ऋषि-मुनियों के आश्रम में विचरनेवाले पशु-पक्षियों का स्मरण करवानेवाले सनातन के आश्रम, संत एवं साधक की ओर आकृष्ट होनेवाले पक्षी !

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‘कण्व मुनि एवं उनकी पत्नी नि:संतान थे । इसलिए उन्होंने शकुंतला का पालन-पोषण किया । विश्वामित्र ऋषि एवं मेनका की सुकन्या शकुंतला का बचपन एवं यौवनावस्था कण्व मुनि के आश्रम में ही बीती । वन में स्थित आश्रम के परिसर के पशु-पक्षी एवं वृक्ष-लताएं शकुंतला से बोलती थीं । हिरन, मोर, भारद्वाज एवं राजहंस शकुंतला के आसपास ही रहते और वह उन्हें बडे प्रेम से सहलाया करती । हिरण उसकी साडी का आंचल अपने दांतों में दबाकर खींचते, तो कभी शकुंतला को देखकर हर्षित होकर चौकडी भरकर इधर-उधर दौडते-उछलते । मोर शकुतंला को देखकर अपने पंख फैलाकर नाचने लगते और कोयल मधुर स्वर में गाती । शकुंतला उच्च स्वर्ग लोक की जीव होने से उसके सर्व ओर का वातावरण सात्त्विक एवं सुगंधित था । साथ ही उसमें भाव, प्रेमभाव एवं मन की निर्मलता जैसे दैवीय गुण भी थे । इस कारण पशु-पक्षी, वृक्ष-लताएं उसकी ओर आकर्षित होती थीं । सत्य, त्रेता एवं द्वापर युगों में ऋषि-मुनियों के आश्रम में जो दृश्य देखने के लिए मिलता था, कुछ वैसा ही दृश्य कलियुग के सनातन के आश्रमों, संतों एवं साधकों के संदर्भ में भी देखने के लिए मिलता है । इसके कुछ उदाहरण हम यहां देखेंगे ।

 

१. घोंसले में बैठे समान एक संत की गोद में
और हाथों की अंजुली में बैठा नीलकंठ पक्षी का बच्चा !

एक संत की गोद में बैठकर उनकी ओर देखता हुआ नीलकंठ का बच्चा

१४.९.२०१४ को आश्रम के एक कोने में नीलकंठ (Malechite Kingfisher) जाति के पक्षी का एक बच्चा बैठा था । वह उड नहीं पा रहा था । इसलिए उसे आश्रम में ले आए । आश्रम में जब एक संत ने उसे अपने हाथों में लिया, तब वह पक्षी इतना शांत बैठा था, मानो वह अपनी मां के पंखों तले ही बैठा हो । वह इस प्रकार संत की गोद एवं हथेलियों में १० से १५ मिनट बैठा था, मानो वह अपने घोंसले में ही बैठा हो । तदुपरांत साधकों ने जब उसे हाथ में लिया, तो वह उन्हें अपनी चोंच मारने लगा और थोडी देर पश्चात उड गया ।

 

२. मूल्कि आश्रम में प्रतिदिन सवेरे आनेवाला एवं
संत तथा साधकों के कुछ खिलाने पर ही वहां से जानेवाला मोर !

मूल्कि सेवाकेंद्र परिसर में आए मोर का सद्गुरु सत्यवान कदम के निकट आकर उनकी अंजुली से दाने चुगना

वर्ष २०१३ से मूल्कि आश्रम में प्रतिदिन सवेरे एक मोर आता है । वह सवेरे अल्पाहार के समय आता है । संतों एवं साधकों के खाने के लिए देने पर ही वह वहां से जाता था । कुछ दिनों में आश्रम में उसका आना बढ गया । अब वह सवेरे एवं शाम, दोनों अल्पाहार के समय आने लगा । कई बार खाने के पश्चात भी वह वहीं पर खडा रहता था । तब हमें ध्यान में आया कि उसका पेट नहीं भरा है, इसलिए उसे पुन: खाने के लिए देने पर वह खाकर वहां से चला जाता ।

प्रारंभ में मोर के आश्रम में आने पर उसे खाने के लिए जो भी देते उसे कुछ दूरी पर रखते थे; परंतु अब तो वह हाथ में से लेकर खाता है और आश्रम के परिसर में निर्भयता से घूमता है । वह यदि आश्रम से दूर भी है, तो बुलाने पर वह आ जाता है । इस मोर के पंखों की लंबाई अन्य मोरों की तुलना में अधिक है । ऐसा प्रतीत होता है कि वह अन्य मोरों से कुछ अलग है । अब उस मोर के साथ एक दूसरा मोर भी आता है ।

 

३. सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी के मार्गदर्शन के समय नीलकंठ पक्षी का आना

५.७.२०१५ को मिरज के साधक श्री. गिरीष पुजारी के घर सांगली जिले के साधकों के लिए सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी का मार्गदर्शन आयोजित किया गया था । मार्गदर्शन प्रारंभ होने पर श्री. पुजारी के घर की सीढियों पर नीलकंठ (किंगफिशर) पक्षी आकर बैठ गया । मार्गदर्शन के समय वह शांत बैठा था । ऐसे पक्षी का आना शुभसंकेत होता है ।

 

४. ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त गोवा की
श्रीमती प्रतिमा ठकर के घर आई चिडियों का उनके हाथ से दाना चुगना

मडगांव के साधक श्री. अरविंद ठकर की माताश्री श्रीमती प्रतिमा ठकर के घर में लगे झूले पर बैठने पर वहां १५ से २० चिडियां आती हैं और श्रीमती ठकर के खाने के लिए देने पर वे खाती हैं, अन्यथा घर के अन्य किसी सदस्य के देने पर वे बिना खाए ही उड जाती हैं ।

 

५. साधना आरंभ करने पर डॉ. संजय सामंत के घर की
खिडकी पर और घर में विविध प्रकार के पक्षियों का आना

कुडाळ के डॉ. संजय सामंत के घर की खिडकी की सलाखों पर बैठा नीलकंठ (बाईं ओर के छायाचित्र में) एवं साथ के छायाचित्र में अन्य दो पक्षी

 

६. संतों की वाणी में भजन लगाने पर गरुड पक्षी का
पास आना और विदेशी संगीत लगाने पर वह दूर चला जाना

श्री. शॉन क्लार्क द्वारा ऑस्ट्रेलिया के एक प्राणी संग्रहालय में भजन लगाने पर उसे सुनने के लिए गरुड पक्षियों का उनके निकट आना

केवल भारत में ही नहीं, अपितु विदेश में भी ऐसा ही दृश्य देखने के लिए मिलता है । ७.७.२०१५ को ‘एस.एस.आर.एफ.’ के साधक श्री. शॉन क्लार्क ऑस्ट्रेलिया के एक प्राणी संग्रहालय में गए थे । वहां एक पिंजरे में चार गरुड थे । तब श्री. शॉन ने संतों के भजन लगाए, तो पक्षी उनके पास आने लगे और उनके विदेशी संगीत लगाने पर गरुड दूर चले गए । तत्पश्चात पुन: भजन लगाने पर वे फिर समीप आ गए ।

 

७. सनातन के रामनाथी आश्रम में प.पू. भक्तराज महाराजजी की
पादुकाओं पर एक पक्षी का आकर बैठना और फिर स्वयं ही उड जाना

७ अ. सनातन आश्रम के ध्यानमंदिर में
प.पू. भक्तराज महाराजजी के छायाचित्र की ओर देखता हुआ नारंगी कस्तूरा

सनातन के रामनाथी आश्रम में प.पू. भक्तराज महाराजजी की पादुकाएं रखी हैं ।

२६.१२.२०२० को सायं. ४.५० बजे ‘मालागिर अथवा नारंगी कस्तूरा (Orange Headed Thrush)’ नामक पक्षी उन पादुकाओं पर बैठकर, प.पू. भक्तराज महाराजजी के छायाचित्र को देख रहा था । ध्यानमंदिर में उसका छायाचित्र खींचने पर भी वह वहां से नहीं हिला । आधे घंटे के पश्चात वह अपनेआप उड गया । ऐसा अन्य कुछ पक्षी एवं तितलियों के संदर्भ में भी हुआ है ।’

 

८. पक्षियों का सात्त्विक वातावरण, साधक एवं संत की
ओर आकर्षित होने की आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक कारणमीमांसा

पक्षियों की अपनी कुछ विशेषताएं होती हैं । वनस्पति एवं प्राणियों के साथ-साथ पक्षियों की भी सूक्ष्म ज्ञानेंद्रियां एवं कर्मेंद्रियां अधिक मात्रा में कार्यरत होती हैं, इसलिए वे मनुष्य की तुलना में अधिक सतर्क होते हैं । इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं ।

पक्षियों को भी सूक्ष्म से दिखाई देता है । उनकी आंखों में विद्यमान इन्फ्रारेड एवं अल्ट्रावॉयलेट किरणों के कारण उन्हें रात के अंधेरे में भी वातावरण में कार्यरत कष्टदायक शक्तियां दिखाई देती हैं ।

सूक्ष्म समझने की इस क्षमता के कारण उनका खिंचाव सात्त्विक वनस्पति, मनुष्य एवं सात्त्विक वातावरण की ओर होता है । कलियुग में जन्म लेनेवाले मनुष्यों में से बहुतांश मनुष्यों ने भुवर्लोक एवं पाताल से जन्म लिया है । इसलिए रज-तमप्रधान मनुष्य के आसपास का वायुमंडल भी रज-तमप्रधान होता है; परंतु साधना करनेवाले जीवों के आसपास का वायुमंडल साधना के कारण सत्त्वप्रधान हो जाता है । इसलिए ये प्राणी एवं पक्षी साधकों, संतों और सात्त्विक वातावरण की ओर आकर्षित होते हैं ।

प्राणी एवं पक्षी प्राकृतिक रूप से दुर्बल होने के कारण अन्य प्राणियों से बचने के लिए वे सुरक्षा के विविध मार्ग अपनाते हैं; परंतु साधकों अथवा संतों के संदर्भ में उन्हें निश्चिति होती है कि वे उनके पास सुरक्षित हैं । इसलिए पक्षी साधकों की ओर आकृष्ट होते हैं और निश्चिंत होेकर दीर्घकाल तक उनके साथ रहते हैं ।

– श्रीमती प्रियांका गाडगीळ, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय, डोंबिवली, महाराष्ट्र. (२२.७.२०१५)

वैज्ञानिक दृष्टि से शोध करनेवालों से विनती !

‘सनातन के आश्रम, संत एवं साधकों के घरों में अनेक बुद्धि-अगम्य (बुद्धि से परे अर्थात जिन्हें बुद्धि से नहीं समझ सकते) घटनाएं हो रही हैं । विविध पक्षी आश्रम के साधकों की ओर एवं संतों की ओर आकृष्ट होकर दीर्घकाल तक एक स्थान पर बैठे रहते हैं, उनके हाथ से अन्न ग्रहण करते हैं ।

पक्षी ऐसा कब करते हैं ? इसके पीछे क्या वैज्ञानिक कारण हो सकते हैं ? ये पक्षी किन व्यक्तियों की ओर और क्यों आकृष्ट होते हैं ? इसके पीछे वैज्ञानिक कारण क्या होते हैं ? किन वैज्ञानिक उपकरणों से इस संदर्भ में शोध कर सकेंगे ?’ आदि जानकारी के लिए वैज्ञानिक दृष्टि से शोध करनेवालों की यदि सहायता मिले, तो हम कृतज्ञ रहेंगे ।’

– व्यवस्थापक, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.

संपर्क : श्री. रूपेश रेडकर,

ई-मेल : [email protected]

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