रासायनिक, जैविक और प्राकृतिक कृषि में अंतर !
आपातकाल में रासायनिक अथवा जैविक खाद उपलब्ध होना कठिन है । प्राकृतिक कृषि पूर्णतः स्वावलंबी कृषि है तथा आपातकाल के लिए, साथ ही सदैव के लिए भी अत्यधिक उपयुक्त है ।
आपातकाल में रासायनिक अथवा जैविक खाद उपलब्ध होना कठिन है । प्राकृतिक कृषि पूर्णतः स्वावलंबी कृषि है तथा आपातकाल के लिए, साथ ही सदैव के लिए भी अत्यधिक उपयुक्त है ।
जैविक अस्त्रों द्वारा होनेवाले आक्रमण – ‘जैविक अस्त्र’ क्या है ?
मनुष्य, पशु तथा फसल पर बीमारी फैलाने हेतु उपयोग में लाए जानेवाले सूक्ष्म जीवाणुओं अथवा विषाणुओं को ‘जैविक अस्त्र’ कहते हैं । पशुओं का संक्रामक रोग (एंथ्रेक्स), ग्रंथियों का रोग (ग्लैंडर्स), एक दिन छोडकर आनेवाला ज्वर (ब्रुसेलोसिस), हैजा (कॉलरा), ‘प्लेग’, ‘मेलियोआइडोसिस’ इत्यादि रोगों के जीवाणुओं एवं विषाणुओं का उपयोग ‘जैविक अस्त्र’ के रूप में किया जाता है ।
‘अणुबम’ का आक्रमण होने के पूर्व अपनी रक्षा के लिए की जानेवाली उपाययोजना
२०.९.२०१५ को नए संविधान के अनुसार नेपाल को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र्र घोषित किया गया । नया संविधान स्वीकारने के पश्चात राजकीय स्तर पर बहुत उतार-चढाव हुए और अब भी हो रहे हैं । अनाज और औषधियों से लेकर औद्योगिक साहित्य तक नेपाल भारत पर ही निर्भर है ।
पुणे के श्री. अरविंद जोशी नामक एक सद्गृहस्थ हैं जो विविध भारतीय उपचारपद्धतियों का अभ्यास करनेवाले हैं । उन्होंने अपनी शोध वृत्ति से इन फूलों का औषधीय गुणधर्म ढूंढा और अनेकों को उससे लाभ हुआ । उनके पास इसके अनेक उदाहरण हैं । उनका एक लेख पढकर मैंने भी कुछ रोगियों को ये फूल दिए, तो ध्यान में आया कि उन्हें भी बहुत लाभ हुआ है ।
आजकल बाजार में मिलनेवाले हरी सब्जियां, फल इत्यादि पर हानिकारक रसायनों के फव्वारे किए जाते हैं । ऐसी सब्जियां एवं फल खाने से प्रतिदिन विषैले पदार्थ हमारे पेट में जाते हैं । इससे रोग होते हैं । साधना के लिए शरीर स्वस्थ रखना आवश्यक है ।
प्रत्येक अभिभावक के मन में छोटे बच्चों की रोगप्रतिरोधक शक्ति बढाने के विषय में जिज्ञासा रहती है । रोगप्रतिरोधक शक्ति अच्छी रहने के लिए शरीर का बल और पाचनशक्ति उत्तम होना आवश्यक है ।
देवपूजा के कारण अपनी सात्त्विकता बढती है, अपने मन में भक्तिभाव का केंद्र निर्माण होता है, हम पर देवताओं की कृपादृष्टि होती है एवं घर में वातावरण सात्त्विक एवं प्रसन्न बनता है । जो भगवान को प्रतिदिन भक्तिभाव से पूजता है, वह भगवान को प्रिय होता है ।
लकडी के कोल्हू का तेल अत्यंत शुद्ध, रसायनविरहित एवं आरोग्य के लिए हितकारक होता है, इसके साथ ही वह प्राकृतिक एवं शास्त्रोक्त पद्धति से निर्माण किया जाता है । उसे शुद्ध तेल की गंध आती है और वह चिपचिपा भी होता है; कारण उसमें ४-५ प्रकार के जीवनसत्त्व होते हैं । लकडी के कोल्हू से तेल निकालने में अत्यल्प घर्षण होने से उसमें से एक भी प्राकृतिक घटक नष्ट नहीं होता ।
बाग अथवा वृक्षारोपण करने के लिए शुभ नक्षत्र,जलदेवता द्वारा सींचित इस भूमि से फल-फूलों से समृद्ध वनस्पति उगने दें,