रामनाथी, गोवा के सनातन आश्रम में अनेक स्थानों पर अपनेआप बने ॐ का अस्पष्ट दिखाई देना

रामनाथी, गोवा स्थित सनातन आश्रम के विविध स्थानों पर
अपनेआप बने ॐ चिन्हों का अस्पष्ट दिखाई देना और इस अस्पष्टता का कार्य-कारण विचार

रामनाथी स्थित सनातन आश्रम की कोटा पटियों पर
अपनेआप बने अनेक ॐ चिन्ह अगस्त २०१३ से अस्पष्ट दिखाई
देने लगे । २१.४.२०१४ को दो स्थानों पर ॐ दिखाई दिए ।

१. उत्पत्ति, स्थिति और नाश, यह नियम
रामनाथी स्थित सनातन आश्रम में बने ॐ अक्षर के लिए भी लागू होना

तेज (अग्नि) तत्त्व के आधार पर बननेवाले दैवी चिन्हों का कार्य पूरा होने पर, वे अदृश्य हो जाते हैं । यहां उत्पत्ति, स्थिति और नाश का नियम विशिष्ट तत्त्व के आधार पर होनेवाले स्थूल दैवी परिवर्तनों अथवा दैवी चिन्हों को भी लागू होता है । इसलिए, आश्रम की भूमि पर उभरे अनेक ॐ चिन्ह, अगस्त २०१३ से अस्पष्ट होते गए ।

 

२. तेजतत्त्व की तुलना में वायुतत्त्व की मात्रा बढने पर, शुभचिन्हों का अस्पष्ट दिखाई देना

शुभचिन्हों में कार्यरत पंचतत्त्वों में तेजतत्त्व की मात्रा घटने पर तथा वायुतत्त्व बढने पर, शुभचिन्हों का तेजनिर्मित रूप, अस्पष्ट होता है । इसी प्रकार, वायुतत्त्व बढने से सूक्ष्म-स्पर्श का ज्ञान अधिक प्रबल होने लगता है । इससे भी शुभचिन्हों का आकार अस्पष्ट हुआ ।

 

३. स्थूल से सूक्ष्म श्रेष्ठ होता है । इस सिद्धांत के अनुसार
आश्रम में अपनेआप बने ॐ शुभचिन्हों का कार्य
सूक्ष्म रूप में आरंभ होन के कारण उनका स्थूल रूप अस्पष्ट दिखाई देना

स्थूल रूप के ॐ चिन्ह का दर्शन करने से स्थूल रूप में आध्यात्मिक उपचार होता था । अब, काल के अनुसार स्थूल उपचार की अपेक्षा सूक्ष्म रूप के आध्यात्मिक उपाय को अधिक महत्त्व मिला है । इसी प्रकार, अब स्थूल रूप में तेजतत्वके बलपर सगुण रूप में कार्य करने की आवश्यकता पूरी हो गई है । स्थूल से सूक्ष्म श्रेष्ठ है इस सिद्धांत के अनुसार ॐ शुभचिन्हों का कार्य अब स्थूल रूप में समाप्त होकर, सूक्ष्म रूप में आरंभ हो गया है । इसलिए, उनका स्थूल रूप में दिखाई देनेवाला आकार अस्पष्ट हो गया है ।

 

४. शुभचिन्ह का चैतन्य, भू-तत्त्व के सगुण स्तर पर नहीं,
काल के निर्गुण स्तर पर कार्यरत होने के कारण भी उसका आकार अस्पष्ट होना

जब शुभचिन्ह पृथ्वीतत्त्व के स्तर पर सक्रिय रहता है, तब वह बडा और स्पष्ट दिखाई देता है । जब शुभचिन्हों में स्थित चैतन्य काल के स्तर पर कार्य करने लगता है, तब उसकी सुस्पष्टता घटने लगती है । इसी को, शुभचिन्हों में कार्यानुसार सगुण तत्त्व लुप्त होकर निर्गुण तत्त्व प्रबल होना कहते हैं ।

 

५. शुभचिन्हों का आकार स्वरूपी तेजतत्व
समाप्त होकर अस्तित्वजन्य महातेज का कार्य आरंभ होना

तेज का कार्य सगुण रूप के स्तर पर आरंभ रहता है । परंतु, महातेज का कार्य अस्तित्व के स्तर पर आरंभ रहता है । कालानुसार, शुभचिन्हों में स्थित तेज समाप्त होकर उसमें सुप्त अवस्था में रहनेवाला महातेज सक्रिय होता है । इसलिए, अस्तित्वजन्य कार्य आरंभ कर, पहले बडे और स्पष्ट दिखाई देनेवाले शुभचिन्ह, पश्‍चात अस्पष्ट दिखने लगते हैं ।

– कु. मधुरा भोसले, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१६.११.२०१६, रात्री ८.४३)

संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात

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