सूक्ष्मातिसूक्ष्म विश्व साधना से समझ में आता है ।

‘कीटाणु आँखों से दिखाई नहीं देते; परंतु सूक्ष्मदर्शी यंत्र से दिखाई देते हैं । उसी प्रकार जो सूक्ष्मदर्शी यंत्र से दिखाई नहीं देता, ऐसे सूक्ष्मातिसूक्ष्म विश्व साधना से समझ में आता है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

प्रत्येक पीढी के कर्तव्य !

‘प्रत्येक पीढी अगली पीढ़ी को समाज, राष्ट्र और धर्म के संदर्भ में अपेक्षा से देखती है । इसके स्थान पर प्रत्येक पीढी को ‘हम क्या कर सकते हैं ?’, ऐसे विचार कर ऐसा कार्य करना चाहिए कि अगली पीढ़ी को उसके संदर्भ में कुछ भी करने की आवश्यकता ही न हो और इस कारण वे … Read more

हिन्दू संस्कृति और पश्चिमी संस्कृति में फर्क

‘पश्‍चिमी संस्‍कृति शरीर, मन व बुद्धि को सुख देने हेतु प्रयत्नशील रहती है; जबकि हिन्‍दू संस्‍कृति ईश्‍वरप्राप्‍ति का मार्ग दिखाती है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

ईश्वर सर्वत्र हैं

‘हिन्‍दू धर्म की सीख है कि ‘ईश्‍वर सर्वत्र हैं, सभी में हैैं’ । इसीलिए हिन्‍दुओं को अन्‍य पंथियों का द्वेष करना नहीं सिखाया जाता ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

‘संत’ पद ईश्वर के विश्व में सर्वाधिक महत्त्व का है !

‘भारत में ‘भारतरत्न’ सर्वाेच्च पद है । संसार में ‘नोबेल प्राईज’ सर्वाेच्च पद है, और सनातन में उद्घोषित किया जानेवाला ‘जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति’ और ‘संत’ पद ईश्वर के विश्व में सर्वाधिक महत्त्व का है !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

‘बुद्धिप्रमाणवादियों का विचार 

‘बुद्धिप्रमाणवादियों का यह कहना कि बुद्धि के परे ईश्वर नहीं होते हैं’, यह नर्सरी के बच्चों का डॉक्टर, अधिवक्ता इत्यादि नहीं होते हैं’, ऐसे बोलने जैसा है !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

विज्ञान का मूल्य

मानव को मानवता न सिखानेवाला, उसके विपरीत विध्वंसक अस्त्र, शस्त्र देनेवाला विज्ञान का मूल्य शून्य है ! – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

चिरंतन आनंद की सीख

‘राजकीय पक्ष ‘ये देंगे, वो देंगे’, ऐसे कहकर जनता को स्वार्थी और अंत में उन्हें दुःखी बना देते हैं । इसके विपरीत साधना हमें धीरे धीरे सर्वस्व का त्याग करना सीखाकर चिरंतन आनंद की, ईश्‍वर की प्राप्ति कैसे करनी है, यह सिखाता है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

साधना के संग्रह की आवश्यकता

‘जिस प्रकार अडचन के समय सहायता मिलने के लिए हम अधिकोष में (बैंक में ) पैसे रखते हैं । उसी प्रकार संकटकाल में हमें सहायता मिल सके, इस हेतु हमारे पास साधना का संग्रह होना आवश्यक है । इससे हमें संकट के समय सहायता मिलती है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

असली सुख का मार्ग

‘असली सुख केवल साधना से ही मिलता है, भ्रष्ट मार्ग से कमाए हुए धन से नहीं !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले