथा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का ध्येय भी रखना
२. सीख साधकों को स्वयं में उलझाना, तथा भक्तों को दर्शन एवं आशीर्वाद देने में समय व्यर्थ जाने से वही आदर्श सबके सामने रखना साधकों को स्वयं में उलझाने की अपेक्षा तत्त्वनिष्ठ रहने की सीख देना तथा दर्शन-आशीर्वाद में समय गंवाने की अपेक्षा वह समय राष्ट्रकार्य एवं धर्मकार्य हेतु देने से सभी के सामने वहीं आदर्श रहना
३. संस्कार साधकों के आचरण की ओर अनदेखी साधक आदर्श ही रहें; इसलिए निरंतर मार्गदर्शन करना
४. महत्त्व कार्य पूरा करने को देना प्रसंग आने पर कार्य पूरा करने को न देकर, साधकों की साधना को देना
५. अडचनों के सदंर्भ में मार्गदर्शन अडचनों का निराकरण करने के लिए सिद्धियों का उपयोग करना
तथा धन प्राप्त कर विधि करना
अडचनों का निराकरण करने हेतु किसी भी प्रकार का मूल्य लेने की अपेक्षा आध्यात्मिक स्तर पर उपाय बताना तथा प्रारब्धानुसार उसे भोगने के लिए मानसिक एवं आध्यात्मिक बल देना
 ६. साधकों का विचार अनुयायियों की सहायता करने में भेदभाव करना सभी साधकों का परिवार के समान ध्यान रख उन्हें सहायता एवं मार्गदर्शन करना
७. आध्यात्मिक उन्नति का विचार भक्तों की आध्यात्मिक उन्नति का विचार न करना । यदि किया भी, तो वह निश्‍चित योगमार्ग अथवा कर्मकांड तक ही सीमित रहना साधकों की सर्वांगीण उन्नति का विचार निरंतर करना तथा उन्हें उस बात का भान कराना’
–  श्री. आनंद जाखोटिया, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल.
संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात

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