सनातन आश्रम में दत्तमाला के मंत्र जपते समय आश्रम परिसर में हुआ वैशिष्ट्यपूर्ण प्राकृतिक परिवर्तन

रामनाथी आश्रम के ध्यानमंदिर के निकट और यज्ञकुंड से १ २ मीटर दूर गूलर के पौधे पास-पास उगे हैं । (गूलर के पौधे गोलाकार में बडे कर दिखाए गए हैं । )

‘दत्तमाला मंत्र’ का पाठ प्रारंभ करने पर सनातन आश्रम के परिसर में
गूलर के ५८ पौधे उगना और ये पौधे अर्थात प.पू. डॉक्टरजी के आसपास
सुरक्षा-कवच निर्माण होने का द्योतक है, ऐसा योगतज्ञ दादाजी वैशंपायनजी ने बताना

योगतज्ञ दादाजी वैशंपायनजी

‘‘गोवा के रामनाथी स्थित आश्रम में १७ सितंबर २०१५ से प्रतिदिन २० साधक सुबह-सायं डेढ घंटे ‘दत्तमाला मंत्र’ का पाठ कर रहे हैं । यह पाठ प्रारंभ करने पर पठन के स्थान से कुछ दूर गूलर के ५८ पौधे उग आए हैं । यह योगतज्ञ दादाजी को बताया तथा उन्हें पौधों का छायाचित्र भी दिखाया । योगतज्ञ दादाजी को यह सुनकर आनंद हुआ, वे बोले कि यह प.पू. डॉक्टरजी के आसपास सुरक्षा-कवच का वलय उत्पन्न हुआ है ।’’

–  श्री. अतुल पवार, नासिक.

योगतज्ञ दादाजी वशंपायनजी द्वारा बताए अनुसार दत्तमाला मंत्रजप
करने पर गोवा स्थित रामनाथी के सनातन आश्रम में गूलर के पौधे उगने का विश्‍लेषण

 

डॉ. अजय जोशी
डॉ. प्रमोद घोळे

ये वृक्ष हवा में अधिक मात्रा में प्राणवायु (ऑक्सिजन) छोडते हैं । इसलिए पर्यावरण का संतुलन बना रहता है । आयुर्वेद मेें औषधियों की दृष्टि से भी यह अत्यंत उपयोगी और महत्त्वपूर्ण वृक्ष हैं । ऐसे देववृक्षों का अधिक संख्या में सनातन के आश्रम में उगने के कुछ वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण समझ लेते हैं ।

योगतज्ञ दादाजी वैशंपायनजी की आज्ञा के अनुसार रामनाथी स्थित सनातन आश्रम के ध्यानमंदिर में दत्तमाला मंत्रजप का पाठ प्रारंभ हुआ । पाठ प्रारंभ होने के पश्‍चात ध्यानमंदिर के निकट के यज्ञकुंड के परिसर में गूलर के ५८ पौधे अपने आप उग आए हैं । इससे सिद्ध होता है कि मंत्रपाठ के कारण वातावरण सात्त्विक बना है तथा मंत्र के तत्त्वानुसार प्रकृति में भी सकारात्मक परिवर्तन होता है । दत्तमाला मंत्रजप पाठ के पश्‍चात आश्रम परिसर में हुए प्राकृतिक परिवर्तन और दो मास (महीने) दत्तमाला जप करते समय साधक को हुई अनुभूतियां आगे दे रहे हैं ।

संकलनकर्ता का संक्षिप्त परिचय

१. डॉ. अजय गणपतराव जोशी १६ वर्ष पुणे की बीएआइएफ नामक संस्था में कार्यकारी अधिकारी थे । उन्होंने पुणे के वैंट्री बायोलॉजिकल्स में १६ वर्ष उत्पादन व्यवस्थापक (प्रोडक्ट मैनेजर) का कार्य किया है । वर्तमान में वे सनातन के रामनाथी आश्रम के ग्रंथविभाग में पूर्णकालिक सेवा कर रहे हैं ।

२. डॉ. प्रमोद मार्तंड घोळेजी ने पुणे में बी.एस.सी.(कृषि) किया । उन्होंने देहली के इंडियन एग्रिकल्चरल रिसर्च इन्स्टिट्यूट में कृषि कृमिशास्त्र (Agricultural Entomology) में उन्होंने एम.एस.सी. और पी.एच.डी की है । नेशनल बैंक फॉर एग्रिकल्चरल एंड रूलर डेवलपमेंट (NABARD) नामक प्रतिष्ठान में उनका ३० वर्षों का अनुभव है । वर्तमान में वे इस प्रतिष्ठान की चंडीगढ शाखा में चीफ जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं ।

१. दत्तमाला मंत्रजप के पाठ के पश्‍चात आश्रम परिसर में हुआ प्राकृतिक परिवर्तन

ध्यानमंदिर में दत्तमाला मंत्रजप का पाठ प्रारंभ होने के लगभग  ३० दिन पश्‍चात उसके निकट स्थित यज्ञकुंड परिसर में गूलर के ५८ पौधे अपनेआप उगना

दो मास से (महीनों से) ध्यानमंदिर में दत्तमाला मंत्रजप का पाठ प्रारंभ हुआ है । ध्यानमंदिर की दक्षिण दिशा में स्थित खिडकी के पास लगभग (९मी. ९मी.) यज्ञकुंड का परिसर है । उसके आसपास चारों ओर आश्रम के भवन की नींव है । दत्तमाला मंत्रजप प्रारंभ होने के लगभग ३० दिन पश्‍चात यज्ञकुंड के परिसर में लगभग १५ सें.मी. ऊंचाई के गूलर के ५८ पौधे अपनेआप उग आए हैं ।

२. किसी स्थान पर पौधे उगने के संभावित कारण

२ अ. बोआई करने पर पौधा उगना

किसी भूमि पर बीज बोने से उस भूमि पर पौधा उग सकता है अथवा किसी के द्वारा उस भूमि पर वृक्ष का पौधा लगाने पर उस स्थान पर उसकी वृद्धि हो सकती है ।

२ आ. प्राकृतिक गतिविधि से पौधा उगना :

इसके अंतर्गत पक्षी के मल से भूमि में बीजारोपण होकर पौधे उगते हैं अथवा हवा और पानी के वहन से यह बीज भूमि में जाने के कारण पौधा उग सकता है ।

२ इ. वास्तु में स्थित आध्यात्मिक चैतन्य के कारण पौधा उगना

कुछ वृक्ष अतिपवित्र देववृक्ष के रूप में जाने जाते हैं । उनमें बड, पीपल, गूलर का समावेश है । उनकी उत्पत्ति किसी स्थूल कारण से नहीं; अपितु अपनेआप होती है, उदा. नृसिंहवाडी का गूलर वृक्ष, देहू में नांदुरकी (पीपल वृक्ष) इत्यादि । पवित्र वास्तु में ये वृक्ष अपनेआप उगते हैं । इनका कार्य चैतन्य का प्रक्षेपण करना है ।

३. आश्रम परिसर में गूलर के पौधे उगने के पीछे
२ अ तथा २ आ ये कारण नहीं हो सकते, इसका विश्‍लेषण

३ अ. २ अ सूत्रानुसार गूलर के वृक्षों की बोआई नहीं की जाती ।

( संदर्भ  : http://www.sciencebehindindianculture.in/some-trees-are-considered-sacred-why/)

३ आ. आश्रम में स्थित गूलर के पेडों पर फल नहीं आए हैं तथा पक्षियों के मल से भूमि में बीजारोपण होकर गूलर के इतने पौधे उगना असंभव होना ।

२ आ. सूत्रानुसार पहले आश्रम भवन के बाहर और डांबरीकृत मार्ग के निकट की आश्रम की भूमि पर एक भी गूलर का वृक्ष नहीं था । आश्रम का निर्माण कार्य पूर्ण होने के पश्‍चात वर्ष २००९ से वहां गूलर के छोटे-छोटे पौधे दिखाई देने लगे । अब ४ पेडों की ऊंचाई लगभग ३-४ मीटर हो गई है; परंतु उन पर फल नहीं लगे हैं तथा पक्षियों के मल से भूमि में बीजारोपण होकर गूलर के इतने पौधे उगना असंभव है; क्योंकि यज्ञकुंड के आसपास भवन की २-३ माले की दीवार होने के कारण यज्ञकुंड परिसर में पक्षी नहीं आते । उसमें भी एक विशेषता यह है कि ध्यानमंदिर के निकट और यज्ञकुंड से १-२ मीटर की दूरी पर गूलर के पौधे पासपास उगे हैं । इसलिए ये पौधे चैतन्य का स्रोत दर्शाते हैं ।

४. मंत्र के सत्त्वप्रधान स्पंदनों के प्रक्षेपण के
कारण अधिक संख्या में गूलर के पौधे उगने का बोध होना

मासिक पत्रिका ‘मनःशक्ति’ के जून २००० के अंक में पराशक्ति और वनस्पति इस लेख में आगे दिया हुआ सूत्र दिया है ।

डॉ. ग्रैंड कहते हैं कि, मनुष्य के शरीर से किसी प्रकार की ‘क्ष’ नामक शक्ति अथवा प्रेरणा बाहर निकलती होगी, जो प्राणि और वनस्पति को प्रभावित करती है । इसे हम मन की सूक्ष्म अथवा पराशक्ति कहेंगे । विशेषज्ञों का मत है कि कुछ समय उपरांत शोध करने पर परा मानस शक्ति, विचार प्रक्षेपण प्रार्थना और संगीत का वनस्पति पर होनेवाला परिणाम बताया जा सकेगा ।

विशेषज्ञों के इस मतानुसार आश्रम के ध्यानमंदिर में दत्तमाला मंत्रजप का पाठ प्रारंभ होने के पश्‍चात मंत्र के सत्त्वप्रधान स्पंदनों के प्रक्षेपण से यहां अधिक मात्रा में गूलर के पौधे उगे हैं, ऐसा कह सकते हैं ।

५. बड, पीपल, चंपा, तुलसी, बेल, शमी, पारिजातक और गूलर आदि वृक्ष वातावरण
में २४ घंटे प्राणवायु (ऑक्सीजन) छोडते हैं, इसलिए उन्हें देववृक्ष संबोधित किया जाना

वैज्ञानिक दृष्टि से सिद्ध हुआ है कि बड, पीपल, चंपा, तुलसी, बेल, शमी, पारिजातक और गूलर के वृक्ष २४ घंटे वातावरण में प्राणवायु छोडते हैं, जिसकी आवश्यकता प्राणिमात्र को जीवित रहने के लिए पडती है । अन्य वृक्ष वातावरण में कार्बन डाइ ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड इत्यादि प्रदूषित वायु प्रक्षेपित करते हैं । इसलिए बड, पीपल, चंपा, तुलसी, बेल, शमी, पारिजातक और गूलर के वृक्षों को प्राचीन काल से देववृक्ष संबोधित किया जाता है । अन्य सभी पेडों को वृक्ष अथवा वनस्पति कहा जाता है । (संदर्भ : विश्‍वचैतन्य का विज्ञान)

६. साधकों को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर लाभ
मिलने के लिए आश्रम में अधिक मात्रा में गूलर के पौधे उगने का बोध होना

बोविस ने वनस्पतियों के किरणोत्सर्जन की शक्ति तरंगों का अध्ययन किया । उसके आधार पर आगे सायमनटन ने विविध स्थिति के खाद्यपदार्थों की वेवलेंथ गिनीं । इस शोध से उन्होंने निष्कर्ष दिया कि वनस्पतिजन्य अन्न मनुष्य की शक्तितरंगें बढा सकता है और उसके द्वारा तन और मन दोनों का स्वास्थ्य सुधर सकता है । (संदर्भ : मनशक्ति जून २०००)

आश्रम के साधकों को होनेवाली थकान, शारीरिक वेदना जैसी पीडा पर शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर लाभ होने के लिए लगभग १ मास में यज्ञकुंड परिसर में गूलर के ५८ पौधे अपनेआप उगने का भान हुआ ।

७. वनस्पतियों में सूक्ष्म-स्तरीय स्पंदन और तरंगे ग्रहण 
करने की विशेष क्षमता होने के कारण सात्त्विक स्थानों पर वनस्पतियों
की वृद्धि अधिक मात्रा में होती है, यह विविध वैज्ञानिक प्रयोगों से सिद्ध होना

अतिसूक्ष्म तरंगों के कारण वनस्पतियों के अनेक ऊतकों पर (टिश्यूज पर) होनेवाला परिणाम और उनकी कोशिकाआें के आंतरिक आवरण की (सेल मेम्ब्रेन की) क्षमता में होनेवाले परिवर्तन का अध्ययन करनेवाले श्री. जगदीशचंद्र बोस प्रथम वैज्ञानिक थे । वनस्पतियों में भी भावनाएं होती हैं, उन्हें वेदना हो सकती है उन्हें प्रेम समझ में आता है, ऐसी विविध अवधारणाएं उन्होंने प्रस्तुत कीं ।

(संदर्भ : en.wikipedia.org/wiki/Jagdish_Chandra_ Bose.)

उपरोक्त सूत्रों से स्पष्ट होता है कि वनस्पतियां बाह्य वातावरण के संदर्भ में अधिक संवेदनशील होती हैं तथा उनमें संवेदन द्वारा सूक्ष्म-स्तरीय स्पंदन और तरंगें जानने तथा ग्रहण करने की विशेष क्षमता होती है । इसलिए योगतज्ञ दादाजी वैशंपायनजी द्वारा बताए अनुसार गोवा के सनातन आश्रम में दो महीने से ध्यानमंदिर में दत्तमाला मंत्रजप का पाठ चल रहा है । दत्तमाला मंत्रजप प्रारंभ होने के पश्‍चात लगभग ३० दिन उपरांत ध्यानमंदिर की दक्षिण दिशा में स्थित खिडकी के निकट लगभग (९ मीटर ९ मीटर) आकार के यज्ञकुंड के आसपास तथा यज्ञकुंड के परिसर में लगभग १५ सें.मी. ऊंचाई के ५८ पौधे ऊगने का यह कारण होना चाहिए, ऐसा प्रतीत होता है ।

८. दो मास दत्तमाला मंत्रजप करते समय एक साधक
और आश्रमदर्शन के लिए आए हुए साधकों को हुईं अनुभूतियां

अनेक पुराणों में पढने को मिलता है कि ऋषि-मुनि तपस्या अथवा अनुष्ठान करते थे, उस स्थान पर सूखी लकडी पर पत्ते उगना आदि बुद्धि से परे घटनाएं घटी हैं । अध्यात्म एक शास्त्र है । इसलिए अध्यात्म में भाव वहां देव । पंचमहाभूतों द्वारा सजीव-निर्जीव की उत्पत्ति होती है आदि सिद्धांतानुसार पौराणिक काल में हुई अनुभूतियां साधकों को कलियुग में भी हो रही हैं; परंतु उसके लिए ईश्‍वरप्राप्ति का उद्देश्य रखकर भक्तिभाव से साधना करनी पडती है । ईश्‍वर विविध संप्रदायों के अनुसार साधना करनेवालों एवं सनातन के साधकों को ऐसी अनुभूतियां सदैव देते हैं ।

८ अ. मंत्रजप से चैतन्य मिलना

प.पू. गुरुदेव कहते हैं, इस मंत्रजप से समष्टि को और प्रसार में चैतन्य मिलता है । उनके बताए अनुसार ही साधकों को इस मंत्रजप से चैतन्य मिल रहा है, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ ।

८ आ. मंत्रजप करते समय नींद अथवा झपकी न आना

अन्य समय मुझे नामजप करते समय नींद अथवा झपकी आती है; परंतु दत्तमाला जप करते समय नींद अथवा झपकी नहीं आती । यह मंत्रजप एकाग्रता से अखंड होता है । – एक साधक

८ इ. आश्रमदर्शन हेतु आनेवाले अनेक जिज्ञासुआें को होनेवाली अनुभूति : दत्तमाला मंत्रजप सुनने पर मन प्रसन्न होने का बोध हुआ

आश्रमदर्शन हेतु आनेवाले अतिथि मंत्रजप के चलते ध्यानमंदिर में आते हैं । तब उन्हें भी लगता है कि मंत्रजप शांति से सुनना चाहिए तथा मंत्रजप सुनने पर मन प्रसन्न होता है । ऐसी अनुभूति अनेक जिज्ञासुआें ने बताई है । – डॉ. अजय जोशी, सनातन आश्रम, रामनाथी गोवा एवं डॉ. प्रमोद घोळे, चीफ जनरल मैनेजर नाबॉर्ड (१५.११.२०१५)

वनस्पतिशास्त्र के विशेषज्ञ और अध्ययनकर्ता तथा इस विषय में
शिक्षा लेनेवाले विद्यार्थियों सेे वैज्ञानिक दृष्टि से शोध करने की विनती !

योगतज्ञ दादाजी वैशंपायन ने रामनाथी गोवा के सनातन आश्रम में दत्तमाला मंत्रजप का पठन करने हेतु कहा है । इससे आश्रम परिसर में प्राकृतिक परिवर्तन हो रहे हैं ।

१. आश्रम में दत्तमाला मंत्रजप प्रारंभ करने के उपरांत गूलर के पौधे उगने का वैज्ञानिक कारण क्या है ?

२. अधिक संख्या में गूलर के पौधे ही उगने का क्या कारण है ? इस स्थान पर अन्य पौधे क्यों नहीं उगे ?

३. पाठ प्रारंभ होने के पश्‍चात ध्यानमंदिर के निकट यज्ञकुंड के परिसर में गूलर के ५८ पौधे अपनेआप उग आए । आश्रम में अन्य स्थानों पर ये पौधे क्यों नहीं उगे ? ध्यानमंदिर के निकट यज्ञकुंड के परिसर, वातावरण, अथवा मिट्टी में क्या परिवर्तन हुए, जिनसे ये पौधे उगे ?

४. गूलर के इन पौधों का शोध किस वैज्ञानिक उपकरण से करें ? इस संदर्भ में वैज्ञानिक दृष्टि से शोध करनेवालों की सहायता मिले, तो हम कृतज्ञ रहेंगे ।  व्यवस्थापक, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (संपर्क : श्री रूपेश रेडकर, इमेल : [email protected])

संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात

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