‘हिन्दू (ईश्वरीय) राष्ट्र की शिक्षा प्रणाली में प्रत्येक विषय के अध्ययन साथ ही ‘ईश्वरप्राप्ति करना भी सिखाया जाएगा ।’

‘कुछ लोग प्रश्न करते हैं कि हिन्दू (ईश्‍वरीय) राष्ट्र की शिक्षा प्रणाली कैसी होगी ?’, उसका उत्तर है , ‘नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालयों में जिस प्रकार १४ विद्या और ६४ कला सिखाते थे, उस प्रकार की शिक्षा दी जाएगी; परंतु उन माध्यमों से ईश्‍वरप्राप्ति करना भी सिखाया जाएगा ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होने के लिए हमें भक्त बनना आवश्यक है !

‘श्रीराम स्वयं ईश्‍वर का अवतार थे । पांडवों के समय पूर्णावतार श्रीकृष्ण थे । छत्रपति शिवाजी महाराजजी के समय समर्थ रामदासस्वामी थे । इससे यह ध्यान में आएगा कि ईश्‍वरीय राज्य की स्थापना ईश्‍वर स्वयं करते हैं अथवा संतों से करवा लेते हैं । अब हिन्दू राष्ट्र की स्थापना ईश्‍वर करें अथवा संतों द्वारा करवा … Read more

पाश्चात्य शिक्षा की सीमा ।

‘पाश्चात्य शिक्षा किसी भी समस्या के मूल कारण तक नहीं जाती, उदा. प्रारब्ध, बुरी शक्ति, कालमहात्म्य । उनके उपाय उसी प्रकार हैं जैसे किसी क्षयरोगी को क्षयरोग के कीटाणु मारने की औषधि न देकर केवल खांसी की औषधि देना । -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

परमात्मा से एकरूपता ।

‘एक बूंद पानी समुद्र में डालने पर, वह समुद्र से एकरूप हो जाता है । वैसे ही राष्ट्रभक्त राष्ट्र से एकरूप हो जाता है और साधक परमात्मा से एकरूप होता है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

ईश्वर के राज्य का कल्पनातीतपन ।

”अनेक गुन्हा करके आत्महत्या करनेवाले को सरकार कैसे सजा देगी ? केवल ईश्‍वर दे सकते हैं । इससे ध्यान में आता है कि ईश्‍वर का राज्य कितना कल्पनातीत है । इसलिए ईश्वरीय राज्य की स्थापना हेतु प्रयत्नरत रहें । -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

हिंदुओं की और भारत की दयनीय स्थिति होने का कारण 

‘मंदिरों में देवता के कर्मचारी दर्शनार्थियों को दर्शन देने के अतिरिक्त और क्या करते हैं ? उन्होंने दर्शनार्थियों को धर्मशिक्षा दी होती, उन्हें साधना सिखाई होती, तो हिंदुओं की और भारत की ऐसी दयनीय स्थिति नहीं हुई होती ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

ईश्वर की प्राप्ति के लिए जीवन समर्पण !

‘नौकरी में थोडे से वेतन के लिए ७ – ८ घंटे नौकरी करनी पड़ती है, तो सर्वज्ञ, सर्वव्यापी और सर्व सामर्थ्यवान ईश्‍वर की प्राप्ति के लिए क्या जीवन नहीं देना चाहिए ?’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

सत्ययुग में सभी आनंदी थे।

‘सत्ययुग में नियतकालिक, दूरचित्रवाहिनियां, जालस्थल आदि की आवश्यकता ही नहीं थी; क्योंकि बुरे समाचार नहीं होते थे और सभी ईश्वर के आंतरिक सान्निध्य में होने के कारण आनंदी थे।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

‘भक्तीयोग का महत्त्व’

‘कर्मयोग, ज्ञानयोग, हठयोग आदि योगों में ईश्वर का विचार न होने के कारण ईश्वर से कुछ मांग नहीं पाते; परंतु भक्तियोग का साधक ईश्वर से मांग सकता है । ऐसा है तब भी अन्य योग के साधकों को ईश्वर ने सुविधा उपलब्ध करवाई है । यदि गुरु हों, तो वे गुरू से सब कुछ मांग … Read more

‘राष्ट्र-धर्म के लिए आध्यात्मिक स्तर पर भी कार्य करना अत्यावश्यक !’

शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक स्तरों पर राष्ट्र-धर्म के लिए कार्य कर कुछ साध्य नहीं होता, यह विगत ७२ वर्षों में अनेक बार सिद्ध हुआ है । अब उसके साथ ही आध्यात्मिक स्तर पर भी कार्य करना अत्यावश्यक है, यह सभी को ध्यान में रखना आवश्यक है । -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले