अखिल मानवजाति पर निरपेक्ष प्रेम (प्रीति) करनेवाले परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

साधकों पर समष्‍टि कल्‍याण हेतु अपना जीवन समर्पित करनेवाले परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी की प्रीति असीम है ! केवल साधकों की ही नहीं, अपितु अखिल मानवजाति का कल्‍याण हो; इसके लिए वे रात-दिन कार्यरत हैं । भारतीय हिन्‍दुओं को धर्म की शिक्षा मिले; इसके लिए तो वे कार्य कर ही रहे हैं; अपितु उसके साथ ही हिन्‍दू धर्म के अनुसार आचरण कर रहे विदेशियों को भी वे किस प्रकार हिन्‍दू धर्म की जानकारी उपलब्‍ध कराते हैं, इस लेख से यह सीखने को मिलेगा । आश्रम में निर्माणकार्य हेतु आनेवाले श्रमिकों की चिंता भी प्रेमपूर्वक करना, उनमें निहित असामान्‍यता दर्शाता है ! ‘संपूर्ण विश्‍व ही मेरा घर है’, इस वचन अनुसार परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी सभी को अपना रहे हैं, यही सच है !

१. विदेश में किसी व्‍यक्‍ति की मृत्‍यु के उपरांत
उसका अग्‍निसंस्‍कार करने पर मर्यादाएं होना

‘एसएसआरएफ’ के जालस्‍थल पर मृत व्‍यक्‍ति का अंतिमसंस्‍कार करने के संदर्भ में उस पर अग्‍निसंस्‍कार करने के लाभ और दफन करने से होनेवाली हानि के संबंध में जानकारी देनेवाला लेख प्रकाशित किया गया है । समाज को मृत्त्योत्तर क्रियाकर्म का शास्‍त्र समझ में आए, इस बात को ध्‍यान में रखकर यह लेख लिखा गया था । इस लेख में मृत्त्योत्तर क्रियाकर्म करते समय धर्मग्रंथ के अनुसार प्रत्‍येक कृत्‍य के शास्‍त्रों का, उदा. मंत्रपरायण, उससे संबंधित कुछ विधियां, चिता इत्‍यादि का उल्लेख किया गया है । यह लेख पढकर विदेश के एक साधक ने इसका ध्‍यान दिलाया कि विदेश में किसी व्‍यक्‍ति की मृत्‍यु के उपरांत उसका अग्‍निसंस्‍कार करना सुनिश्‍चित किया गया, तो उन्‍हें यह विधि उपलब्‍ध श्‍मशानभूमि में संपन्‍न करनी पडती है । यह विधि भारत में किए जानेवाले अंतिमसंस्‍कार की विधि के समान नहीं होती । ऐसी श्‍मशानभूमि में किसी भी प्रकार का मंत्रपाठ अथवा मृत्त्योत्तर कर्म नहीं किए जाते अथवा ‘मृत्‍यु के उपरांत उस जीव को आगे की गति प्रदान हो, इसके लिए ये मंत्र लाभकारी होते हैं’, यह भी उन्‍हें ज्ञात नहीं होता ।

 

२. विदेश के व्‍यक्‍तियों को सहायता के रूप में अंतिमसंस्‍कार
विधि के मंत्र जालस्‍थल पर उपलब्‍ध कराने के संदर्भ में सुझाना

एक दिन मैंने परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी को उक्‍त विषय बताया । उस समय व्‍यक्‍ति की मृत्‍यु के पश्‍चात उसकी सूक्ष्मदेह की आध्‍यात्मिक दृष्‍टि की यात्रा सुलभ होने के संबंध में वे कहने लगे, ‘‘जिन मृत व्‍यक्‍तियों का अंतिमसंस्‍कार श्‍मशानभूमि में किया जाता है, उनकी सूक्ष्मदेहों की हम किस प्रकार सहायता कर सकते हैं, जिससे मृत्त्योत्तर क्रियाक्रर्म के समय बोले जानेवाले मंत्रजपों का उन सूक्ष्मदेहों को आध्‍यात्मिक स्‍तर पर लाभ मिल सके ?’’ उसके उपरांत उन्‍होंने एसएसआरएफ के जालस्‍थल पर विविध मंत्र रखने के संदर्भ में (‘अपलोड’ करने के लिए ) सुझाया । इसके कारण ये मंत्र विदेशी लोगों के लिए भी उपलब्‍ध हों और जो विदेशी श्‍मशानभूमि में अंतिमसंस्‍कार करने के इच्‍छुक हैं, उन्‍हें इन मंत्रों का आध्‍यात्मिक लाभ मिलने में सहायता मिले ! उन्‍होंने आगे कहा, ‘ये मंत्र हिन्‍दू धर्म की देन है इसलिए उन पर किसी एक का अधिकार नहीं हैं । उन्‍हें सभी के लिए उपलब्‍ध कराना हमारा दायित्‍व है ।’

 

३. लाखों सूक्ष्मदेहों की मृत्‍यु के उपरांत की यात्रा में भी
आध्‍यात्मिक स्‍तर पर उनकी सहायता करनेवाले परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी

परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी जब बोल रहे थे, तब मेरा भाव जागृत हो रहा था । संपूर्ण मनुष्‍यजाति के प्रति परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी में निहित प्रीति (निरपेक्ष प्रेम) मुझे अनुभव हो रहा था । परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी संपूर्ण विश्‍व के लोगों के व्‍यक्‍तिगत जीवन में उन्‍हें होनेवाले आध्‍यात्मिक कष्‍ट के कारण आनेवाली समस्‍याएं दूर होने हेतु अध्‍यात्‍म का ज्ञान मिले; इस पर निरंतर विचार करते रहते हैं । मैं उनके पास केवल जानकारी लेकर गया था; परंतु उन्‍होंने उसी क्षण आध्‍यात्मिक स्‍तर पर उसका विश्‍लेषण किया और लाखों लोगों को उनकी मृत्‍यु के समय सहायता मिले; इसके लिए उन्‍होंने आध्‍यात्मिक स्‍तर पर समाधान भी निकाला । अमेरिका और कैनडा जैसे विकसित देश के ४० से ४५ प्रतिशत लोग भी अब श्‍मशानभूमि में दहन (अग्‍निसंस्‍कार) करने का विकल्‍प चुनने लगे हैं । इसके कारण अब सहस्रों सूक्ष्मदेहों को उनकी मृत्त्योत्तर यात्रा के लिए इन मंत्रों से लाभ मिलेगा ।

परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी जब यह सब बोल रहे थे, तब मुझे ऐसा लगा कि ‘इन सभी के लिए तो उनका संकल्‍प हो ही चुका है, साथ ही जो लोग उनके प्रिय व्‍यक्‍तियों की मृत्‍यु के उपरांत इन मंत्रों को प्रयोग कर क्रियाकर्म करेंगे, इससे उन्‍हें भी निश्‍चितरूप से लाभ मिलेगा ।’ लाखों सूक्ष्मदेहों की मृत्त्योत्तर यात्रा में भी आध्‍यात्मिक स्‍तर पर सहायता करनेवाले परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी जैसे परात्‍पर गुरु ही ऐसा बोल सकते हैं, इसका मुझे भान हुआ और अंतःकरण में परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी के प्रति कृतज्ञता के साथ मैं अपनी सेवा में वापस गया ।’

– श्री. शॉन क्‍लार्क, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.

 

ईश्‍वर ने, ‘आपको स्‍वस्‍थ जीवन चाहिए या हिन्‍दू राष्‍ट्र की स्‍थापना ?’, ऐसा पूछा,
तो ‘हिन्‍दू राष्‍ट्र स्‍थापना चाहिए’ का उत्तर देने के इच्‍छुक परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी !

‘विगत ७ वर्षों से प्राणशक्‍ति अल्‍प होने के कारण मैं बाहर कहीं नहीं जा सकता । कभी-कभी तो मुझे बैठना भी कठिन हो जाता है, ऐसी मेरी स्‍थिति है । आज मेरे मन में सहजता से यह विचार कौंधा कि ईश्‍वर ने यदि मुझसे पूछा कि आपको एक स्‍वस्‍थ जीवन चाहिए या हिन्‍दू राष्‍ट्र-स्‍थापना की पूर्णता ?’ तो मेरा उत्तर होगा, ‘हिन्‍दू राष्‍ट्र-स्‍थापना की पूर्णता !’

उसके उपरांत मेरे ध्‍यान में आया कि यही उत्तर देना चाहिए, ऐसा मुझे क्‍यों लगा ? उस समय मेरे मन में यह विचार आया था कि यह शरीर तो कभी न कभी छोडना ही है; इसलिए जीवन मांगने का कोई अर्थ नहीं है । साथ ही जीवन तो केवल साधन है; परंतु कार्य पूर्ण होना साध्‍य है । इसलिए मुझे साध्‍य का ही विचार आया । यदि जीवन और बढकर मिलता, तो मुझे तनिक स्‍वस्‍थ लगता; परंतु अखिल मनुष्‍यजाति का हित साधनेवाली हिन्‍दू राष्‍ट्र की स्‍थापना होने पर सर्वत्र के मनुष्‍य आनंदित हो जाएंगे ।’

– (परात्‍पर गुरु) डॉ. आठवले

प्रीति के अथाह सागर परात्‍पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

१. ‘साधकों को आश्रम उनके घर से भी अच्‍छा लगे’, ऐसे
आश्रम बनाने के संदर्भ में मार्गदर्शन करनेवाले परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी !

‘साधकों के लिए बनाए गए नए वास्‍तुओं की रूपरेखा देखकर परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी कहने लगे,‘‘सनातन के आश्रम में रहकर सैकडों साधक पूर्णकालीन साधना कर रहे हैं ।’ साधकों को ‘आश्रम अपने घर से भी अच्‍छा है’, ऐसा लगे; हम इन आश्रमों को ऐसा बनाएंगे । साधकों के प्रति असीम प्रीति के कारण ‘साधकों को किसी बात का अभाव नहीं होना चाहिए’, इस निदिध्‍यास से युक्‍त परात्‍पर गुरु डॉक्‍टरजी के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता ! आज के कलियुग में भूतल पर ऐसे महान गुरु एकमेवाद्वितीय हैं, इसमें कोई संदेह नहीं !’

– (श्रीचित्‌शक्‍ति) श्रीमती बिंदा सिंगबाळ, रामनाथी, गोवा.

२. ‘साधकों को प्रकृति की सुंदरता देखने को मिले’, ऐसा कहना

‘रामनाथी आश्रम के भोजनकक्ष के बाजू में सीढी है । यह सीढी भवन की एक ओर स्‍थित है । उसे खुली ही रखेंगे ऐसा परात्‍पर गुरुदेवजी ने कहा और बताया कि ‘‘हमारे साधक अलग-अलग स्‍थानों पर अनेक घंटे सेवा करते हैं और केवल भोजन के समय ही भोजनकक्ष में आते हैं, तब आते-जाते उन्‍हें प्रकृति की सुंदरता देखने को मिलनी चाहिए । उससे उन्‍हें अच्‍छा लगेगा ।’’

– श्री. श्रीहरी मामलेदार, फोंडा, गोवा.
संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात

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