कुदृष्टि उतारने के लिए नींबू प्रयोग करने की पद्धति
नींबू से कुदृष्टि उतारते समय उसके सूक्ष्म रजोगुणी वायु सदृश स्पंदनों को गति प्राप्त होने से, ये स्पंदन व्यक्ति पर आए रज-तमात्मक आवरण को अपनी ओर आकर्षित कर उन्हें घनीभूत करके रखते हैं ।
नींबू से कुदृष्टि उतारते समय उसके सूक्ष्म रजोगुणी वायु सदृश स्पंदनों को गति प्राप्त होने से, ये स्पंदन व्यक्ति पर आए रज-तमात्मक आवरण को अपनी ओर आकर्षित कर उन्हें घनीभूत करके रखते हैं ।
कुदृष्टि यथासंभव सायं समय उतारें । कष्ट दूर करने के लिए वह समय अधिक अच्छा रहता है; क्योंकि उस समय अनिष्ट शक्ति का सहजता से प्रकटीकरण होता है तथा वह पीडा कुदृष्टि उतारने हेतु उपयोग किए जानेवाले घटक में खींची जा सकती है ।
नमक और राई काली शक्ति के आवरण को खींच लेते हैं । तदुपरांत अग्नि के स्पर्श से उस आवरण को तुरंत त्याग देते हैं ।
कुदृष्टि उतारने से जीव की देह पर आया रज-तमात्मक आवरण समय पर दूर होता है । इससे उसकी मनःशक्ति सबल होकर कार्यकरने लगती है ।
कुदृष्टि लगना, इस प्रकार में जिस जीव को कुदृष्टि लगी हो, उसके सर्व ओर रज-तमात्मक इच्छाधारी स्पंदनों का वातावरण बनाया जाता है ।
‘कुदृष्टि लगना, इस प्रकारमें जिस जीव को कुदृष्टि लगी हो, उसके सर्व ओर रज-तमात्मक इच्छाधारी स्पंदनों का वातावरण बनाया जाता है ।
श्राद्ध के भोजन में उपर्युक्त पदार्थों का समावेश करने से पितरों को नीचे की योनियों में स्थान मिलता है; क्योंकि भारी तरंगों का गुणधर्म सदैव अधोदिशा में जाना होता है ।’
इंदौर (मध्यप्रदेश) — श्री गणेशोत्सव निमित्त सनातन संस्था तथा हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा श्री साई रेसीडन्सी इस संकुल में प्रवचन आयोजित
किया गया ..
‘ब्राह्मणों को परोसा गया अन्न पितरों तक कैसे पहुंचता है ?’ ‘श्राद्ध में पितरों को अर्पित अन्न उन्हें कितने समय तक पर्याप्त होता है ?’
हमारी हिन्दू संस्कति में मातृ-पितृ पूजन का बडा महत्त्व है । पिछली दो पीढियों का भी स्मरण रखें । पितृवर्ग जिस लोक में रहते हैं, उसे पितरों का विश्व अथवा पितृलोक कहते हैं ।