‘सेंद्रिय खेती’ अर्थात ‘प्राकृतिक खेती’ नहीं !

‘कोकोपीट’का उपयोग, हाट से सेंद्रिय खाद खरीदकर लाना एवं पौधों को डालना, कंपोस्ट खाद बनाना, ये बातें सेंद्रिय खेती में आती हैं; प्राकृतिक खेती में नहीं ।

प्राकृतिक खेती में हाट से खरीदी हुई खाद का उपयोग न करते हुए भी अधिक उत्पन्न प्राप्त करने का शास्त्र

‘पौधों की बढत के लिए आवश्यक खनिज द्रव्य मिट्टी में होते हैं; परंतु पौधों की जडें द्रव्य सीधे ग्रहण नहीं कर सकतीं । मिट्टी के खनिज द्रव्य पौधों द्वारा अवशोषित होने के लिए पौधों के लिए उपयुक्त सूक्ष्म जीवाणुओं की आवश्यकता होती है ।

आपातकाल की तैयारी के लिए अपने घर में हरे शाक एवं औषधीय वनस्पतियों की बागवानी करें !

भीषण आपातकाल की तैयारी के लिए प्रत्येक जन अपने घर के समीप हरे शाक एवं औषधीय वनस्पतियों की प्राकृतिक पद्धति से बागवानी करे ।

पेड-पौधों को अत्यधिक पानी डालना टालें !

‘केवल पानी देने का समय हो गया; इसलिए पेड-पौधों को प्रतिदिन पानी डाल दिया, ऐसा न करते हुए पेड-पौधों एवं मिट्टी का निरीक्षण कर आवश्यकता होने पर ही पानी दें ।

शाक-सब्जियों (भाजी-तरकारी) को धूप की आवश्यकता

अनेक बार सभी को, विशेषरूप से नए बागकर्मियों को कुछ प्रश्न हमेशा होते हैं कि किन भाजी-तरकारियों को कितनी धूप लगती है ? तरकारी को बोने से लेकर उसे काटने तक, इस संपूर्ण जीवनचक्र में उसे धूप की कितनी आवश्यकता होती है एवं हमारे पास जो उपलब्ध धूप है, फिर वह सीधे धूप हो अथवा सूर्यप्रकाश, हम कौन-कौनसी शाक-तरकारी लगा सकते हैं ?’ इन प्रश्नों के उत्तर इस लेख में हैं ।

भारतीय कृषि परंपरा का महत्त्व एवं इस परंपरा को टिकाकर रखने की आवश्यकता

पुरातन भारतीय कृषि परंपरा प्रकृति के लिए अनुकूल थी । स्थानीय परिस्थिति के अनुरूप देशी बीजों का उपयोग करना, मिट्टी की उर्वरता टिकाए रखना एवं खेत के जीवाणु, कीटक एवं फसलों की जैवविविधता (बायोडायवर्सिटी) की ठोस नींव पर यह व्यवस्था खडी थी ।

घर में उपलब्ध सामग्री से सहजता से होनेवाला शाक-तरकारी का रोपण

हाट (बाजार से) लाया गया पालक अथवा पुदीना, कई बार उनमें कुछ जडसहित होते हैं जिसे मिट्टी में खोंसने पर उनसे नए पौधे आते हैं । अदरक, प्याज, आलू, शकरकंद, सूरन, अरबी जिनमें अंकुर आ गए, उनसे नया रोपण करना सहज संभव है ।’

‘हैंड, फूट एंड माऊथ’ (हाथ, पैर एवं मुंह) के संक्रमण रोग पर आयुर्वेद के प्राथमिक उपचार

हाथ-पैरों पर फुंसिया आना, ज्वर एवं ज्वर जाने के पश्चात मुंह में वेदनादायक छाले आना, इन लक्षणों के संक्रमक रोग को आधुनिक वैद्यकीयशास्त्र में ‘हैंड, फुट एवं माऊथ’ रोग कहते हैं । इस रोग पर आयुर्वेद में प्राथमिक उपचार यहां दे रहे हैं ।

आयुर्वेद के प्राथमिक उपचार

‘बद्धकोष्ठता के लिए ‘गंधर्व हरीतकी वटी’ की २ से ४ गोलियां रात में सोने से पहले गुनगुने पानी के साथ लें । इसके साथ ही भूख न लगना, भोजन न कर पाना, अपचन होना, पेट में वायु (गैस) होना, ऐसे लक्षण होने पर ‘लशुनादी वटी’ की १ – २ गोलियां दोनों बार के भोजन के १५ मिनट पहले चुभलाकर खाएं ।