परात्पर गुरु डॉक्टरजी की संक्षिप्त जानकारी तथा उनके द्वारा स्थापित या उनकी प्रेरणा से स्थापित संस्था, संगठन आदि के कार्य की जानकारी दी है । एक व्यक्ति अल्पावधि में केवल राष्ट्र और धर्म संबंधी ही नहीं, अपितु सूक्ष्म-जगत के संबंध में भी इतना सर्वव्यापी कार्य करे, यह असंभव ही है । इससे परात्पर गुरु डॉक्टरजी की असामान्यता व आध्यात्मिक क्षेत्र में उनका सर्वमान्य अधिकार भी ध्यान में आएगा । इस जानकारी से पाठकों में अध्यात्म समझने की जिज्ञासा निर्माण होगी और वे साधना करने हेतु प्रवृत्त होंगे ।
१. अंतरराष्ट्रीय ख्याति के सम्मोहन-उपचार विशेषज्ञ
१ अ. वर्ष १९७१ से वर्ष १९७८ की अवधि में ब्रिटेन में सम्मोहन-उपचार पद्धति के विषय में सफल शोधकार्य
१ अ १. सम्मोहन-उपचारों में अभिनव शोधकार्य
१ आ. वर्ष १९८२ में ‘भारतीय वैद्यकीय सम्मोहन और शोध संस्था’ की स्थापना
१ इ. सम्मोहनशास्त्र और सम्मोहन-उपचार पर ६ ग्रंथ प्रकाशित !
२. साधना के विषय में मार्गदर्शन हेतु
‘सनातन भारतीय संस्कृति संस्था’ की स्थापना (१.८.१९९१)
२ अ. वर्ष १९९५ तक महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक राज्यों में अध्यात्म विषय पर अभ्यासवर्ग लेना, गुरुपूर्णिमा महोत्सव आयोजित करना इत्यादि
२ आ. वर्ष १९९६ से वर्ष १९९८ तक महाराष्ट्र, गोवा तथा कर्नाटक राज्यों में ब्राह्मतेज और क्षात्रतेज जागृत करनेवाली सैकडों सार्वजनिक सभाएं करना
३. ईश्वरप्राप्ति शीघ्र होने के लिए ‘गुरुकृपायोग’ नामक साधनामार्ग की निर्मिति
३. अ. इसमें, सांप्रदायिक साधना की भांति सबको एक ही साधना न बताकर, ‘जितने व्यक्ति, उतनी प्रकृतियां और उतने साधनामार्ग’ इस सिद्धांत के अनुसार विविध साधना बताई जाती है ।
३. आ. अष्टांगसाधना (स्वभावदोष-निर्मूलन, अहं-निर्मूलन, नामजप, सत्संग, सत्सेवा, भावजागृति के प्रयत्न, सत्कार्य के लिए त्याग और प्रीति), इस साधनामार्ग की प्रमुख विशेषता है ।
४. साधना, राष्ट्ररक्षा, धर्मजागृति आदि
विविध विषयों पर विपुल ग्रंथ-निर्मिति एवं ग्रंथ-प्रकाशन
अध्यात्म, धर्म, देवता, धर्मजागृति, राष्ट्ररक्षा आदि विषयों पर मई २०२० तक सनातन के ३२३ ग्रंथों की मराठी, हिन्दी, अंग्रेजी, गुजराती, कन्नड, तमिल, तेलुगु, मलयालम, बंगला, ओडिया, असमिया, गुरुमुखी, सर्बियन, जर्मन, स्पैनिश, फ्रांसीसी और नेपाली इन १७ भाषाओं में ७९ लाख ८१ सहस्त्र प्रतियां प्रकाशित हुई हैं ।
४ अ. सनातन के ग्रंथों की कुछ प्रमुख विशेषताएं
१. कालानुसार आवश्यक उचित साधना की शिक्षा !
२. साधना में आनेवाली समस्याएं दूर कर साधना को दिशा देनेवाला मार्गदर्शन !
३. अध्यात्म के प्रत्येक कृत्य के ‘क्यों एवं कैसे’ का शास्त्रीय उत्तर !
४. विज्ञानयुग के पाठकों के लिए आधुनिक वैज्ञानिक (उदा. सारणी, प्रतिशत) भाषाशैली में ज्ञान !
आजकल की पीढी को वैज्ञानिक भाषा में बताया गया आध्यात्मिक विषय शीघ्र समझ में आता है । इसलिए, परात्पर गुरु डॉक्टरजी शास्त्रीय भाषा में ग्रंथ लिखते हैं । उनके ग्रंथों में विषय ठीक से समझने के लिए चित्र, सारणी, प्रतिशत, सूक्ष्म-संबंधी प्रयोग आदि होते हैं तथा लेखन सूत्रबद्ध होता है ।
४ अ. प्रतिशत का उदाहरण : गुरुकृपायोग में बताए अष्टांग-साधना के घटकों में व्यष्टि और समष्टि साधना का महत्त्व
४ आ. सूत्रबद्ध लेखन
‘सनातन का प्रत्येक ग्रंथ अध्यात्म विश्वविद्यालय की पाठ्यपुस्तक है; इसलिए ग्रंथ में लेखन १, १ अ, १ अ १ इस पद्धति से सूत्रबद्ध होता है ।
५. सैद्धांतिक विवेचन ही नहीं, साधना जीवन में उतारने संबंधी मार्गदर्शन !
६. व्यक्ति के साधना करने पर उसके अच्छे परिणाम; अंग्रेजी अक्षर नहीं, देवनागरी अक्षर सात्त्विक होना; तीर्थक्षेत्रों की महिमा आदि के विषय में वैज्ञानिक उपकरणों द्वारा किए गए शोध का अंतर्भाव !
७. सात्त्विक वेशभूषा, आहार इत्यादि का व्यक्ति पर होनेवाला अच्छा परिणाम आदि के संदर्भ में सूक्ष्म स्तरीय प्रक्रिया दर्शानेवाले चित्र एवं लेखन !
८. सनातन के अधिकांश ग्रंथों का २० प्रतिशत ज्ञान, अभी तक पृथ्वी पर कहीं भी उपलब्ध नहीं, इतना अद्वितीय है !
५. व्यापक अध्यात्मप्रसार हेतु सनातन संस्था की स्थापना (२२.३.१९९९)
५ अ. व्यक्ति को होनेवाले शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कष्टों का मूल कारण प्रारब्ध और अनिष्ट शक्तियां होती हैं, यह समझाना तथा इसके स्थायी उपाय के रूप में उपयुक्त साधना बताना
५ आ. जिज्ञासुओं और साधकों को सकाम साधना में न फंसने देकर निष्काम साधना सिखाकर ईश्वरप्राप्ति की दिशा दिखाना
५ आ १. व्यावहारिक लाभ अथवा अडचनों के विषय में उपाय न बताकर केवल साधना के विषय में आध्यात्मिक स्तर का मार्गदर्शन करना
५ इ. साधना में आनेवाली शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक बाधाएं एवं कष्ट ढूंढ कर उन्हें दूर करने के उपाय बताना
५ ई. सत्संग, व्याख्यान आदि का आयोजन करना; कुंभमेलों में अध्यात्मप्रचार करना; धर्मप्रचार में आनेवाली बाधाएं दूर होने के लिए यज्ञ-हवन, धार्मिक अनुष्ठान आदि करना; दूरचित्रवाहिनियों में हिन्दू धर्म का पक्ष रखना और उसके लिए ‘वक्ता प्रशिक्षण कार्यशाला’ आयोजित करना इत्यादि
५ उ. बुद्धिगम्य ज्ञान के परे जाकर बुद्धिअगम्य ज्ञान प्राप्त करना (From Known to UnKnown ), उदा. किसी मूर्ति में संबंधित देवता का तत्त्व कितनी मात्रा में है, इस विषय में ज्ञान ध्यान में जानना अथवा सूक्ष्म स्तरीय ज्ञान प्राप्त करना
५ ऊ. सनातन संस्था का सूचना जालस्थल – Sanatan.org
प्रतिमास १ लाख २५ सहस्त्र से अधिक पाठकसंख्यावाला यह जालस्थल हिन्दी, मराठी, गुजराती, तमिल, कन्नड और अंग्रेजी, इन छह भाषाओं में है, जो १८० देशों में देखा जाता है । इस जालस्थल पर अध्यात्मशास्त्र, हिन्दू धर्म, देवता, साधना, आचारपालन आदि के विषय में जानकारी इस जालस्थल पर दी गई है ।
६. सहस्रों साधक निर्माण करना
ईश्वरप्राप्ति हेतु, तथा राष्ट्र एवं धर्म के कार्य हेतु तन, मन धन का त्याग करनेवाले सहस्रों साधक निर्माण करना
७. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी से मिले साधना के उचित
मार्गदर्शन के कारण साधकों की आध्यात्मिक क्षमता
बढकर कुछ साधक संतपद (गुरुपद) एवं सद्गुरुपद पर आरूढ होना
७ अ. साधकों की आध्यात्मिक क्षमता बढना
कुछ साधकों को अध्यात्म के विविध विषयों पर सूक्ष्म स्तरीय ज्ञान मिलता है, जो पृथ्वी पर अन्यत्र कहीं उपलब्ध नहीं है । कुछ साधक किसी वस्तु अथवा घटना का सूक्ष्म परीक्षण करते हैं । (ऐसे समय उन साधकों को उस वस्तु अथवा घटना से संबंधित सूक्ष्म स्तरीय ज्ञान मिलता है ।) कुछ साधक दूसरों का आध्यात्मिक स्तर पहचान सकते हैं । कुछ साधक सूक्ष्म स्तर के अच्छे और बुरे स्पंदन पहचान लेते हैं तथा अनिष्ट शक्तियों का प्रकटीकरण (अच्छी अथवा अनिष्ट शक्तियों के कारण व्यक्ति की हो रही गतिविधि, हंसना, बोलना इत्यादि) पहचान लेते हैं तथा कुछ साधक अनिष्ट शक्तियों के प्रकटीकरण पर उपाय भी (उदा. कौन सा नामजप करना चाहिए ?) बता पाते हैं ।
७ आ. साधकों की शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होना
मार्च २०२० तक १०४ साधक संतपद पर आरूढ हो चुके हैं तथा ६० प्रतिशत और उससे अधिक आध्यात्मिक स्तरवाले १,१६३ साधक संतत्व की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं ।
अन्य संप्रदाय एवं सनातन में भेद !
अधिकांश संप्रदायों में केवल उनके प्रमुखों के बारे में जानकारी दी जाती है, शिष्यों के बारे में नहीं । परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने अनेक लोगों में संतत्व एवं साधकत्व निर्माण किया है, जिस कारण सनातन के संत तथा साधक द्वारा किया मार्गदर्शन, उनके विचार, उनके द्वारा लिखी कविताएं, उनके विषय में अन्य साधकों को हुई अनुभूतियां इत्यादि विपुल लेखन सनातन प्रभात में प्रकाशित होता है । परात्पर गुरु डॉक्टरजी अब सनातन के संतों के चरित्र भी प्रकाशित करेंगे ।
८. गुरुकुल के समान सनातन आश्रमों की निर्मिति
और परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की प्रेरणा से अन्य आश्रमों की स्थापना !
परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने रामनाथी (गोवा) में तीर्थक्षेत्र के समान चैतन्य की अनुभूति देनेवाले आश्रम की निर्मिति की है तथा उनकी प्रेरणा से महाराष्ट्र के पनवेल और मिरज में भी आश्रम स्थापित हुए हैं । इन आश्रमों में और अन्य स्थानों को लेकर अनुमानित १ सहस्र पूर्णकालिक साधक साधनारत हैं, यहां राष्ट्र और धर्म के कार्य भी होते हैं ।
९. ध्वनिचक्रिकाएं (ऑडियो सीडी)
साधना से संबंधित मार्गदर्शन करनेवाली ध्वनिचक्रिकाएं (ऑडियो सीडी) और धर्मशिक्षा देनेवाली ४०० से अधिक ध्वनिचित्र-चक्रिकाओं की वीडियो सीडी) निर्मिति तथा राष्ट्र और धर्म की जागृतिपरक कुछ लघु चलचित्रों की निर्मिति
१०. महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के प्रेरणास्थान (न्यास की स्थापना : २२.३.२०१४)
१० अ. प्राचीन काल में पूरे विश्व में फैली हिन्दू संस्कृति की खोज करने हेतु अध्ययन दौरे करना
विश्वविद्यालय द्वारा प्राचीन काल से देश-विदेश में फैली हिन्दू संस्कृति के पदचिन्हों की खोज (उदा. श्रीलंका के रामायणकालीन स्थलों के संदर्भों का अध्ययन, अंकोर वाट (कंबोडिया) मंदिर जैसे प्राचीन मंदिरों का अवलोकन), इनका चित्रीकरण अथवा जानकार लोगों से चर्चा आदि माध्यम से हिन्दू संस्कृति की प्राचीनता और महिमा का अध्ययन करने का अमूल्य कार्य किया जा रहा है ।
१० आ. ईश्वरप्राप्ति की दृष्टि से १४ विद्या और ६४ कलाओं की शिक्षा
वर्तमान में चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत, नृत्य आदि कुछ कलाओं के माध्यम से साधना करनेवालों को ईश्वरप्राप्ति की दृष्टि से शिक्षा दी जाती है ।
१० इ. हिन्दू संस्कृति की श्रेष्ठता और अध्यात्म का महत्त्व प्रमाणित करनेवाला
शोधकार्य और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषदों में उन पर शोधप्रबंधों का प्रस्तुतीकरण
इस विश्वविद्यालय द्वारा हिन्दू धर्म के नामजप, यज्ञ, आहार, वेशभूषा, केशभूषा, श्राद्ध आदि का व्यक्ति और वातावरण पर होनेवाले अच्छे परिणामों के संबंध में वैज्ञानिक उपकरण और संगणकीय तंत्रज्ञान द्वारा शोधपरक परीक्षण किए जाते हैं । जुलाई २०१८ तक ऐसे २,२५२ शोधपरक परीक्षण किए गए हैं तथा उनका विश्लेषण कर २७६ शोध ब्यौरे बनाए गए हैं साथ ही उनके संबंध में अक्टूबर २०१६ से ५.९.२०१८ तक ८ राष्ट्रीय और १८ अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषदों में शोधनिबंध भी प्रस्तुत किए गए हैं ।
१० ई. आध्यात्मिक कार्यशालाओं का आयोजन
नियमित साधना करनेवाले साधकों को साधना से संबंधित अगले चरण का मार्गदर्शन आवश्यक होता है । इन कार्यशालाओं के माध्यम से ऐसे साधकों को स्वभावदोष और अहं-निर्मूलन की प्रक्रिया, आध्यात्मिक पीडा के निवारणार्थ किए जानेवाले उपाय आदि विषयों पर मार्गदर्शन किया जाता है ।
१० उ. प्राचीन काल में पूरे विश्व में फैली हिन्दू संस्कृति पर शोध करने के लिए अध्ययनदौरे करना
विश्वविद्यालय द्वारा प्राचीन काल से देश-विदेश में फैली हिन्दू संस्कृति के पदचिन्ह खोजना (उदा. श्रीलंका में रामायणकालीन स्थलों के संदर्भ का अध्ययन करना, अंकोरवाट (कंबोडिया) मंदिर जैसे प्राचीन मंदिरों में जाना), उससे संबंधित चित्रीकरण करना और जानकारों की भेंटवार्ता लेना आदि माध्यमों से हिन्दू संस्कृति की प्राचीनता और महानता का अध्ययन करने का अमूल्य कार्य किया जा रहा है ।
१० ऊ. भव्य ग्रंथालय की निर्मिति
इस ग्रंथालय के लिए अभी तक इतिहास, संस्कृति, कला, ज्योतिष, आयुर्वेद, विविध साधनामार्ग आदि विषयों पर शोध और २० सहस्र से अधिक वैशिष्ट्यपूर्ण ग्रंथ जुटाए गए हैं ।
१० ए. अंग्रेजी भाषा का जालस्थल
Spiritual.University (इस विश्वविद्यालय का भवन आनेवाले कुछ वर्षों में ही बनकर तैयार हो जाएगा ।)
१० ऐ. आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक मूल्यवाली सहस्रों
वस्तुओं का संग्रह करनेवाले संसार के एकमात्र अद्भुत संग्रहालय की निर्मिति का कार्य
अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से इस संग्रहालय के लिए भारत के तीर्थक्षेत्र, देवालय, संतों के मठ, संतों के समाधि स्थल, ऐतिहासिक स्थल आदि स्थानों की विशिष्ट वस्तुएं, मिट्टी, पानी आदि तथा अच्छी और बुरी शक्तियों के परिणाम दर्शानेवाली १५ सहस्र से अधिक वस्तुएं, सहस्रों छायाचित्र और २७ सहस्र से अधिक ध्वनिचित्रफीतियां बनेंगी, इतना ध्वनिचित्रीकरण (कुल ३४३ टेराबाईट) आज तक संग्रहित किया गया है ।
११. अनिष्ट शक्तियों के प्रकार और उनके कार्य के संबंध में विविधांगी शोध
११ अ. अनिष्ट शक्ति की एक बलवान योनि, ‘पाताल के मांत्रिक’ से संसार का परिचय करवाना
११ आ. अनिष्ट शक्तियों की शक्ति को प्रतिशत में बताने की पद्धति खोजना
११ इ. आध्यात्मिक कष्ट से पीडित साधकों की पीडा अल्प होने के लिए विविध आध्यात्मिक प्रयोग करना, उदा. गायन, वादन, नृत्य इत्यादि ।
११ ई. साधकों को पीडित करनेवाली अनिष्ट शक्तियों के ज्ञान का उपयोग समष्टि के लिए करना
१२. शारीरिक, मानसिक एवं अनिष्ट शक्तियों से उत्पन्न
पीडा का उपचार करने के लिए विविध पद्धतियों के संबंध में शोधकार्य
१२ अ. आध्यात्मिक उपचारों की नई-नई पद्धतियों का शोध करना
१. नामजप उपचारों की विविध पद्धतियों का शोध, उदा. एक-के पश्चात -एक इस प्रकार दो नामजप करना
२. देवताओं की सात्त्विक नामजप-पट्टियों के उपचार (देहशुद्धि, वास्तुशुद्धि और वाहनशुद्धि करने की पद्धतियों सहित)
३. शरीर के कुंडलिनीचक्रों के स्थान पर देवताओं के सात्त्विक चित्र अथवा नामजप-पट्टियां लगाना
४. सनातन-निर्मित सात्त्विक गणेशमूर्ति की परिक्रमा करना
५. संतों ने जिस वास्तु अथवा कक्ष में निवास किया है, वहां बैठकर नामजप करना
६. आध्यात्मिक उपचारों के लिए संतों द्वारा उपयोग की हुई वस्तुओं का उपयोग करना
७. पंचतत्त्वों के अनुसार (पंचमहाभूतों के अनुसार) उपचार : उदाहरण पृथ्वीतत्त्व का उपचार : मस्तक पर सात्त्विक कुमकुम लगाना, आपतत्त्व का उपचार : तीर्थ प्राशन करना, तेजतत्त्व का उपचार : विभूति लगाना, वायुतत्त्व का उपचार : विभूति फूंकना और आकाशतत्त्व का उपाय : संतों की आवाज में भजन सुनना
१२ आ. विकार-निर्मूलन और आध्यात्मिक पीडा के निवारण के लिए विविध उपचार-पद्धतियों का शोध
१. स्पर्शविरहित बिंदुदाब (एक्युप्रेशर) : इस पद्धति के अनुसार उच्च आध्यात्मिक स्तरवाला साधक रोगी को स्पर्श किए बिना (कुछ दूरी से) रोगी पर अधिक प्रभावीरूप से बिंदुदाब उपचार कर सकता है ।
२. रिक्त गत्ते के बक्से के उपचार : रिक्त गत्ते के बक्से में रिक्ति होती है तथा रिक्ति में आकाशतत्त्व होता है । इस आकाशतत्त्व के कारण उच्च स्तर के आध्यात्मिक उपाय होते हैं ।
३. प्राणशक्ति (चेतना) प्रणाली के उपचार : हाथ की उंगलियों से बाहर निकलनेवाली प्राणशक्ति की सहायता से उपचार करना सरल पद्धति है तथा इस पद्धति द्वारा स्वयं पर तथा दूर रहनेवाले रोगी पर भी उपचार कर सकते हैं ।
१३. अपनी (परात्पर गुरु डॉक्टरजी की) देह (नाखून, केश एवं त्वचा), साथ ही उपयोग की वस्तुओं में आए परिवर्तनों के संदर्भ में शोध
१४. अपने (परात्पर गुरु डॉक्टरजी के) महामृत्युयोग का शोधजन्य अध्ययन
१५. सूक्ष्म पंचमहाभूतों के कारण होनेवाली बुद्धिअगम्य घटनाओं का अध्ययन, साथ ही आधुनिक वैज्ञानिक उपकरण (उदा. युनिवर्सल थर्मो स्कैनर) एवं प्रणाली (उदा. पॉलीकॉन्ट्रास्ट इंटरफेरेंस फोटोग्राफी) के द्वारा शोधकार्य
१६. कला के लिए कला नहीं, अपितु ईश्वरप्राप्ति हेतु कला
के संदर्भ में मार्गदर्शन एवं चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत, नृत्य आदि विविध कलाओं के संदर्भ में शोधकार्य
१६ अ. कला में कुशलता बढाने के साथ साधना में प्रगति करने के संदर्भ में भी साधकों का मार्गदर्शन
परात्पर गुरु डॉक्टरजी चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत, नृत्य, ध्वनिचित्रीकरण इत्यादि विषयों में साधकों में केवल उससे संबंधित विषय में कुशलता बढे, इसके लिए ही मार्गदर्शन नहीं करते, अपितु इसके लिए भी वे मार्गदर्शन करते हैं कि संबंधित माध्यम से साधकों की साधना में उन्नति हो ।
१६ आ. चित्रकला एवं मूर्तिकला
परात्पर गुरु डॉक्टरजी के मार्गदर्शन में बनाए गए देवताओं के चित्रों में २७ से ३१.३ प्रतिशत, तो श्री गणेशमूर्ति में गणेशजी का २८.३ प्रतिशत तत्त्व अंतर्भूत है । (कलियुग में देवता का चित्र अथवा मूर्ति में अधिकतम ३० प्रतिशत ही उस देवता का तत्त्व आ सकता है ।) परात्पर गुरु डॉक्टरजी चित्र एवं मूर्तियों में शक्ति, भाव, चैतन्य, आनंद एवं शांति के स्पंदन कितने अनुपात में हैं, यह भी बताते हैं ।
१६ आ १. सूक्ष्म चित्रकला : कुछ साधकों को किसी विषय के संबंध में सूक्ष्म से जो प्रतीत होता है अथवा अंतर्दृष्टि से जो दिखाई देता है, उसके संबंध में उनके द्वारा कागद पर बनाए गए चित्र को ‘सूक्ष्म ज्ञान से संबंधित चित्र’ कहते हैं । परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने सूक्ष्म ज्ञान से संबंधित चित्रांकन अर्थात चित्रकला विषय की ‘सूक्ष्म चित्रकला’ नामक अभिनव शाखा की खोज की और उसे सूक्ष्म चित्रांकन करने की क्षमता रखनेवालों को सिखाया । परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने इन चित्रों के विविध प्रकार भी, उदा. आभासी चित्र, काल्पनिक चित्र, कलात्मक चित्र, मायावी चित्र आदि प्रकार भी खोजे । परात्पर गुरु डॉक्टरजी सूक्ष्म चित्रांकन करनेवाले साधकों के द्वारा बनाए गए सूक्ष्म ज्ञान से संबंधित चित्रों की सत्यता जांचकर उनका अनुपात भी बताते हैं ।
१६ इ. अक्षर एवं अंकों का लेखन : परात्पर गुरु डॉक्टरजी के मार्गदर्शन में निर्मित देवनागरी अक्षर एवं अंकों में ३१ प्रतिशत सात्त्विकता है । (कलियुग में अक्षर अथवा अंकों में अधिकतम ३० प्रतिशत सात्त्विकता ही आ सकती है ।)
१६ ई. सात्त्विक रंगोलियां : परात्पर गुरु डॉक्टरजी के मार्गदर्शन में बनाई गई रंगोलियों में संबंधित देवी-देवताआें का (श्री गणपति, श्रीकृष्ण, श्री लक्ष्मी, दत्त एवं शिवजी का) औसतन ३ से ४ प्रतिशत तत्त्व एवं चैतन्य, आनंद आदि स्पंदन आए हैं, साथ ही एक रंगोली में १० प्रतिशत गणेशतत्त्व आया है । (कलियुग में रंगोली में देवतातत्त्व एवं शक्ति, भाव, चैतन्य, आनंद एवं शांति के अधिकतम १० प्रतिशत ही स्पंदन आ सकते हैं ।)
१६ उ. सात्त्विक मेहंदी : परात्पर गुरु डॉक्टरजी के मार्गदर्शन में श्री सरस्वती, श्रीकृष्ण एवं श्री लक्ष्मीजी के २ से ४ प्रतिशत तत्त्व से युक्त मेहंदी की कलाकृतियांं बनाई गई हैं । (कलियुग में मेहंदी की कलाकृतियों में अधिकतम ५ प्रतिशत देवतातत्त्व आ सकता है ।)
१६ ऊ. संगीत
१६ ऊ १. गायन : परात्पर गुरु डॉक्टरजी के मार्गदर्शन में शास्त्रीय संगीत से लेकर विविध दैवी नादों का अध्यात्मशास्त्रीय अध्ययन, सात्त्विकता की दृष्टि से पाश्चात्त्य एवं भारतीय संगीत का अध्ययन, साथ ही व्यक्ति, प्राणी एवं वनस्पतियों पर संगीत के होनेवाले परिणामों का अध्ययन किया जा रहा है । इसके साथ ही मनुष्य के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक कष्टों पर संगीत-उपचारों के होनेवाले परिणाम के संबंध में भी शोध चल रहा है ।
१६ ऊ २. वाद्य-वादन : परात्पर गुरु डॉक्टरजी के मार्गदर्शन में पाश्चात्त्य वाद्यों से सात्त्विक संगीत उत्पन्न करना, साथ ही पाश्चात्त्य एवं भारतीय वाद्य, संतों का वाद्य (उदा. वीणा) बजाना तथा अन्य व्यक्ति का वाद्य (उदा. वीणा) बजाना आदि का तुलनात्मक अध्ययन किया जा रहा है ।
१६ ए. नृत्य : परात्पर गुरु डॉक्टरजी के मार्गदर्शन में सात्त्विकता की दृष्टि से भारतीय नृत्य के प्रकार एवं पाश्चात्त्य नृत्य के प्रकारों का तुलनात्मक अध्ययन, साथ ही नृत्य में विविध शारीरिक स्थितियों एवं मुद्राआें का भी आध्यात्मिक दृष्टि से शोध चल रहा है ।
१७. उच्च स्वर्गलोक, महर्लोक एवं जनलोक से पृथ्वी पर जन्मे दैवी (सात्त्विक) बालकों को पहचानना एवं उनके संबंध में शोध
१८. ज्योतिषशास्त्र (फलज्योतिष, हस्तसामुद्रिक एवं पादसामुद्रिक शास्त्र) एवं नाडीभविष्य (नाडीपट्टिकाओं पर लिखकर रखा हुआ भविष्य) के द्वारा विविधांगी शोधकार्य
१९. स्वभाषारक्षा हेतु दिशादर्शन, भाषा के सूक्ष्म पहलुओं
के संदर्भ में शोध एवं भाषा की विशेषताओं का संग्रह
अ. मराठी लेखन में विदेशी भाषा के शब्दों का उपयोग टालने तथा व्याकरण की दृष्टि से लेखन शुद्ध होने की ओर परात्पर गुरु डॉक्टरजी गंभीरता से ध्यान देते हैं ।
आ. परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने आध्यात्मिक शोधकार्य कर संस्कृत के पश्चात मराठी सर्वाधिक सात्त्विक भाषा है, यह प्रमाणित किया है ।
इ. मराठी भाषा में अनेक अर्थवाले शब्द एवं वाक्यों का संग्रह करने का अनोखा कार्य भी उन्होंने किया है, उदा. ‘मर्यादा’ शब्द के सीमा एवं प्रतिष्ठा ये २ अलग-अलग अर्थ निकलते हैं । ‘फोटो लो’ इस वाक्य के २ अर्थ हैं, ‘फोटो खींचो’ और ‘रखा हुआ फोटो ले लो ।’ ऐसे शब्द एवं वाक्यों का संग्रह आगे जाकर ग्रंथ के रूप में प्रकाशित किया जाएगा ।
२०. सात्त्विकता की दृष्टि से प्राणी एवं वनस्पतियों का अध्ययन
२१. साधना, साथ ही राष्ट्र एवं धर्म के संदर्भ में जागृति लानेवाले सनातन पंचांग, संस्कार बही, धर्मशिक्षा फलक आदि प्रसारसामग्री की निर्मिति
२२. पूजनोपयोगी सात्त्विक (उदा. कुमकुम, अष्टगंध, इत्र, कर्पूर एवं उदबत्ती) एवं नित्योपयोगी (उदा. दंतमंजन, उबटन, शिकाकाई चूर्ण, स्नान का साबुन, केश तेल आदि) उत्पादों की निर्मिति में मार्गदर्शन
२३. धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र की (ईश्वरीय राज्य की)
स्थापना हेतु कटिबद्ध प्रखर हिन्दुत्वनिष्ठ नियतकालिक ‘सनातन प्रभात’
के संस्थापक एवं प्रथम संपादक (आरंभ ४.४.१९९८)
२३ अ. नियतकालिक सनातन प्रभात समूह
दैनिक – मराठी (४ संस्करण)
साप्ताहिक – मराठी एवं कन्नड
पाक्षिक – हिन्दी एवं अंग्रेजी
संकेतस्थळ : SanatanPrabhat.org (मराठी, हिन्दी, गुजराती, कन्नड एवं अंग्रेजी भाषाओं में)
२३ आ. विशेषताएं
१. आज तक एक भी संप्रदाय अथवा धार्मिक संस्था ने राष्ट्र एवं धर्मजागृति हेतु दैनिक समाचारपत्र, साप्ताहिक एवं पाक्षिक जैसे स्वरूप में विविध भाषाआें में नियतकालिक नहीं चलाए हैं ।
२. समाचारों पर राष्ट्राभिमानी एवं धर्माभिमानी पाठकों का दृष्टिकोण कैसा होना चाहिए, यह समझ में आए; इसके लिए उन्होंने समाचारों पर टिप्पणियां लिखना आरंभ किया । ऐसा करनेवाला ‘सनातन प्रभात’ एकमात्र नियतकालिक है ।
२३ इ. ‘इंटरनेट’ पर (ज्ञानजाल पर) हिन्दू समाचारवाहिनी के संकल्पक
२९.१२.२०१४ से २९.१.२०१६ की अवधि में ‘हिन्दू वार्ता’ उपक्रम के माध्यम से हिन्दुओं की समाचारवाहिनी की नींव डाली गई ।
२४. धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र की (ईश्वरीय राज्य की) स्थापना हेतु कार्य
२४ अ. लोकतंत्र में व्याप्त दुष्प्रवृत्तियों के निर्मूलन हेतु वैधानिक पद्धति से कार्य
२४ आ. हिन्दू राष्ट्र स्थापना से संबंधित ग्रंथमाला की निर्मिति, साथ ही नियतकालिक एवं संकेतस्थलों के द्वारा मार्गदर्शन
२४ इ. संत, संप्रदाय, हिन्दुत्वनिष्ठ, देशभक्त एवं सामाजिक कार्यकर्ताआें का संगठन खडा कर आध्यात्मिक स्तर पर उनका दिशादर्शन
२४ ई. आध्यात्मिक स्तर के कार्य
२४ ई १. परात्पर गुरु डॉक्टरजी के अस्तित्व से कार्य होना : अत्युच्च कोटि के संतों के केवल अस्तित्व से ही कार्य होता है । उसके कारण ही शारीरिक अस्वस्थता के कारण वर्ष २००७ से परात्पर गुरु डॉक्टरजी भले ही बाहर कहीं नहीं जा पाए हों; परंतु केवल उनके अस्तित्व से ही हिन्दू राष्ट्र स्थापना का कार्य वृद्धिंगत हो रहा है, उदा. इस कार्य के लिए अनेक संतों के आशीर्वाद प्राप्त हो रहे हैं तथा अनेक राष्ट्रप्रेमी एवं धर्मप्रेमी हिन्दू राष्ट्र स्थापना हेतु संगठित और सक्रिय हो रहे हैं ।
२४ ई २. हिन्दू राष्ट्र स्थापना हेतु १०० संत बनाना : वर्तमान में पृथ्वी पर हिन्दू राष्ट्र स्थापना हेतु चल रहे सूक्ष्म के युद्ध में देवता एवं संतों से भुवर्लोक से लेकर ६ ठे पाताल तक की अनिष्ट शक्तियां हार गई हैं । अब ७ वें पाताल की अनिष्ट शक्तियों को हरा सकें, ऐसे ब्राह्मतेज (आध्यात्मिक बल) से युक्त १०० संतों की आवश्यकता है । ऐसे संत बनाने हेतु परात्पर गुरु डॉक्टरजी स्वयं कार्यरत हैं । अगस्त २०१८ तक परात्पर गुरु डॉक्टरजी के मार्गदर्शन में ऐसे ८५ संत बन चुके हैं । आनेवाले १-२ वर्ष में यह संख्या १०० तक पहुंच जाएगी । इन १०० संतों के माध्यम से ७ वें पाताल की अनिष्ट शक्तियों की पराजय होने के उपरांत ही उसका दृश्य परिणाम दिखाई देगा अर्थात हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होगी ।
२५. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के राष्ट्र और
धर्म कार्य से प्रेरणा लेकर आरंभ हुआ कार्य (संगठन और उपक्रम)
२५ अ. हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के लिए हिन्दू जनजागृति समिति (स्थापना ७.१०.२००२)
२५ अ १. हिन्दू जनजागृति समिति का कार्य
अ. हिन्दुओं को धर्मशिक्षा देना : इस हेतु जुलाई २०१८ में गांव-गांव ४४६ नि:शुल्क धर्मशिक्षा वर्ग कार्यरत
आ. ‘हिन्दू धर्मजागृति सभा’ओं का आयोजन : जुलाई २०१८ तक आयोजित हुए १,४२५ से भी अधिक हिन्दू धर्मजागृति सभाआेंं के कारण लगभग १७ लाख ६० सहस्र से भी अधिक हिन्दुओं में राष्ट्र और धर्म के विषय में जागृति
इ. अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन और अन्य हिन्दू अधिवेशनों का आयोजन : इन अधिवेशनों द्वारा विविध राज्यों के २५० से भी अधिक राष्ट्र्रप्रेमी और धर्मप्रेमी संगठन हुए संगठित
ई. राष्ट्र्रप्रेमी और धर्मप्रेमी व्यक्तियों को कानूनी सहायता करनेवाले धर्मप्रेमी अधिवक्ताओं का (वकीलों का) संगठन : हिन्दू विधिज्ञ परिषद (स्थापना १४.६.२०१२)
उ. उद्योगपति परिषद (स्थापना ४.६.२०१८)
ऊ. आरोग्य साहाय्य समिति (स्थापना (४.६.२०१८)
ए. नि:शुल्क प्राथमिक उपचार और स्वरक्षा प्रशिक्षणवर्ग लेना
ऐ. महिला शाखा – रणरागिनी (स्थापना ३.६.२००९)
२५ अ २. जालस्थल – Hindujagruti.org
हिन्दुओं को धर्मशिक्षा देना, हिन्दुओं में धर्मजागृति करना, उन्हें हिन्दू राष्ट्र्र-स्थापना के विषय में मार्गदर्शन करना आदि के लिए यह जालस्थल कार्यरत है । मराठी, हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं में इस जालस्थल को प्रतिमाह २ लाख से भी अधिक पाठक देख रहे हैं । यह जालस्थल १८० से भी अधिक देशों में देखा जाता है ।
२५ आ. आदर्श एवं सुसंस्कारित पीढी के निर्माण हेतु Balsanskar.com
२५ इ. प्रसारमाध्यमों में हिन्दू धर्म का पक्ष रखने के लिए वक्ता तैयार करने हेतु ‘सनातन अध्ययन केंद्र’
२५ ई. सात्त्विक पुरोहित निर्माण करने हेतु ‘सनातन पुरोहित पाठशाला’
२५ उ. अखिल मानवजाति को अध्यात्म सिखाने के लिए स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाउंडेशन (एस.एस.आर.एफ.) (स्थापना १५.१२.२००५ (ऑस्ट्रेलिया))
२५ उ १. उद्देश्य
अ. अध्यात्म का वैज्ञानिक परिभाषा में विश्वभर प्रसार करना
आ. आध्यात्मिक शोध (स्पिरिच्युअल रिसर्च) करना
इ. आध्यात्मिक उन्नति के लिए विविध पंथों के अनुसार और योगमार्गों के अनुसार साधना करनेवालों का मार्गदर्शन करना
ई. मानवी जीवन की आध्यात्मिक अडचनों के निवारण हेतु आध्यात्मिक उपायों का प्रसार करना
२५ उ २. ‘एस.एस.आर.एफ.’ के साधकों ने की आध्यात्मिक प्रगति : अगस्त २०१८ तक एस.एस.आर.एफ. के ४ साधक संतपद पर विराजमान हुए, ६० प्रतिशत और उससे भी अधिक आध्यात्मिक स्तर के २० साधक संतत्व की दिशा में मार्गक्रमण कर रहे हैं ।
२५ उ ३. ‘एस.एस.आर.एफ.’ का जालस्थल – SSRF.org (निर्मिति १४.१.२००६) : इस जालस्थल पर विविधांगी आध्यात्मिक शोध (उदा. विदेशी आचार तामसिक, जबकि हिन्दू आचार सात्त्विक होना, इस संदर्भ में शोध), कालानुसार आवश्यक साधना, व्यक्तित्व-विकास के लिए स्वभावदोष और अहं के निर्मूलन का महत्त्व, अनिष्ट शक्तियों के कष्टों पर उपाय आदि संबंधी जानकारी और लेख रखे हैं । यह जालस्थल २२ भाषाआें में (अंग्रेजी, चीनी, फ्रांसीसी, जर्मन, स्पैनिश इत्यादि) उपलब्ध है । जगत के १९६ देशों के लगभग ५ लाख पाठक यह जालस्थल देखते हैं ।)
परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा धर्मप्रसार की व्याप्ति चरण-दर-चरण बढाना
आरंभ में परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने जिज्ञासु और साधकों को साधना सिखाने हेतु स्वयं उनके लिए सत्संग और अभ्यासवर्ग लिए, इसके साथ ही ‘साधना’ विषय पर सार्वजनिक सभाएं भी लीं । आगे राष्ट्र्ररक्षार्थ सर्वधर्मीय अपना योगदान दे सकें, इस हेतु सर्वधर्म सत्संग और धर्मरक्षा के लिए सर्वसंप्रदाय सत्संग आयोजित किए । तदुपरांत उनकी प्रेरणा से स्थापित हुई हिन्दू जनजागृति समिति धर्मशिक्षावर्ग, हिन्दू धर्मजागृति सभा आदि के माध्यम से संपूर्ण भारत में व्यापक धर्मप्रसार कर रही है । उनकी ही प्रेरणा से स्थापित स्पिरिच्युअल साइन्स रिसर्च फाउंडेशन (एस.एस.आर.एफ.) नामक संस्था जालस्थल, ऑनलाइन सत्संग आदि के माध्यम से जगभर धर्मप्रसार कर रही है ।
२६. भावी भीषण आपातकाल की दृष्टि से कार्य
२६ अ. भावी भीषण आपातकाल का विचार कर अनेक वर्ष पहले ही आपातकाल में आधुनिक वैद्य (डॉक्टर), वैद्य, औषधियां आदि उपलब्ध न होने पर जीवरक्षा हेतु उपयुक्त विविध उपचार-पद्धतियों की विपुल जानकारी संग्रहित करना और आगे उस विषय में ग्रंथ भी प्रकाशित करना
२६ आ. प्राथमिक उपचार प्रशिक्षण, आपातकालीन सहायता प्रशिक्षण और अग्निशमन प्रशिक्षण के विषय में जनजागृति करना
२६ इ. भावी भीषण संकटकाल में जीवरक्षा होने हेतु अभी से ही साधना करने के अतिरिक्त कोई पर्याय नहीं, यह समाजमन पर अंकित करना
२७. ‘परात्पर गुरु डॉक्टरजी का कार्य जगभर
फैलनेवाला है’ – नाडीपट्टी-वाचक और ज्योतिषी के गौरवोद्गार
अ. तमिलनाडु के पू. डॉ. ॐ उलगनाथन्, पुणे के श्री मुदलियार गुरुजी आदि ५ – ६ नाडीपट्टी-पाठकों के उद्गार थे, ‘‘परात्पर गुरु डॉ. आठवले, राष्ट्र्र और धर्म का महान कार्य कर रहे हैं और यह कार्य आगे बढते-बढते जगभर फैल जाएगा ।’’
आ. परात्पर गुरु डॉक्टरजी की जन्मपत्रिका और हाथ-पैरों के छाप किसके हैं, यह ज्ञात न होने पर भी उन्हें देखते ही कल्याण की श्रीमती इंदिरा सोनवणे सहित डोंबिवली के डॉ. उदयकुमार पाध्ये तथा ७ – ८ अन्य ज्योतिषियों ने ऐसे ही गौरवपूर्ण उद्गार व्यक्त किए ।
२८. परात्पर गुरु डॉक्टरजी का महामृत्युयोग टले और उनके राष्ट्र्र और धर्म के कार्य में आनेवाली बाधाएं दूर हों, इस हेतु कुछ संत, नाडीपट्टी-वाचक और ज्योतिषी स्वयं ही अनुष्ठान, धार्मिक विधि आदि के माध्यमों से सहायता कर रहे हैं ।
२९. भावी हिन्दू राष्ट्र का दायित्व, साथ ही धर्मसत्ता संभालने के लिए अगली पीढियों को सक्षम बनाना
२९ अ. साधना के दृढ संस्कार से युक्त सैकडों धर्मप्रसारक और धर्मरक्षक-साधक तैयार करना
२९ आ. विविध सेवाक्षेत्रों के (आध्यात्मिक शोध, ग्रंथ-निर्मिति, कला, ध्वनिचित्रीकरण आदि क्षेत्रों के) अनेक साधकों को अपना कार्य उत्तम ढंग से चलाने में सक्षम बनाना
२९ इ. गोपीभाव (कृष्णभक्ति में रममाण होना) में रहनेवाली साधिकाआें को समष्टि साधना करने के लिए बताकर उनकी आगे की प्रगति करवा लेना
२९ ई. दैवी (सात्त्विक) बालकों को भावी हिन्दू राष्ट्र्र संभालने की दृष्टि से सक्षम बनाना : ईश्वर द्वारा गत कुछ वर्षों में उच्च लोकों के सैकडों जीवों को पृथ्वी पर अनेक देशों में जन्म दिया है । जन्म से ही आध्यात्मिक स्तर अच्छा होने से ये बालक दैवीय हैं । उनके सुप्त गुण पहचानकर उन्हें विविध सेवाएं सिखाना और अगले चरण की साधना बताकर उन्हें संत पद की ओर अग्रसर करवाना, इसप्रकार उन्हें हिन्दू राष्ट्र संभालने की दृष्टि से सक्षम बनाना भी जारी है ।
परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा अपने कार्य और विशेषताओं
संबंधी परिचय पढने पर उनके मन में ईश्वर के प्रति निर्माण हुआ कृतज्ञताभाव !
‘परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी का अद्वितीय कार्य और विशेषताओं का संक्षिप्त परिचय !’, मेरे संबंध में इस लेख को पढकर मेरे मन में विचार आया, इतने अल्प समय में इतने विविधांगी कार्य मेरे हाथों से कैसे हुए ? ग्रंथलेखन; चित्रकला, संगीत आदि कलाएं; आश्रम की वास्तु का निर्माणकार्य जैसे अनेक क्षेत्रों में शिक्षा न लेते हुए भी उस-उस क्षेत्र के साधकों को आध्यात्मिक स्तर पर मार्गदर्शन कैसे कर पाता हूं ? शारीरिक स्वास्थ्य ठीक न रहने से मेरे लिए अपने कक्ष से बाहर निकलना भी कठिन होता है, ऐसे में राष्ट्र और धर्म संबंधी कार्य की नई-नई संकल्पनाएं मुझे कैसे सूझती हैं ? अनेक राष्ट्रप्रेमियों और धर्मप्रेमियों ने मुझे देखा भी नहीं है, तब भी उनके मन में मेरे प्रति ‘पूज्य’ भाव कैसे निर्माण होता है और वे सनातन के कार्य से कैसे जुड जाते हैं ? इन सभी का एक ही उत्तर है और वह साधना ! मैं साधना करता हूं, इसलिए भगवान ही मुझे उस-उस समय जो उचित होता है, वह सुझाते हैं । वे ही मेरा हाथ पकडकर, आगे ले जा रहे हैं । पहले साधकों द्वारा प्रश्न पूछने पर मुझसे अपनेआप ही उत्तर दिए जाते थे । आगे-आगे मेरे मन में कोई भी प्रश्न निर्माण होने पर तुरंत ही भगवान मुझे उस प्रश्न का उत्तर भी सुझाते थे । अब मन में प्रश्न निर्माण हुए बिना ही जो योग्य होता है, वह अपनेआप सूझता है और उस अनुसार कृति करने पर कार्य अच्छा होता है । संक्षेप में, ‘इदं न मम ।’ (भावार्थ : यह मेरे कारण नहीं हुआ ।) ऐसा लगता है भगवान इसकी मुझे निरंतर प्रचीति दे रहे हैं । इससे मैं बहुत कार्य करता हूं । मेरी बहुत ख्याति हो, ऐसा अहं मुझमें निर्माण न हो, इसका ध्यान ईश्वर ही रख रहे हैं । इसके लिए मैं भगवान के चरणों में अनंत कोटि कृतज्ञ हूं ।’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
संत रहीम के सुवचन की प्रचीति लेनेवाले (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले !
‘संत रहीम का एकै साधे सब सधै ।, अर्थात एक साध्य करने पर सर्व साध्य होता है, यह सुवचन मैं प्रतिदिन अनुभव करता हूं । मेरे संदर्भ में एक साध्य, अर्थात ईश्वर का आशीर्वाद और सर्व साध्य, अर्थात विविध विषयों के अंतर्गत सेवा कर पाना, उदा. चित्रकला, संगीत, मूर्तिकला, शास्त्रीय शोध इत्यादि अनेक विषयों के बारे में कुछ भी जानकारी न होते हुए भी उस संदर्भ में मैं कुछ साधकों को मार्गदर्शन कर सकता हूं ।’
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
बुरी शक्ति : वातावरण में अच्छी तथा बुरी (अनिष्ट) शक्तियां कार्यरत रहती हैं । ‘अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं ।’ अनिष्ट शक्ति के कष्ट के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपाय वेदादि धर्मग्रंथों में वर्णित हैं ।
सूक्ष्म : व्यक्ति का स्थूल अर्थात प्रत्यक्ष दिखनेवाले अवयव नाक, कान, नेत्र, जीव्हा एवं त्वचा यह पंचज्ञानेंद्रिय है । जो स्थूल पंचज्ञानेंद्रिय, मन एवं बुद्धि के परे है, वह ‘सूक्ष्म’ है । इसके अस्तित्व का ज्ञान साधना करनेवाले को होता है । इस ‘सूक्ष्म’ ज्ञान के विषय में विविध धर्मग्रंथों में उल्लेख है ।