आत्महत्या करना महापाप होने से साधना करना ही सभी समस्याओं का समाधान !

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६.५.२०१५ को दैनिक ‘सनातन प्रभात’में गोवा के स्कूल में पढनेवाले विद्यार्थियों ने शिक्षा में असफल होने से आत्महत्या करने का समाचार पढा । ‘शिक्षा में असफल होने से निराशाग्रस्त विद्यार्थियों की आत्महत्या करने की संख्या बढ रही है’, ऐसा भी उसमें लिखा था । यह सब पढते समय मुझे दुख हुआ और लगा कि अपने विद्यार्थी मित्रों को कुछ बताऊं । यदि आगे दिए सूत्रों के अनुसार विद्यार्थियों ने प्रयत्न किए तो वे निश्चित ही आत्महत्या से परावृत्त हो सकेंगे ।

कु. सोनम फणसेकर

 

१. निरंतर भगवान से अनुसंधान होने से छत्रपति शिवाजी महाराज यशस्वी हुए और हिंदवी स्वराज्य की स्थापना कर सके !

‘मित्रो, मनुष्यजन्म ईश्वर द्वारा हमें प्रदान की गई अमूल्य देन है । जब शिवाजी महाराज आपकी ही आयु के थे, तब उन्होंने हिंदवी स्वराज्य स्थापित करने की शपथ ली । उन्होंने छोटी आयु में ही युद्ध का आरंभ किया । उन पर भी असफलता के कठिन प्रसंग आए; परंतु वे कभी निराश नहीं हुए । अफजलखान का वध करना, शाहिस्तेखान की उंगलियां काटना, औरंगजेब की कैद से भाग जाना जैसे कठिन एवं असंभव लगनेवाले प्रसंगों में भी वे सफल हुए । ऐसा क्यों ? कारण एक ही है और वह है प्रत्येक प्रसंग में छत्रपति शिवाजी महाराजजी का भगवान से अनुसंधान था । वे निरंतर भगवान का जाप करते; इसीलिए वे विशाल मुगल सेना से लढते हुए हिंदवी स्वराज्य की स्थापना कर सके । वे हमारे आदर्श हैं ।

 

२. जहां प्रयत्न होते हैं, वहां यश-अपयश, दोनों बातें होती हैं !

मित्रों, आप देश की भावी पीढी हैं । इसलिए आपको साहसी बनना होगा । छोटी-छोटी बातों से हमें दुर्बल नहीं होना है । ‘मेरी शिक्षा, मेरी पढाई, मेरा भविष्य’ केवल इतना ही हमारा जीवन नहीं है, अपितु हमारे राष्ट्र एवं धर्म के प्रति कुछ तो कर्तव्य हैं’, इसका सदैव भान रहे । हमें सतत प्रयत्नरत ही रहना है । जहां प्रयत्न होते हैं, वहां सफलता-असफलता होती ही है ।

२ अ. प्रयत्न असफल होने पर इन बातों को ध्यान में रखें !

१. जीवन समाप्त करना अर्थात कायरता

पढाई में असफल हो गए, तब भी उसे मन से स्वीकार करें । असफलता मिली; इसलिए जीवन समाप्त करना कायरता है ।

२. स्वयं की तुलना स्वयं से ही करें

अपने किसी भी मित्र अथवा उन्हें मिले हुए गुणों (अंकों) की स्वयं से तुलना न करें । अपनी तुलना स्वयं से ही करें और चिंतन करें कि ‘मैं कहां कम पड रहा हूं’, और उन कमियों को दूर करने का प्रयत्न करें । इससे मन निराश नहीं होगा ।

३. मन सकारात्मक रखें

‘अब तक मुझे असफलता मिली; परंतु अब से मैं जी तोड प्रयत्न करूंगा’, ऐसे मन को दृढता से बताएं ।

४. भगवान को अपना मित्र बनाएं

प्रत्येक प्रसंग में भगवान की सहायता लेने की मन को आदत डालें । ‘भगवान हमारा मित्र है’, इस भाव से उन्हें अपने मन की सभी बातें बताएं और पढाई में आनेवाली अडचनें भी बताएं ।

५. भग‍वान को मन से प्रार्थना करें !

परीक्षा देने के पश्चात भगवान को मन से प्रार्थना करें, ‘हे भगवन, अब आप जो भी परीक्षा फल देंगे, वह मैं मन से और आनंद से स्वीकार कर सकू । इसके लिए आप ही मुझे शक्ति दें । मुझे सकारात्मक रखें ।’

 

३. मन में आत्महत्या के विचार आ रहे हैं, यह ध्यान में आते ही नीचे दिए अनुसार प्रयत्न करें !

३ अ. नामजप गति से करें ! : विचारों की मात्रा बढ जाने पर, संभव हो तो ऊंचे स्वर में और यदि संभव न हो तो मन ही मन में जैसे हम पहाडे (टेबल्स) याद करते हैं, उसी गति से भगवान के नाम का जाप करना आरंभ करें, उदा. श्रीकृष्ण के नाम का जाप करना हो, तो ‘कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण’ और श्रीराम का जाप करना हो, तो ‘राम, राम, राम’ यह नामजप मन के विचार पूर्णरूप से नष्ट होने तक करें ।

३ आ. एक स्थान पर बैठकर भगवान से प्रार्थना करें ! : तदुपरांत १० मिन‌ट तक एक स्थान पर बैठें । ईश्वर से लगातार १५ बार यह प्रार्थना करें, ‘हे ईश्वर, मेरे मन के ये विचार आप समूल नष्ट करें । मुझे इस नकारात्मक स्थिति से बाहर निकालें । मेरी रक्षा करें ।’

३ इ. दिन में ५० बार मन को बताएं, ‘मुझे भरपूर जीना है । मैं अभी से जी तोड प्रयत्न करूंगा । भगवान मेरी सहायता करेंगे । भगवान की सहायता से कुछ भी असंभव नहीं । इसलिए मुझे सफलता अवश्य मिलेगी ।’

३ ई. मन पर तनाव होने से अभिभावकों अथवा निकटतम मित्र से उस विषय में मन खोलकर बातें करें । उस पर तुरंत ही उपाययोजना निकालकर उससे बाहर आने का प्रयत्न करें ।

– कु. सोनम फणसेकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.

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